मालेगांव
सबसे पहले मैं इस बात पर दुविधा में रहा कि इस लेख का क्या शीर्षक लिखूं। कभी सोचता कि इसे हिंदू अतिवाद कहूं या फिर आतंकवाद। इस बार तो कई कट्टर हिंदूवादी भी सोच में पड़ गए होंगे कि अब इसका क्या जवाब होगा। मालेगांव ब्लास्ट में जब से एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में छपा कि इसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और हिंदू जागरण मंच का नाम आया तो जैसे मेरे जैसे कई हिंदूवादीयों का तो खून ही सूख गया। आखिर यह क्या हुआ? ऐसा कैसे हो गया। सहिष्णु हिंदू आखिर कैसे इतना असहिष्णु हो सकता है। बात हो रही थी सभी चैनलों पर इस बारे में कि यह जरूर राजनीतिक लाभ लेने के लिए यह महाराष्ट्र सरकार का एक दांव है। शायद यह राज ठाकरे से ध्यान हटाने से कांग्रेस का एकत दांव मात्र हो। लेकिन यह भी विचार करने योग्य है कि क्या अब यह भी संभव हो गया है जब अपने लोक कल्याण का ढोंग पीटने वाले भगवा ब्रिगेड और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने आपको इस ओर भी मोड़ रहे हैं। पहले कहीं भी अगर कोई ब्लास्ट की खबर आती थी तो सारे समाचार चैनल और इंटेलिजेंस विभाग इस बारे में तफ्तीश करने में जुट जाते थे कि कहीं इसमें कहीं सिमि या फिर इंडियन मुजाहिदीन का हाथ तो नहीं। पर अब शायद ऐसा ना हो। अब हो सकता है कि इस फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ गया। आतंक का एक और घिनौना नाम।
जब इस तरह के हमले देश पर सन 90 में शुरू हुए तो सारे लोग इसे इस्लामिक अतिवाद कहते थे। धीरे धीरे इसे इस्लामिक आतंकवाद का नाम दिया जाने लगा। पहले तो हम अपने देश के बाहर के बिच्छुओं का दंश झेल रहे थे। लेकिन धीरे धीरे जब अपने ही आस्तीन के सांप हमें काटने लगे तो फिर इस समस्या का निपटारा कैसे हो। क्या इससे निपटने के लिए हमे नंगा होना पड़ेगा। क्या यही हिंदुस्तान है जहां हजारों सालों से हिंदुत्व और सभ्यता का बोलबाला रहा। जहां के लोग हमेसा लोगों का पेट भरने में विश्वास रखते आए हैं। यहां मैं हिंदुत्व शब्द का इस्तमाल इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मैं इसे धर्म मानता ही नहीं। शायद कुछ लोग इसे मेरी नादानी कहें या फिर बचपना या फिर बड़बोलापन। पर मैं आज यह साबित करने नहीं जा रहा कि ऐसा मैनें क्यों लिखा है। पर एक बात जरूर कहता हूं कि हिंदू कोई धर्म नहीं एक सभ्यता है जिसे यह नाम भी हमारे किसी भाई बंधु ने ही दी है। यह नाम भी हमें वसुधेव कुटुंबकम् को जरूर याद दिलाता है।
कुछ दिन पहले जब देश सिलसिलेवार बम धमाकों को झेल रहा था तो मेरे एक मित्र का स्क्रैप ऑर्कुट पर आया था कि आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा। कब तक हम यह सब सहते रहेंगे। तो मैने जवाब में लिखा था कि जब तक हमारा धैर्य जवाब नहीं देता। मैंने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारा धैर्य इतनी जल्दी जवाब दे देगा। यहां तो मैं यही कहूंगा कि आखिर जो बिच्छू हमारे देश को डस रहे थे और कुछ आस्तीन के सांप जो हमारी मोटी चमड़ी पर बार बार हमले कर रहे थे। और जो हमने अपनी सभ्यता का बुलेटप्रूफ पहन रखा था, वो अब ना जोने कहां गुम हो गया है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो कहीं यह सभ्यता ही ना दम तोड़ दे। क्या हम भी पशु हो गए हैं? क्या हमारी भी अंतरात्मा इसकी गवाही देगी कि हम हमारे ही भाइयों का कत्ल करें? यह तो शायद कोई धुर हिंदूवादी भी सोचता होगा। फिर कैसे यह सवाल हमारे उपर आ खड़ा हुआ? और फिर सवालों के घेरे में गए।
October 24, 2008
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