आज बात करेंगे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार की। सूखा पीड़ितों पर दिए अपने विवादास्पद बयान के चलते मुश्किल में फंसते अजित पवार ने अब प्रायश्चित का पैंतरा अपनाया है।
पहले मूत्रविसर्जन के अपने बयान के बाद अब छोटे पवार रविवार को एक दिन का आत्मक्लेश अनशन किया। अनशन ऐसा कि अच्छे राजनैतिज्ञों को पसीना आ जाए। भूख से मरते किसानों की बेइज्जती करते हुए माननीय उपमुख्यमंत्री ने बयान दिया था कि बांधों में पानी नहीं है। पानी भरने के लिए क्या वो मूत्रविसर्जन करें। बवाल उठा.. उठना
लाजिमी भी था। छत्रप पुत्रों की राजनीति का ये सबसे कमजोर वजीर था। निशाने सधे। हो
हल्ला हुआ तब तक छोटे पवार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। मामला साफ था चाचा पवार ने
अभयदान दिया हुआ था। लेकिन जैसे खबरें छन कर आने लगीं कि बाधों का पानी किसानों के
बजाय मिलों और फैक्टरियों को बांटा जा रहा है। बड़े पवार चैतन्य हुए। उनकी भृकुटी तनी
और भतीजे को पश्चाताप करना पड़ गया। जब अहम पराजित हुआ तो पहुंचे महाराष्ट्र की राजनीति में नैतिकता के ऊंचे मानदंडों
का पालन करने वाले और राज्य के पहले मुख्यमंत्री यशवंत राव चव्हाण की समाधि पर... कड़क कलफ लगे कुर्ते में पंखों को कूलरों के बीच एक दिन का इनशन दे मारा। कहा भूखे रहेंगे और पाप का प्रायश्चित करेंगे। पहले माफी भी मांग चुके हैं लेकिन विपक्ष है कि राजनीति चमकाने में जुटा है। क्या कभी किसान के पास विपक्ष का कोई नेता गया। अभी हर चैनल, हर
अखबरा में सुर्खी है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। बारिश नहीं हो रही है। औऱ नेता अपने
घर में एसी में मग्न हैं। वोट बैंक की राजनीति है। अपने जाति को वोट देने खामियाजा
किसान भुगत रहे हैं। किसानों का नेत चीनी मिलों का सबसे बड़ा मालिक मालिक है। लेकिन
गन्ना किसान आत्महत्या कर रहा है। सवाल ये भी है कि अगर गन्ने की पैदावार नहीं हो रही
है तो चीनी मिल मालिक माल कैसे काट रहे हैं। क्या सूखा सिर्फ गरीब और छोटे किसानों
के लिए ही है। क्या उनके लिए नहीं जो बड़े हैं। कई सौ एकड़ खेतों के मालिक हैं। चीनी
मिल है। कपास की फैक्टरियां हैं। लेकिन वो तो गरीब नहीं होते। वो तो आत्महत्या नहीं
करते हैं। फिर क्यों गरीब ही मरता है। सवाल ये है कि अगर जनता मरती है तो नेता क्यों
नहीं मरता। क्यों कृषि मंत्री की तनख्वाह कम होती है। क्यों उस राज्य का मुख्यमंत्री
एक दिन का उपवास करता है जब उसके राज्य का सिर्फ एक किसान नहीं बल्कि उसके क्षेत्र
के 60 प्रतिशत लोग अपने मरने तक का उपवास करने को मजूबर हैं। ये ढोंग क्यों। क्या ये
चाचा पवार को मनाने की कोशिश तो नहीं। वैसे भी शनिवार को चाचा पवार ने भतीजे के बयान की निंदा करते हुए कहा था कि ये अशोभनीय है। और जब विवाद के चलते इस्तीफा मांगा गया तो भतीजे ने कहा था कि इस पर फैसला विधायक करेंगे कि उनको रहना है जाना है। जाहिर है भतीजे को विधायकों का सपोर्ट हासिल है। इसी सपोर्ट के चलते वो पिछले विवाद से बाहर निलके थे। उनको आशा थी कि वो एक बार फिर इस संकट की घड़ी में उनके काम आएंगे लेकिन चाचा के शनिवार के बयान के बाद कि उनके इस्तीफे पर पार्टी की उच्चस्तरीय कमेटी फैसला
लेगी। भतीजे पवार को कुछ समझ में ना आया। एक दिन भूखे रहने का ढोंग रचाया और पहुंचे समाधि की शरण में। वो भी नेता के ही। लेकिन भतीजे को नहीं मालूम कि नेता नेता को नहीं बनाता। नेता बनता है जनता से। और जनता जानती है कि अर्श से फर्श और फर्श से अर्श पर कैसे पहुंचाया जाता है। वो वोट करती है। उसके पास बैलेट की ताकत है। वो CII और
FICCI की राजनीति नहीं करता है। वो टोपी और टीके की राजनीति
से परे हैं। ये राजनीति वो करते हैं जिनका पेट भरा होता है। भूखे को धर्म और धर्मनिरपेक्षता
से कोई मतलब नहीं होता। नेता जी समझिए औऱ सोचिए। समय है... लेकिन कम। टोपी का काम तब
चलेगा जब नेताजी पेट में अन्न होगा। टीका तभी लगेगा जब माथा उंचा रहेगा। बाकि हम तो
जनता हैं। हमारा क्या है। और हां एक बात हम लोगों के लिए फिर से। सोचो, समझों
औऱ वोट दो।
April 15, 2013
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