कल रांझना देखी। बनारस की गलियों में पनपते प्यार की कहानी और उस एक तरफा प्यार में तबाह होते एक नवयुवक को देखा। ये किसी भा शहर की कहानी हो सकती थी। लेकिन बनारस में जिस तरह से इसका ताना बुना गया। दिल को छू गया। अच्छा शोध करके फिल्म बनाना इसे कहते हैं।
बढ़िया डायलॉग। बेहतरीन लोकेशन और धनुष की बेहतरीन अदायगी। फिल्म में वो सब कुछ था जो एक मसाला फिल्म में चाहिए होता है। सभी अदाकारों ने अपने रोल के साथ न्याय किया।
सोनम कपूर के बारे कहना चाहूंगा कि वो अगर इसी तरह से मेहनत करती हैं तो वो भी एक बेहतर अदाकारा साबित हो सकती हैं। थिएटर से निकलते वक्त लोगों के जुबान पर सोनम कपूर के लिए एक गुस्सा ये साबित करता है कि सोनम ने अपने किरदार को बखूबी निभाया।
एक स्याह किरदार जो कि फिल्म में मुख्य किरदार भी था औऱ जिसके इर्द गिर्द सारी फिल्म बुनी गई थी अगर इस तरह से अपने किरदार से प्यार करता है और खलनायक को फिल्म खत्म होने के बाद दर्शक नफरत करता है तो उसने सच में अपने किरदार से न्याय किया है।
पोस्ट प्रोडक्शन भई इस फिल्म का अच्छा रहा। अच्छी एडिटिंग के कारण ये फिल्म कहीं से ढीली नहीं दिखाई देती है। औऱ ना ही कहीं से भागती हुई तनजर आती है। बस एक समरस गति से आगे बढ़ती रही।
सोनम और धनुष को अदाकारी के लिए बधाई औऱ हिमांशु शर्मा की पटकथा और डायलॉग और आनंद राय का निर्देशन बढ़िया था। कहीं कहीं कैमरा तो बेहतरीन रहा लेकिन ज्यादा प्रयोग ना करते हुए इस फिल्म को दर्शकों के रग को पकड़ने योग्य बनाया गया है।