अब जिंदगी हो गई है बेगानी हमसे,
अब सोचते हैं कि वो समय कब आएगा वापस
कब होंगे हम सब साथ,
कब करेंगे फिर से लड़ाईयां
कब होंगी वो मीठी तकरार
कब फिर टकलवा हमसे रूठेगा
कब झउवा वाली बात दोहराई जाएगी
कब चाचा के करीब होंगे हम
कब होगी सुखिया से बतचीत
कब राजनवा को लेकर लड़ेंगे हम
कब करेंगे फालतू की फ्लर्टिंग मेधा और श्वेता और रितुबनी के साथ
कब होगी सुबह जब हम रवि गोविंद जाएंगे बोटानिकल गार्डन और लेंगे शक्तिवर्धक चूर्ण
कब बैठेंगे हम फिर साथ साथ
वो आशुतोष का जरा सी बात पर तुनक जाना
वो मेधा का बिना बात के ही गुस्सा होना
वो हम चार की चांडाल चौकड़ी
वो भीम की दुकान पर एक ही लौंगलते पर लड़ना
एक गुलाम जामुन के कई हिस्से
एक ही समोसे के कई टिकड़े अब याद दिलाते हैं कि याद रहे कि याद ना आए
एक पल भी में वो लम्हें पलक भिगा जाते हैं
हा..... वो लम्हें... वो किस्से जिन्हें अब हम आने वाली जेनरेशन को ही सुना सकते हैं
January 08, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment