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Varanasi, UP, India
Working with an MNC called Network 18, some call it news channel(IBN7), but i call it दफ्तर, journalist by heart and soul, and i question everything..

January 20, 2010

आखिर क्यों

बढ़ती आत्महत्या की घटनाएं... ये एकदम से युवाओं को कैसा नशा छा गया है.... किसी भी समस्या से पीछा छुड़ाने के लिए सबसे आसान रास्ता उन्हें आत्महत्या ही लगता है... वो क्यों भूल जाते हैं कि उस मां पर क्या गुजरेगी जिसने उसे 9 महीने अपनी कोख में पाल के रखा... फिर एक दिन दर्द सहते हुए उसे इस दुनिया से रूबरू कराती है... उस पिता का क्या होगा जो अपनी हर खुशी को अपने बच्चे पर न्यौछावर कर देता है... उस भाई का क्या होगा उस बहन काय क्या होगा जो हर राखी पर उसका इंतजार करती है.... क्या बढ़ती आत्महत्या आजकल फैशन में शामिल हो गई है.. य़ा फिर ये भी मीडिया का एक विकृत रूप है... जिस तरह से इस वक्त मीडिया में आत्महत्या की खबरे बड़े ही धड़ल्ले से दिखाई जा रही हैं... जिस तरह से हर अखबार के पेज तीन पर आत्महत्याओं की खबर परोसी जा रही हैं... क्या इससे बाल मन या फिर यूं कहें कि युवाओं को ऐसी नई तरकीब मिल गई है... जिससे वो पलायनवादी हो गए हैं..... एक रिपोर्ट के मुताबिक ये तो मीडिया का हू कूसूर है.... अहमदाबाद हो या फिर ब्रिटेन के suicide के बारे में अब सुनने को नहीं मिलता... अब तो लोग घर में ही फांसी लगा लेते हैं... आत्महत्या अब ग्लैमरस न होकर लगता है मजबूरी बनती जा रही है... लेकिन सूसाईट प्वाइंट के ग्लैमर से बाहर निकले नई पीढ़ी की इन हरकतों को भी हम लोग काफी ग्लैमर लुक दे कर इसको बढ़ावा तो नहीं दे रहे..... एक बड़ा सवाल खड़ा होता है...... इसके पीछे क्या कारण है... क्या है... क्यों है... किस लिए हो रहा है.... क्या आधी से ज्यादा आबादी इतना डिप्रेशन में हैं कि वो पलायनवादी हो गई है..... आधी आबादी को बचाओ... ये भविष्य हैं... राष्ट्र निर्माण में सहयोग देने वाले हाथ अपने ही गले क्यों दबा रहे हैं.... पता करो और इसका हल ढूंढने में मदद करो

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