आरुषि को कत्ल हुआ ये बात तो साफ है... लेकिन आरुषि का कत्ल किसी ने नहीं किया... आप हैरान ना हों... देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई यानि कि सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन का यही कहना है... और तो और इस एजेंसी ने कोर्ट से यहां तक कह डाला कि इस केस को बंद ही कर दिया जाए, इसमें कुछ नहीं मिलने वाला.. सही भी है, ढाई साल बाद क्या मिलने वाला था...
ये सवाल सवाल ही रह जाएगा कि आखिरकार 13 साल की मासूम आरुषि को किसने मारा। उसके नौकर हेमराज का कत्ल किसने किया। सीबीआई की लंबी चौड़ी टीम भी आरुषि को इंसाफ नहीं दिलवा सकी। बुधवार शाम करीब चार बजे सीबीआई के अधिकारी अचानक कोर्ट में देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री की फाइल बंद कराने पहुंचे। सीबीआई के हाथों में सबसे बड़ी नाकामी थी। यही वो कोर्ट को बताने आए थे। कि इस हत्याकांड से जुड़े सबूत उन्हें नहीं मिल पा रहे हैं। लिहाजा इस केस को अब बंद कर दिया जाए। ये बात किसी को गले नहीं उतर रही कि आखिर सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट फाइल करने के लिए बुधवार का दिन क्यों चुना। क्योंकि इन दिनों कोर्ट की छुट्टियां चल रही हैं और सीबीआई का स्पेशल कोर्ट बंद चल रहा है। लगता है कि सीबीआई कम से कम येही साबित करना चाहती थी कि वो छुट्टी के दिन भी काम करती है। शायद अपनी नाकामी को छिपाने का इससे बेहतर उपाय सीबीआई को नहीं मिला। सीबीआई की इस नाकामी ने सभी को सकते में डाल दिया हैं। हम बता दे कि आरुषि हेमराज मर्ड़र के से की सुनवाई गाजियाबाद की सीबीआई अदालत में चल रही है।
तमाम उन्नत प्रोसीजर्स जिसमें नार्को टेस्ट जिससे निठारी हत्याकांड का पर्दाफाश कर जांच एजेंसियों ने डंका पीटा था, वो भी असफल हुआ। दरअसल इस जांच में हम मीडिया वाले भी पानी मांगते रहे। जो हर बार ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर में इस केस खिलवाड़ ही करते रहे। आरुषि की हत्या के पहले आरोपी बने उसके पिता डॉक्टर राजेश तलवार अब आरुषि के लिए इंसाफ मांग रहे हैं।
आरुषि और उसके नौकर हेमराज की हत्या नोएडा के जलवायु विहार के उनके गर एल-32 में 15-16 मई 2008 की रात हत्या कर दी गई थी। अगले दिन यानी 16 मई की सुबह आरूषि की लाश उसके बेडरूम में मिली थी जबकि 17 मई को घर के नौकर हेमराज की लाश छत पर बरामद हुई थी। नोएडा पुलिस ने इस मामले में आरूषि के पिता राजेश तलवार को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। बाद में सीबीआई को केस ट्रांसफर होने पर सीबीआई ने तीन नौकरों राजकुमार, विजय मंडल, कृष्णा को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लेकिन सीबीआई कुछ साबित नहीं कर पाई. लिहाजा दोनों को जमानत मिल गई।
सीबीआई ने हर कोशिश कर ली। लेकिन वो हत्या में इस्तेमाल हथियार तक नहीं बरामद कर पाई। खास बात ये है कि सबूत ढूंढने में जुटी सीबीआई ने तीनों नौकरों के साथ साथ आरूषि के पिता राजेश तलवार और मां नुपुर तलवार की हर साइंटिफिक जांच कराई लेकिन फिर भी वो नाकाम हुई। सीबीआई की नाकामी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन इन सवालों के बीच आरुषि को इंसाफ मिलना रह गया।
खास बात ये है कि हमारे देश की जांच एजेंसिया हमेशा से हाई प्रोफाइल केसों में फेल ही होती आ रही हैं। क्या आपको जेसिका लाल हत्यकांड याद है। उस दिन दिल्ली की रातें कुछ अधिक गर्म थीं। साल 1999, अप्रैल की 29 तारीख। दिल्ली की मशहूर सोशलाइट बीना रमानी ने अपने नए रेस्टोरेंट में एक नाइट पार्टी का आयोजन किया था। जिसमें कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने शिरकत की थी। रात के करीब 11.15 बजे मनु शर्मा अपने दोस्तों के साथ इस रेस्टारेंट में पहुंचा। इस पार्टी में जेसिका लाल बार टेंडर के रोल में थी। मनु ने जेसिका से और अधिक शराब मांगी तो जेसिका ने यह कह कर शराब देने से मना कर दिया था कि शराब खत्म हो चुकी है। इसके बाद क्या था, मनु ने एक के बाद एक दो गाली दाग दीं। मीडिया और महिला संगठनों के दबाव के बाद इस केस का ट्रायल शुरु हुआ। लेकिन इसमें पूरे सात साल लग गए। इसके बाद बीस दिसंबर 2006 को मनु शर्मा को इस केस में उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
तो क्या एक बार फिर मीडिया और गैर सरकारी संगठनों को एखजुट होना पड़ेगा। क्या एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में कोई जनहित याचिका दायर होगी। जसमें सुप्रीम कोर्ट ये बात पूछेगा कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा। ठीक उसी तरह जिस तरह ये तवाल उठा था 'व्हू किल्ड जेसिका'। ये सवाल फिर उठेगा 'व्हू किल्ड आरुषि देन'। ये देखने वाली बात होगी। तब तब ये मान कर चलिए, इस कत्ल का कोई कातिल नहीं है।
ये सवाल सवाल ही रह जाएगा कि आखिरकार 13 साल की मासूम आरुषि को किसने मारा। उसके नौकर हेमराज का कत्ल किसने किया। सीबीआई की लंबी चौड़ी टीम भी आरुषि को इंसाफ नहीं दिलवा सकी। बुधवार शाम करीब चार बजे सीबीआई के अधिकारी अचानक कोर्ट में देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री की फाइल बंद कराने पहुंचे। सीबीआई के हाथों में सबसे बड़ी नाकामी थी। यही वो कोर्ट को बताने आए थे। कि इस हत्याकांड से जुड़े सबूत उन्हें नहीं मिल पा रहे हैं। लिहाजा इस केस को अब बंद कर दिया जाए। ये बात किसी को गले नहीं उतर रही कि आखिर सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट फाइल करने के लिए बुधवार का दिन क्यों चुना। क्योंकि इन दिनों कोर्ट की छुट्टियां चल रही हैं और सीबीआई का स्पेशल कोर्ट बंद चल रहा है। लगता है कि सीबीआई कम से कम येही साबित करना चाहती थी कि वो छुट्टी के दिन भी काम करती है। शायद अपनी नाकामी को छिपाने का इससे बेहतर उपाय सीबीआई को नहीं मिला। सीबीआई की इस नाकामी ने सभी को सकते में डाल दिया हैं। हम बता दे कि आरुषि हेमराज मर्ड़र के से की सुनवाई गाजियाबाद की सीबीआई अदालत में चल रही है।
तमाम उन्नत प्रोसीजर्स जिसमें नार्को टेस्ट जिससे निठारी हत्याकांड का पर्दाफाश कर जांच एजेंसियों ने डंका पीटा था, वो भी असफल हुआ। दरअसल इस जांच में हम मीडिया वाले भी पानी मांगते रहे। जो हर बार ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर में इस केस खिलवाड़ ही करते रहे। आरुषि की हत्या के पहले आरोपी बने उसके पिता डॉक्टर राजेश तलवार अब आरुषि के लिए इंसाफ मांग रहे हैं।
आरुषि और उसके नौकर हेमराज की हत्या नोएडा के जलवायु विहार के उनके गर एल-32 में 15-16 मई 2008 की रात हत्या कर दी गई थी। अगले दिन यानी 16 मई की सुबह आरूषि की लाश उसके बेडरूम में मिली थी जबकि 17 मई को घर के नौकर हेमराज की लाश छत पर बरामद हुई थी। नोएडा पुलिस ने इस मामले में आरूषि के पिता राजेश तलवार को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। बाद में सीबीआई को केस ट्रांसफर होने पर सीबीआई ने तीन नौकरों राजकुमार, विजय मंडल, कृष्णा को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लेकिन सीबीआई कुछ साबित नहीं कर पाई. लिहाजा दोनों को जमानत मिल गई।
सीबीआई ने हर कोशिश कर ली। लेकिन वो हत्या में इस्तेमाल हथियार तक नहीं बरामद कर पाई। खास बात ये है कि सबूत ढूंढने में जुटी सीबीआई ने तीनों नौकरों के साथ साथ आरूषि के पिता राजेश तलवार और मां नुपुर तलवार की हर साइंटिफिक जांच कराई लेकिन फिर भी वो नाकाम हुई। सीबीआई की नाकामी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन इन सवालों के बीच आरुषि को इंसाफ मिलना रह गया।
खास बात ये है कि हमारे देश की जांच एजेंसिया हमेशा से हाई प्रोफाइल केसों में फेल ही होती आ रही हैं। क्या आपको जेसिका लाल हत्यकांड याद है। उस दिन दिल्ली की रातें कुछ अधिक गर्म थीं। साल 1999, अप्रैल की 29 तारीख। दिल्ली की मशहूर सोशलाइट बीना रमानी ने अपने नए रेस्टोरेंट में एक नाइट पार्टी का आयोजन किया था। जिसमें कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने शिरकत की थी। रात के करीब 11.15 बजे मनु शर्मा अपने दोस्तों के साथ इस रेस्टारेंट में पहुंचा। इस पार्टी में जेसिका लाल बार टेंडर के रोल में थी। मनु ने जेसिका से और अधिक शराब मांगी तो जेसिका ने यह कह कर शराब देने से मना कर दिया था कि शराब खत्म हो चुकी है। इसके बाद क्या था, मनु ने एक के बाद एक दो गाली दाग दीं। मीडिया और महिला संगठनों के दबाव के बाद इस केस का ट्रायल शुरु हुआ। लेकिन इसमें पूरे सात साल लग गए। इसके बाद बीस दिसंबर 2006 को मनु शर्मा को इस केस में उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
तो क्या एक बार फिर मीडिया और गैर सरकारी संगठनों को एखजुट होना पड़ेगा। क्या एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में कोई जनहित याचिका दायर होगी। जसमें सुप्रीम कोर्ट ये बात पूछेगा कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा। ठीक उसी तरह जिस तरह ये तवाल उठा था 'व्हू किल्ड जेसिका'। ये सवाल फिर उठेगा 'व्हू किल्ड आरुषि देन'। ये देखने वाली बात होगी। तब तब ये मान कर चलिए, इस कत्ल का कोई कातिल नहीं है।
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