वाराणसी से श्यामबिहारी श्यामल इस चुनाव में भी तमाम फायरब्राण्ड मुद्दे हैं। गर्मजोश बहसें हैं। शीतल फुहारों जैसे वायदे-आश्र्वासन हैं व चौतरफा धुआंधार अभियान भी! किंतु, यह सब गूंजने-दिखने के बावजूद आज चुनाव कैसे मूल जमीनी सवालों से कटकर रह गये हैं, इसका सबसे जीवंत सुबूत है चुनावी मुद्दों में किसानों से संबंधित चिंता की नगण्य उपस्थिति। किसी भी एक दल या पक्ष की बात नहीं, ज्यादातर योद्धाओं का तो यही हाल देखने में आ रहा है कि वे किसानों की मुसीबतों की ओर से लगभग गाफिल हैं। कहीं से लग ही नहीं रहा कि यह उस कृषि-प्रधान देश का सबसे बड़ा चुनाव है जहां हाल के दिनों में विभिन्न हिस्सों में किसानों ने लगातार खुदकुशी की है। मुल्क के अन्नदाता की इन आत्महत्याओं ने किसे नहीं हिलाकर रख दिया! बेशक इस दिशा में सरकार की ओर से कई कदम भी उठाये गये किंतु अब जबकि चुनाव हो रहे हैं किसी पक्ष की ओर से किसानों के सवाल को अपना मुख्य या प्रमुख एजेण्डा बनाने जैसी संजीदगी सामने नहीं आयी है। किसी दल या पक्ष के वायदे-आश्र्वासन में किसानों की खुशहाली के लिए कोई ठोस राष्ट्रव्यापी योजना-परिकल्पना या संकल्प नहीं झलक पा रहा है। पूर्वाचल में भी यह किसी एक लोकसभा क्षेत्र की बात नहीं, ज्यादातर क्षेत्रों में किसान सर्वाधिक उपेक्षित व बदहाल है। सिंचाई व्यवस्थाएं ध्वस्तप्राय हैं। जो क्षेत्र सिंचाई संसाधनों से वंचित हैं वहां के किसानों का तो दु:ख अथाह है ही, जहां नहरें-कैनाल वगैरह उपलब्ध हैं वहां के किसान भी सुखी नहीं दिख रहे। कारण कि ऐसे ज्यादातर सिंचाई-उपक्रम आज खस्ताहाल हैं, चरमराकर दम तोड़ रहे हैं। न समुचित रख-रखाव, न देखभाल।
इसी संदर्भ में यहां पूर्वाचल के कुछ प्रमुख लोकसभा क्षेत्रों पर एक दृष्टिपात
बलिया : सुरहाताल, एक सवाल -?करीब बावन किलोमीटर क्षेत्र को सिंचित करने के उद्देश्य से 1956-57 में निर्मित सुरहाताल पम्प कैनाल (कुछ समय पहले इसका नया नामकरण हुआ है चौधरी चरण सिंह पम्प कैनाल) लगभग मृतप्राय है। यह एक ही साथ बलिया व सलेमपुर, दोनों लोकसभा क्षेत्रों से सम्बद्ध है किंतु इसे इस चुनाव में किसी क्षेत्र में किसी दल ने इसकी ओर मुड़करं देखना भी जरुरी नहीं समझा। इसकी तमाम मशीनें जर्जर हो चुकी हैं। कोई देखभाल करने वाला नहीं है। किसान आंदोलन करके थक-हारकर बैठ सिर पर हाथ धरकर बैठ चुके हैं। 7637 हेक्टेयर कृषि-भूमि को सिंचित करने के लक्ष्य से बने इस कैनाल की मौजूदा हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इससे जुड़ी छोटी नहरों (माइनर) में कैथवली नहर, खरौनी नहर, देवडीह नहर, चांदपुर नहर व सहंतवार नहर में पिछले करीब दशक भर से एक बूंद भी पानी नहीं पहुंच सका है।
राबर्ट्सगंज : कनहर व जसौली - राबर्ट्सगंज संसदीय क्षेत्र में स्थित करीब बत्तीस साल पहले की कनहर परियोजना को अब मुर्दा कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। कारण कि उप्र के उक्त क्षेत्र के अलावा झारखंड (तत्कालीन बिहार का क्षेत्र) व छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश का इलाका) की हजारों-हजार एकड़ कृषि-भूमि को सिंचित करने के उद्देश्य से परिकल्पित उक्त परियोजना पर करीब एक अरब की धनराशि तो खर्च हो चुकने के बावजूद पिछले करीब डेढ़ दशक से इसका काम ठप है। इसका पचास प्रतिशत काम हो चुका था किंतु पता नहीं क्यों सरकार ने इसे एकदम उपक्षित कर दिया। अब इसकी मशीनें, पाइप लाइनें व भवनों के तमाम सामान तक कबाड़-चोरों के निशाना बने हुए हैं। अब तक काफी कुछ गायब किया जा चुका है। उसी तरह, नगवां विकास खंड की प्रस्तावित जसौली सिंचाई परियोजना की भी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। इसके तहत नगवां बांध को उच्चीकृत करने व हंसुआ नाला को बांधने का प्रस्ताव था जिससे करीब दो लाख किसानों को लाभ सम्भावित था। इस चुनाव में इसकी ओर ध्यान देना किसी ने जरूरी नहीं समझा।
चंदौली : ढनढनाता कटोरा - सिंचाई संसाधनों की प्रचुरता के लिए जाना जाने वाला यह क्षेत्र धान का कटोरा कहा जाता रहा है किंतु आलम यह है कि आज इसकी तमाम कैनाल-नहरें समुचित देखरेख के अभाव में अपनी क्षमता खोती चली जा रही हैं। भूपौली पम्प कैनाल व नारायणपुर पम्प कैनाल परियोजना हों या मूसाखांड़, लतीफशाह व चंद्रप्रभा समेत अन्य कोई भी बंधा, सबकी हालत लगभग खस्ता है। कर्मनाशा लेफ्ट हो या कर्मनाशा राइट, दोनों प्रमुख नहरें भी उसी तरह उपेक्षित। नरहां व नरंगी पम्प कैनालों की हालत भी अच्छी नहीं। प्राय: सबकी मशीनें देखरेख के अभाव का संत्रास झेल रही हैं। बिजली संकट ने जले पर नमक जैसी हालत पैदा कर दी है।
घोसी : दोहरीघाट पम्प कैनाल - आजादी के तत्काल बाद प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत ही स्थापित दोहरीघाट परियोजना का हाल किसी से दुपा नहीं। इसकी उपेक्षा व अनदेखी का आलम यह कि करीब एक सौ पंद्रह किलोमीटर लम्बाई वाली इस परियोजना के बारह में से नौ पम्प वर्षो से बंद पड़े हैं लेकिन इस चुनाव के मौसम में भी किसी ने इसकी ओर दृष्टिपात नहीं किया।
गाजीपुर : किसान बेहाल - गाजीपुर क्षेत्र में गंगा से जल लेने वाली देवकली पम्प कैनाल चालू हालत में तो है किंतु अपनी पूरी क्षमता से कार्य करने में सक्षम नहीं। कारण है बिजली व देखरेख की कमी। उसी तरह गंगा पर आधारित वीरपुर लिफ्ट कैनाल हो या गहमर लिफ्ट कैनाल अथवा तमसा नदी पर आधारित बहादुरगंज लिफ्ट कैनाल, उक्त सभी सिंचाई परियोजनाएं अपनी करीब साठ क्यूसेक की क्षमता का आधा से भी कम लाभ ही दे पा रही हैं। उसी तरह शारदा सहायक नहर से जुड़े क्षेत्र के किसानों का दर्द यह है कि उन्हें उस समय पानी दिया जाता है जब इसकी कोई जरुरत नहीं होती। इससे उन्हें परेशानी का ही सामना करना पड़ता है।
लालगंज : सिंचाई का संकट - लालगंज लोकसभा क्षेत्र में सुल्तानपुर से आने वाली शारदा सहायक खण्ड 23 हो या अम्बेडकरनगर से आकर आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र व लालगंज क्षेत्र के भी कुछ हिस्सों को कवर करने वाली शारदा सहायक खण्ड 31, दोनों की हालत खस्ता है। दोनों चौदह-पंद्रह क्यूसेक पानी की अपेक्षित है किंतु यह सात-आठ क्यूसेक भी मुश्किल से पूरी कर पाती है। इस चुनाव में इसकी ओर भी किसी पक्ष ने नजर डालने की आवश्यकता नहीं महसूस की।
जब होते थे विकास पर वोट
जौनपुर से राजेन्द्र कुमार जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे पं.दीनदयाल उपाध्याय को संसद में जाने से रोकने लेकिन भगवा वस्त्रधारी स्वामी चिन्मायानंद को उसी संसद में पहुंचाने वाले जौनपुर संसदीय क्षेत्र में विकास कोई मुद्दा नहीं है। यहां तो जाति के आधार पर प्रत्याशी को जिताने व हराने को लेकर बहस- मबाहिसा खूब चलता है। अमीर-गरीब,पढ़े-लिखेव निरक्षर सब एक जैसी भाषा बोलते हैं। प्रत्याशियों की ओर से गिनाये जा रहे विकास कार्यो और आगे के वादों को यहां कोई सुनने को तैयार ही नहीं है। बसपा के धनंजय सिंह व सपा के पारसनाथ यादव की दबंगई की चर्चा करते हुए यहां के लोग उन्हें अपना हीरो बताने में जुटे हैं। भाजपा की प्रत्याशी सीमा द्विवेदी की इनको दी जा रही चुनौती भी लोगों की जुबां पर है। रविवार को वाराणसी के बेनिया बाग मैदान में बसपा प्रमुख मायावती के मुख्तार अंसारी को गरीबों का मसीहा बताये जाने, फिर इसके अगले ही दिन इण्डियन जस्टिस पार्टी के प्रत्याशी बहादुर सोनकर की हुई संदिग्ध मौत की घटना के बाद से तो यहां जातिगत चर्चाओं में और इजाफा हुआ है। अब तो तमाम गांवों में लोग जातियों के हिसाब से प्रत्याशी की जीत-हार का गणित बिठाने में मशगूल दिखते हैं।
सदर, मल्हनी, शाहगंज, मुंगरा बादशाहपुर व बदलापुर विधानसभा क्षेत्र में चुनावी तस्वीर कुछ ऐसी ही दिखायी देती है। ऐतिहासिक जौनपुर के शहरी इलाके में भी कुछ ऐसा ही आलम है। यहां पूर्वांचल कताई मिल व सतरिया औधोगिक क्षेत्र की अधिकांश इकाइयों के बंद हो जाने पर कोई चिंता नहीं जताता और न यहां के तेल उद्योग के बदहाली में पहुंच जाने की ही बात में किसी को दिलचस्पी है। यहां बने भव्य अटाला मस्जिद, शाही किला, शाही पुल को देखकर यही लगता है कि जिले में विकास को लेकर लोगों राजनीतिक रूप से बेहद जागरूक होंगे लेकिन यहां के लोगों से बातचीत के बाद यह धारणा सच नहीं साबित हो पाती है। मौलाना सफदर हुसैन जैदी इसकी वजह यहां के लोगों के कामकाज में व्यस्त रहना बताते हैं। उनके अनुसार यह पूरा इलाका जाति के नाम पर बंटा हुआ है। यहां के लोग अपनी, अपने पड़ोसी तथा जाति के लोगों की चिन्ता अधिक करते हैं। नये परिसीमन में रारी विधान सभा का नाम मल्हनी हो गया है। वहां रहने वाले पप्पू शर्मा चुनाव प्रचार में विकास के मुददों पर कोई जोर न होने के सवाल पर कहते हैं कि विकास के नाम पर पिछले कई चुनाव जीते गये लेकिन अपेक्षित विकास नहीं हो सका। इसी वजह से अब यहां अपनी ही बिरादरी के व्यक्ति को चुनाव जिताने की लहर चल रही है। शाही पुल के समीप रहने वाले जावेद कहते है कि यहां धनंजय सिंह को कोई बाहुबली नहीं कहता। मायावती जब मुख्तार अंसारी को गरीबों का मसीहा कहती है तो फिर धनंजय यहां कैसे बाहुबली हो गये। पारसनाथ को लेकर भी कुछ ऐसी धारणा यहां के लोगों की है और उनके लोग तो उन्हें हीरो की संज्ञा देते हैं।
क्षेत्र के लोगों की इसी मानसिकता को भांपकर कई राजनीतिक दलों ने यहां पर प्रत्याशी उतारे है। चुनाव मैदान में 16 प्रत्याशी हैं पर इनमें सपा, बसपा, भाजपा एवं आरके चौधरी की पार्टी से चुनाव लड़ रहे राज पटेल तथा उलेमा कांउसिल के डा.तसलीम को लेकर ही बहस छिड़ती हैं। बसपा ने धन एवं बाहुबल से मजबूत धनंजय सिंह को प्रत्याशी बनाया है जो कि बीते लोकसभा चुनावों में जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़े और तीसरे स्थान पर रहे थे। धनंजय इसी संसदीय सीट की रारी विधानसभा से 2007 में लोजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे और बाद में वह बसपा के साथ आ गये। उनके इस पाला बदल के बाद बसपा प्रमुख ने यहां से बीते लोकसभा में सपा के टिकट पर चुनाव जीते पारसनाथ यादव के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया। अब सपा और भाजपा के लोग उन्हें बाहुबली बताते हुए उनके कारनामों का ब्यौरा भाषणों में जमकर बताते हैं। सपा प्रत्याशी पारसनाथ लम्बे समय से यहां की राजनीति में सक्रिय हैं और दो बार यहीं से संसद में पहुंच चुके हैं। एक स्टिंग आपरेशन के कारण वह काफी चर्चित रहे। इनके मुकाबले भाजपा ने इसी संसदीय क्षेत्र की गड़वारा विधानसभा से चुनाव जीती सीमा द्विवेदी को मैदान में उतारा है। सीमा द्विवेदी ने यहां के जातीय समीकरण में हलचल मचा दी है। इसकी मुख्य वजह उनके पक्ष में ब्राहम्णों का काफी हद तक एकजुट होते दिखना है।
यहां के हरलालका रोड पर एक दुकान मालिक सुन्दर लाल कहते हैं कि ब्राहमण समाज की राय इस बार किसी एक प्रत्याशी के पक्ष में मतदान की बन रही है। ब्राहमण समाज में मची इस हलचल को देखते हुए सपा ने ओम प्रकाश दुबे उर्फ बाबा दुबे को अपने साथ ले लिया है। बाबा दुबे पिछली बार बसपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे थे। अब यह माना जा रहा है कि उनके सपा के साथ आने पर पारसनाथ को ब्राहमण मत भी मिलेंगे क्योंकि क्षेत्र के ठाकुर मतदाता धनंजय के साथ खड़े बताये जाते है। चुनाव में जातियों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाने में आरके चौधरी की राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी के प्रत्याशी राज पटेल भी अहम रोल अदा कर रहे हैं। पटेल समाज उनको लेकर हर विधानसभा में अपनी बिरादरी के मतों को एकजुट करने में जुटा है। धनंजय के अनुसार हर प्रत्याशी के पक्ष में उसकी पार्टी और जाति के लोग साथ आते हैं, इसमें गलत क्या है। तो पारसनाथ कहते हैं कि ऐसा पहले भी होता रहा है,रही बात चुनाव में विकास के बजाय प्रत्याशी की जाति एवं दबंगई पर चर्चा तो यहां की जनता के स्तर से हो रहा है। हम तो विकास की बात चुनाव भाषणों में कहते ही हैं।
April 14, 2009
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