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Varanasi, UP, India
Working with an MNC called Network 18, some call it news channel(IBN7), but i call it दफ्तर, journalist by heart and soul, and i question everything..

April 29, 2009

आराम

जब हुआ चिंतित

अकिंचन इस वन में

कोई आवाज ना आई

किसी ने पुकारा नहीं

आगे बढ़ा बढ़ता गया

किसी की तलाश में

शायद कहीं वो मिलेगा

मगर मिलता नहीं

फिर भी ढूंढता हूं कि

कहीं मिल जाएगा

कोई ठौर ठिकाना

वहां जहां मिलेगा थोड़ा

आराम

April 21, 2009

हम पाक साफ हैं, सारे आरोप बेबुनियाद हैं-नेता जी

दूसरे चरण के मतदान का प्रचार खत्म हो चुका है। पहले चरण में कई ऐसे उम्मीदवार थे जिनका आपराधिक इतिहास है। दूसरे चरण में भी फिर ऐसे ही कई नाम सामने हैं जो कि जरायम की दुनिया से वास्ता रखते हैं। वोटिंग का दूसरा दरवाजा 23 अप्रैल को खुल जाएगा, लेकिन सावधान इस दरवाजे से काली दुनिया के सफेदपोश लोग भी दाखिल होने की फिराक में हैं। काले चेहरे के पीछे सफेद खादी का चोला ओढ़े वो जनता की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वाच के मुताबिक दूसरे चरण में चुनाव लड़ रहे 1633 उम्मीवारों में से 288 यानि करीब 17.63 फीसदी प्रत्याशी क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले हैं।
धनंजय सिंह- जौनपुर, बीएसपी, 22 केस, 21 में बरी, 1 केस जारी, हत्या, हत्या की कोशिश, लूट
अतीक अहमद- फूलपुर, अपना दल, 41 केस, हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, एक्सटॉर्शन
विजय कुमार शुक्ला, वैशाली, बिहार, जेडीयू, 25 केस, हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग,आर्म्स एक्ट
मित्र सेन, फैजाबाद, एसपी, 20, हत्या, हत्या की कोशिश, डकैती
समरेश सिंह, धनबाद, बीएसपी, 15 केस, हत्या की कोशिश, सामूहिक हत्या की कोशिश (culpable homicide )
अक्षय प्रताप सिंह- प्रतापगढ़, एसपी, 5 केस, हत्या की कोशिश, एक्टॉर्शन
गिरीश पासी- कौशांबी,यूपी, बीएसपी, 9 केस, हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग

जुर्म की दुनिया जब जिक्र आता है तो इनका नाम जरूर लिया जाता है। सत्ता की हनक इनके सिर चढ़कर बोलती है। सिर पर राजस्थानी पगड़ी और आंखों में सत्ता की चमक। ये रौबदार शख्सियत पहचान की मोहताज नहीं। क्योंकि जनता इसे अच्छी तरह पहचानती है क्राइम के बायोडाटा में इनके खिलाफ गंभीर से गंभीर मुकदमों का दाग है। इनके खिलाफ कई मुकदमें दर्ज थे लेकिन ज्यादातर केस में या तो गवाह पलट गया या फिर सबूत नहीं मिला..इन मुकदमों में हत्या, हत्या को कोशिश, हत्या की साजिश, लूट, आर्म्स एक्ट, गुंडा टैक्स वसूली शामिल है।

धनंजय सिंह--
रेलवे में ठेकेदारी, लखनऊ नगर निगम की ठेकेदारी, विकास प्राधिकरण,लखनऊ की ठेकेदारी और कई जिलों में पीडब्लूडी की ठेकेदारी में हस्तक्षेप का आरोप धनंजय पर कई बार लग चुका है। इनका दावा है अगर जीत गए तो सिर्फ विकास होगा।
वहीं धनंजय सिंह का कहना है जौनपुर के नौजवानों को रोजगार और जनपद का चौतरफा विकास होगा। इसके पहले के चुनाव में सरकारी गुंडई के चलते उत्पीडन का शिकार होना पड़ा था लेकिन इस बार ठीक है और पूरे प्रदेश की अस्सी सीटों में एक या दो को छोड़कर सभी सीटें बीएसपी जीतेगी।

रिजवान जहीर--
अहिंसा के उपदेशक भगवान बुद्ध की धरती से बीएसपी के उम्मीदवार। लेकिन इलाके की जनता इनके नाम से ही खौफ खाती है। इनके पहुंचने से पहले ही पहुंच जाती है इनके नाम की दहशत। यूपी के बलरामपुर इलाके की तुलसीपुर विधानसभा से रिजवान दो बार विधायक और बलरामपुर सीट से एक बार सांसद रह चुके हैं। बीएसपी के ही टिकट पर रिजवान पिछला चुनाव एसपी के एक और माफिया प्रत्याशी बृजभूषण शरण सिंह से हार चुके हैं। इस बार श्रावस्ती से उतरे हैं चुनाव मैदान में। लोकतंत्र में तो हर किसी को चुनाव लड़ने की इजाजत है। पुलिस रिकार्ड में रिजवान पर 23 आपराधिक मुक़दमें दर्ज थे। इनमें हत्या, हत्या की कोशिश, बलवा, अपहरण, लूट जैसे कई संगीन मामले शामिल हैं। लेकिन कहा जाता है कि अपने रसूख और सत्ता के सहयोग से रिजवान ने लगभग सारे मुक़दमे ख़त्म करा दिए। बलरामपुर के हरैया थाने में आज भी रिजवान की हिस्ट्रीशीट मौजूद है। रिजवान डंके की चोट पर कहते हैं कि हां मैं बाहुबली हूं।
रिजवान जहीर कहना है कि एक मुकदमा हमारे ऊपर है वो भी हमे याद नहीं है कब दर्ज हुआ है आरोप सिद्ध होगा तो राजनीति छोड़ दूंगा। मैं ताकतवर हूं दबंग हूं, बाहुबली हूं, मेरे ऊपर पुराने मुकदमे दस साल पहले दर्ज हुए थे वो खत्म हो गए।
पर्चा दाखिले के दौरान दिए गए हलफनामें में रिजवान जहीर ने सिर्फ एक मुकदमा दिखाया है। मजे की बात ये है कि रिजवान को ये भी याद नहीं कि ये मुकदमा दर्ज कब हुआ था।

विजय चौगले--
इलाके में इनका काफी दबदबा है। विजय चौगले के खिलाफ सात मामले दर्ज हैं। जिसमें मारपीट, धमकाना, भीड़ इकट्ठा करने जैसे मुकदमें शामिल हैं। सात साल पहले विजय पर हत्या का मुकदमा दर्ज था लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत से क्लीन चिट मिल गई। विजय चौगले के परिवार और अपराध का नाता पुराना है। विजय के दोनों भाईयों की हत्या कर दी गई थी। दोनों के ही क्रिमिनल रिकॉर्ड थे। लेकिन विजय चौगले अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को मामूली बता रहे हैं।
विजय चौगुले कहना है, हमारे उपर जो मामले है वह सभी राजनैतिक मामले है। इसमें कोई ऐसे मामले नही जिसमें मुझे जेल हुई हो। जो भी मामले है मारामारी के है। जमाव बंदी है। और धमकी के है। जो मेरे पर अपराधिक मामले होने की बात कर रहे है उनका ब्रेन म्पैपींग करवाया, मेरा भी ब्रेन मैपींग हो तो पता चल जाएगा।

जनता भी कश्मकश में है। उन्हें अच्छे नेता चाहिए लेकिन उनके पास विकल्प बहुत कम हैं। चढ़ गुंडन की छाती पर मुहर लगाओ हाथी पर, का नारा देने वाली बसपा की भी फेहरिश्त छोटी नहीं है। उम्मीदवारों की दास्तान बयां करने के लिए इनका इतिहास ही काफी है। हर पार्टी कहती है कि राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ नहीं होनी चाहिए। लेकिन खुद ही क्रिमिनल को टिकट दे देती है।

डॉन से पंगा, किसने की जुर्रत

अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई को किसी ने अगवा करके हत्या कर दी गई। भारत के मोस्ट वांटेड अपराधी दाऊद इब्राहिम के भाई को अगवा कर कहीं ले जाया गया वो शख्स जिसकी परछाई आजतक भारतीय जांच एजेंसियां छू तक नहीं पाईं उसके जिगरी छोटे भाई नूरा को अगवा करने के बाद बेरहमी से कत्ल कर दिया गया औऱ कत्ल के बाद नूरा की लाश दाऊद के घर के सामने फेंक दी गई। दुनिया के मोस्ट वांटेड अपराधी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई नूरा के कत्ल का असली सच क्या है। खबर आई कि बलूचिस्तान के रहमान सरदार गैंग ने नूरा को अगवा करने के बाद उसका कत्ल कर दिया। लेकिन क्या एक अदने से डाकू की हिम्मत कि वो दुनिया के सबसे बड़े डॉन के भाई की हत्या कर सके। कौन है जिसने रची दाऊद के भाई की हत्या की साजिश। वो कौन है जिसने पाकिस्तान में रहकर दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादियों में से एक दाऊद को चुनौती देने की हिम्मत दिखाई।

आखिर कौन है वो जो पाकिस्तान में रहकर दाऊद का जानी दुश्मन बन गया आखिर कौन है वो जिसने दाऊद के छोटे भाई को अगवा कर ले गया। सालों से उसके साथी और राजदार को बेदर्दी से मारी गईं सात गोलियां। दुश्मनी, जुनून और छल की ये कहानी खुद भाई के घर में बगावत की कहानी है। ये बगावत खुद दाऊद के घर पर ही हुई। और इस बगावत की कीमत चुकाई उसके अपने खून ने दाऊद इब्राहिम जिसकी तस्वीर भी कम से कम 20 साल पुरानी है। उसका भाई मार डाला गया खुलेआम और वो इंसान हाथ मलता रह गया जिसका डंका 19 देशों में बजता है जिसके एक इशारे पर मुल्कों में धमाके हो जाते हैं हथियारों की खेप पहुंच जाती है, उसके गुर्गे किसी की भी सुपारी उठा लेते हैं। उस दाऊद के भाई नूरा की सुपारी किसने दी, और किसने ली। फिल्मों में तो देखा है अंडरवर्ल्ड में दरार कैसे पड़ती है। लेकिन अब वही दरार असली जिंदगी के असली अंडरवर्ल्ड में भी पड़ रही है। अंडरवर्ल्ड में चल रही चर्चा और मुंबई पुलिस के सूत्रों की मानें तो नूरा के कत्ल के पीछे दो चेहरे नजर आ रहे हैं, लेकिन असलियत में वो है सिर्फ एक ही चेहरा। पहला नाम - रहमान डकैत, कराची का छुटभैया डॉन लेकिन क्या उसकी इतनी हैसियत है कि वो सीधे सीधे दाऊद के भाई की जान ले ले। ये बात जरा परेशआन करती है कि आखिर कैसे हो सकता है कि दाऊद के भाई को पाकिस्तान में ही अगवा किया जाए और दाऊद कुछ भी ना कर पाए। जो दाऊद खुद आईएसआई के घेरे में रहता है वो ये पता न लगा पाए कि नूरा इब्राहिम को अगवा करने के बाद कहां ले जाया गया। नूरा का कत्ल जितनी बेरहमी से किया गया वो दाऊद सपने में भी नहीं सोच सकता था।

क्या दाऊद सालों साल किसी जहरीले सांप को दूध पिलाता रहा। दाऊद इब्राहिम को चुनौती वही शख्स दे सकता है जिसे दाउद की ताकत का अंदाजा हो। जो उसके हर राज जानता हो। सूत्रों की माने तो ये शख्स कोई और नहीं छोटा शकील है। छोटा शकील ने ही नूरा की हत्या करवाई है। वलूचिस्तान का रहमान सरदार गैंग तो सिर्फ एक मोहरा था। नूरा का असली कातिल छोटा शकील ही है। जब भी दाऊद का ये बीस साल पुराना चेहरा चमकता है, उसी चेहरे के साथ ये चेहरा भी नजर आता है, छोटा शकील। दाऊद का सबसे भरोसेमंद सिपाही, दाऊद के सबसे भरोसेमंद सिपाही ने ही उसकी पीठ में छुरा भोंक दिया।
दाऊद के भाई नूरा की हत्या किसी और ने नहीं छोटा शकील ने करवाई है। खुफिया सूत्रों से ये पुख्ता जानकारी मिली है कि छोटा शकील अब दाऊद का राइट हैंड नहीं रहा। दुनिया भर में खौफ का दूसरा नाम बन चुकी डी कंपनी में दरार पड़ चुकी है। दाऊद के भाई नूरा का कत्ल डी कंपनी में पड़ी दरार का सबसे बड़ा सच है। दाऊद के इलाके में रहकर दाऊद के भाई को मरवाने की हिम्मत सिर्फ छोटा शकील ही दिखा सकता है। हत्या के पहले से ही छोटा शकील पाकिस्तान छोड़ कर फरार है। नूरा का कत्ल करवाने से पहले छोटा शकील बड़ी ही चालाकी के साथ पाकिस्तान से निकल भागा है। भाई के कत्ल से बौखलाया दाऊद छोटा शकील को खोज रहा है लेकिन इस वक्त वो कहां है कोई नहीं जानता। या शायद सिर्फ पाकिस्तान की एक सरकारी एजेंसी के कुछ लोग जानते हैं।

ये साजिश रची गई थी 22 मार्च को। लेकिन बड़ी बात तो ये है कि आखिर 22 मार्च का सच क्या है। क्या हुआ था उस दिन। खुफिया सूत्रों की मानें को कराची में 22 मार्च को नूरा और अनीस इब्राहिम ने छोटा शकील को काफी बेइज्जत किया था, उसके साथ मारपीट भी की थी। इसी दिन छोटा शकील ने ठान लिया कि वो नूरा को किसी कीमत पर नहीं छोड़ेगा। 22 मार्च 2009 यानि नूरा इब्राहिम के कत्ल से 9 दिन पहले। कराची के एक कमरे में कुछ ऐसा हुआ जो किसी को नहीं मालूम। 22 मार्च को उस वक्त कमरे में मौजूद थे सिर्फ तीन लोग। दाऊद के दोनों भाई नूरा और अनीस इब्राहिम और छोटा शकील। खुफिया सूत्रों से मिली पुख्ता जानकारी के मुताबिक 22 मार्च को इसी कमरे में नूरा और अनीस ने छोटा शकील के साथ मारपीट की थी। खबर तो यहां तक है कि नूरा ने खुद छोटा शकील को थप्पड़ भी मारा था। तीन हजार करोड़ की डी कंपनी में नंबर दो पर मौजूद छोटा शकील की इतनी बेइज्जती पहले कभी नहीं हुई थी। छोटा शकील के साथ मारपीट आसान बात नहीं लगती। लेकिन यहां मामला भाई-भाई का था। दाऊद के भाइयों ने छोटा शकील पर अपने भाई अनवर की मदद करने का इल्जाम लगाया।

छोटा शकील के भाई अनवर को काफी पहले ही डी कंपनी से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। अनवर इस वक्त बांग्लादेश में फर्जी करेंसी...नकली सीडी और हवाला का धंधा करता है। 22 मार्च को अनीस और नूरा ने छोटा शकील को साफ कह दिया था कि डी कंपनी के बागी अनवर को मदद देना बंद करे। लेकिन छोटा शकील को दाऊद के भाइयों का ये रवैया नागवार गुजरा। उसने पलटकर जवाब दिया और नौबत मारपीट तक आ पहुंची। खुफिया सूत्रों की मानें तो 22 मार्च को ही नूरा के कत्ल की तारीख तय हो गई थी। बदले की आग में धधक रहा छोटा शकील खुद दाऊद इब्राहीम के समझाने के बाद भी नहीं माना। दाऊद ने अपने सामने तीनों को बुलाकर झगड़ा खत्म करने की बात कही ...लेकिन छोटा शकील अब कुछ सहने के लिए तैयार नहीं था।

दरअसल छोटा शकील को पिछले कुछ महीनों में ये अहसास होने लगा था कि दाऊद उसके पर कतरना चाहता है। अनीस और नूरा से झगड़े के बाद दाऊद ने भी छोटा शकील को अफने भाई अनवर के धंधों से दूर रहने की हिदायत दी। छोटा शकील को लगने लगा था कि भाइयों के आगे अब दाऊद किसी की भी नहीं सुनेगा। बदला लेने के लिए शकील के पास डी कंपनी से अलग होने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं था।

जितना बड़ा सच ये है कि नूरा इब्राहिम की हत्या छोटा शकील ने करवाई। उतना ही बड़ा सच ये भी है कि वो इस वक्त पाकिस्तान में नहीं है। नूरा की हत्या की साजिश रचने के बाद ही वो पाकिस्तान छोड़कर भाग गया। अपने साथ वो डी कंपनी के कई शूटरों को भी ले गया है। यानि डी कंपनी की दरार अब खुलकर सामने आ चुकी है।

1993 के मुंबई बम धमाकों और नूरा के कत्ल का एक अजीब का रिश्ता है। मुंबई बम धमाके की साजिश रचने के बाद दाऊद इब्राहिम मुंबई से फरार हो गया था। दाऊद से हर सबक लेने वाले छोटा शकील ने नूरा के कत्ल से पहले भी यही किया। खुफिया एजेंसियों की मानें तो 31 मार्च को रहमान सरदार के हाथों नूरा को कत्ल करवाने से पहले ही छोटा शकील ने पाकिस्तान छोड़ दिया। वो 26 मार्च को ही अपने साथियों इकबाल मिर्ची...कालिद पहलवान और असलम भट्टी के साथ जेद्दा भाग गया।

भारतीय खुफियों एजेंसियों को पुख्ता जानकारी मिली है कि नूरा की हत्या करवाने से पहले ही छोटा शकील जेद्दा पहुंच चुका था। उसके जाने के बाद ही रहमान सरदार ने नूरा को अगवा किया और फिर बेरहमी से कत्ल कर दिया। शकील अपने साथ उन लोगों को भी ले गया...जो दाऊद और उसके भाइयों की आंख में खटकते थे।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक 22 मार्च को कराची में अनीस और नूरा से झगड़ा होने के बाद जब दाऊद ने भी शकील का साथ नहीं दिया...तो उसे अपनी हकीकत समझ आने लगी। खुफिया सूत्रों की मानें तो 22 मार्च से कुछ दिन पहले ही दाऊद इब्राहिम ने भी छोटा शकील को जमकर फटकार लगाई थी। वजह थी बीजेपी नेता वरुण गांधी की हत्या की सुपारी। दरअसल छोटा शकील वरुण गांधी की हत्या करवाकर अंडरवर्ल्ड में अपनी धौंस जमाना चाहता था। लेकिन बैंगलोर में उसके शूटर राशिद मालाबारी की गिरप्तारी की खबर जब दाऊद को लगी तो उसने छोटा शकील को अपनी हैसियत में रहने को कहा। साफ है कि डी कंपनी में हर रोज छोटा शकील का कद घटता जा रहा था।

खुफिया सूत्रों की मानें तो पिछले कुछ महीनों में छोटा शकील ने डी कंपनी की मीटिंग में जाना कम कर दिया। उसने उन लोगों को एक साथ करना शुरु कर दिया जो उसके जरिए डी कंपनी में शामिल हुए। 22 मार्च को हुए झगड़े के बाद शकील ने पहले अपने दुश्मन नूरा को निपटाया और अब अपना अलग गैंग बनाने की मुहिम में जुट गया है।

हम आपको बता दें कि नूरा की हत्या को पूरी ताकत के साथ छिपाने की कोशिश की गई थी। शायद दाऊद नहीं चाहता था कि डी कंपनी में पड़ी दरार दुनिया के सामने आए। लेकिन ये सच अब सामने आ चुका है कि नूरा की हत्या छोटा शकील ने करवाई। ऐसे में सवाल ये कि क्या पाकिस्तान में बिना आईएसआई की मर्जी के कुछ भी मुमकिन है। क्या पाकिस्तान में दाऊद का वक्त खत्म हो रहा है।

क्या आईएसआई की मर्जी के बिना दाऊद को चुनौती दी जा सकती है क्या आईएसआई की मर्जी के बिना नूरा का कत्ल हो सकता है आखिर छोटा शकील रहमान सरदार तक कैसे पहुंचा। ये वो सवाल हैं जिसके जवाब पाकिस्तान में इस वक्त दाऊद इब्राहिम की असली हालत को बयां करते हैं। जिस शख्स का परिवार खुद आईएसआई के पहरे में रहता है...उसमें से एक का अपहरण और हत्या इतना आसान काम नहीं। खुफिया सूत्रों की मानें तो नूरा इब्राहिम के कत्ल के लिए छोटा शकील को रहमान सरदार तक किसी और ने नहीं खुद आईएसआई ने पहुंचाया। बिना आईएसआई की मर्जी और मंजूरी के पाकिस्तान में दाऊद को चुनौती देने की हिम्मत अब तक नहीं थी। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। 26 नवंबर को मुंबई हमले के बाद दाऊद इब्राहिम के लिए पाकिस्तान में हालात पहले जैसे नहीं रहे। पाकिस्तान सरकार पर अमेरिका का जबरदस्त दबाव अब असर दिखाने लगा है। यही वजह है कि नूरा की हत्या की साजिश की भनक तक दाऊद को नहीं लगी। डी कंपनी के 90 फीसदी शूटर अब तक छोटा शकील के इशारे पर ही काम किया करते थे। आईएसआई के अफसरों में छोटा शकील की दाऊद से भी ज्यादा अच्छी पैठ थी। यहां तक की भारतीय खुफिया एजेंसी के लोगों को पहचानने में भी आईएसआई छोटा शकील के गुर्गों की मदद लेती थी। शायद यही वजह है कि जब शकील ने दाऊद का साथ छोड़ने का मन बनाया तो आईएसआई ने उसकी मदद ही की। बलूचिस्तान के खतरनाक डकैत रहमान सरदार तक शकील को पहुंचवाया और 26 मार्च को उसे पाकिस्तान से निकल भागने में भी मदद की।

April 14, 2009

विकास कहां है इस चुनाव में

वाराणसी से श्यामबिहारी श्यामल इस चुनाव में भी तमाम फायरब्राण्ड मुद्दे हैं। गर्मजोश बहसें हैं। शीतल फुहारों जैसे वायदे-आश्र्वासन हैं व चौतरफा धुआंधार अभियान भी! किंतु, यह सब गूंजने-दिखने के बावजूद आज चुनाव कैसे मूल जमीनी सवालों से कटकर रह गये हैं, इसका सबसे जीवंत सुबूत है चुनावी मुद्दों में किसानों से संबंधित चिंता की नगण्य उपस्थिति। किसी भी एक दल या पक्ष की बात नहीं, ज्यादातर योद्धाओं का तो यही हाल देखने में आ रहा है कि वे किसानों की मुसीबतों की ओर से लगभग गाफिल हैं। कहीं से लग ही नहीं रहा कि यह उस कृषि-प्रधान देश का सबसे बड़ा चुनाव है जहां हाल के दिनों में विभिन्न हिस्सों में किसानों ने लगातार खुदकुशी की है। मुल्क के अन्नदाता की इन आत्महत्याओं ने किसे नहीं हिलाकर रख दिया! बेशक इस दिशा में सरकार की ओर से कई कदम भी उठाये गये किंतु अब जबकि चुनाव हो रहे हैं किसी पक्ष की ओर से किसानों के सवाल को अपना मुख्य या प्रमुख एजेण्डा बनाने जैसी संजीदगी सामने नहीं आयी है। किसी दल या पक्ष के वायदे-आश्र्वासन में किसानों की खुशहाली के लिए कोई ठोस राष्ट्रव्यापी योजना-परिकल्पना या संकल्प नहीं झलक पा रहा है। पूर्वाचल में भी यह किसी एक लोकसभा क्षेत्र की बात नहीं, ज्यादातर क्षेत्रों में किसान सर्वाधिक उपेक्षित व बदहाल है। सिंचाई व्यवस्थाएं ध्वस्तप्राय हैं। जो क्षेत्र सिंचाई संसाधनों से वंचित हैं वहां के किसानों का तो दु:ख अथाह है ही, जहां नहरें-कैनाल वगैरह उपलब्ध हैं वहां के किसान भी सुखी नहीं दिख रहे। कारण कि ऐसे ज्यादातर सिंचाई-उपक्रम आज खस्ताहाल हैं, चरमराकर दम तोड़ रहे हैं। न समुचित रख-रखाव, न देखभाल।

इसी संदर्भ में यहां पूर्वाचल के कुछ प्रमुख लोकसभा क्षेत्रों पर एक दृष्टिपात

बलिया : सुरहाताल, एक सवाल -?करीब बावन किलोमीटर क्षेत्र को सिंचित करने के उद्देश्य से 1956-57 में निर्मित सुरहाताल पम्प कैनाल (कुछ समय पहले इसका नया नामकरण हुआ है चौधरी चरण सिंह पम्प कैनाल) लगभग मृतप्राय है। यह एक ही साथ बलिया व सलेमपुर, दोनों लोकसभा क्षेत्रों से सम्बद्ध है किंतु इसे इस चुनाव में किसी क्षेत्र में किसी दल ने इसकी ओर मुड़करं देखना भी जरुरी नहीं समझा। इसकी तमाम मशीनें जर्जर हो चुकी हैं। कोई देखभाल करने वाला नहीं है। किसान आंदोलन करके थक-हारकर बैठ सिर पर हाथ धरकर बैठ चुके हैं। 7637 हेक्टेयर कृषि-भूमि को सिंचित करने के लक्ष्य से बने इस कैनाल की मौजूदा हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इससे जुड़ी छोटी नहरों (माइनर) में कैथवली नहर, खरौनी नहर, देवडीह नहर, चांदपुर नहर व सहंतवार नहर में पिछले करीब दशक भर से एक बूंद भी पानी नहीं पहुंच सका है।

राब‌र्ट्सगंज : कनहर व जसौली - राब‌र्ट्सगंज संसदीय क्षेत्र में स्थित करीब बत्तीस साल पहले की कनहर परियोजना को अब मुर्दा कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। कारण कि उप्र के उक्त क्षेत्र के अलावा झारखंड (तत्कालीन बिहार का क्षेत्र) व छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश का इलाका) की हजारों-हजार एकड़ कृषि-भूमि को सिंचित करने के उद्देश्य से परिकल्पित उक्त परियोजना पर करीब एक अरब की धनराशि तो खर्च हो चुकने के बावजूद पिछले करीब डेढ़ दशक से इसका काम ठप है। इसका पचास प्रतिशत काम हो चुका था किंतु पता नहीं क्यों सरकार ने इसे एकदम उपक्षित कर दिया। अब इसकी मशीनें, पाइप लाइनें व भवनों के तमाम सामान तक कबाड़-चोरों के निशाना बने हुए हैं। अब तक काफी कुछ गायब किया जा चुका है। उसी तरह, नगवां विकास खंड की प्रस्तावित जसौली सिंचाई परियोजना की भी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। इसके तहत नगवां बांध को उच्चीकृत करने व हंसुआ नाला को बांधने का प्रस्ताव था जिससे करीब दो लाख किसानों को लाभ सम्भावित था। इस चुनाव में इसकी ओर ध्यान देना किसी ने जरूरी नहीं समझा।

चंदौली : ढनढनाता कटोरा - सिंचाई संसाधनों की प्रचुरता के लिए जाना जाने वाला यह क्षेत्र धान का कटोरा कहा जाता रहा है किंतु आलम यह है कि आज इसकी तमाम कैनाल-नहरें समुचित देखरेख के अभाव में अपनी क्षमता खोती चली जा रही हैं। भूपौली पम्प कैनाल व नारायणपुर पम्प कैनाल परियोजना हों या मूसाखांड़, लतीफशाह व चंद्रप्रभा समेत अन्य कोई भी बंधा, सबकी हालत लगभग खस्ता है। कर्मनाशा लेफ्ट हो या कर्मनाशा राइट, दोनों प्रमुख नहरें भी उसी तरह उपेक्षित। नरहां व नरंगी पम्प कैनालों की हालत भी अच्छी नहीं। प्राय: सबकी मशीनें देखरेख के अभाव का संत्रास झेल रही हैं। बिजली संकट ने जले पर नमक जैसी हालत पैदा कर दी है।

घोसी : दोहरीघाट पम्प कैनाल - आजादी के तत्काल बाद प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत ही स्थापित दोहरीघाट परियोजना का हाल किसी से दुपा नहीं। इसकी उपेक्षा व अनदेखी का आलम यह कि करीब एक सौ पंद्रह किलोमीटर लम्बाई वाली इस परियोजना के बारह में से नौ पम्प वर्षो से बंद पड़े हैं लेकिन इस चुनाव के मौसम में भी किसी ने इसकी ओर दृष्टिपात नहीं किया।

गाजीपुर : किसान बेहाल - गाजीपुर क्षेत्र में गंगा से जल लेने वाली देवकली पम्प कैनाल चालू हालत में तो है किंतु अपनी पूरी क्षमता से कार्य करने में सक्षम नहीं। कारण है बिजली व देखरेख की कमी। उसी तरह गंगा पर आधारित वीरपुर लिफ्ट कैनाल हो या गहमर लिफ्ट कैनाल अथवा तमसा नदी पर आधारित बहादुरगंज लिफ्ट कैनाल, उक्त सभी सिंचाई परियोजनाएं अपनी करीब साठ क्यूसेक की क्षमता का आधा से भी कम लाभ ही दे पा रही हैं। उसी तरह शारदा सहायक नहर से जुड़े क्षेत्र के किसानों का दर्द यह है कि उन्हें उस समय पानी दिया जाता है जब इसकी कोई जरुरत नहीं होती। इससे उन्हें परेशानी का ही सामना करना पड़ता है।

लालगंज : सिंचाई का संकट - लालगंज लोकसभा क्षेत्र में सुल्तानपुर से आने वाली शारदा सहायक खण्ड 23 हो या अम्बेडकरनगर से आकर आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र व लालगंज क्षेत्र के भी कुछ हिस्सों को कवर करने वाली शारदा सहायक खण्ड 31, दोनों की हालत खस्ता है। दोनों चौदह-पंद्रह क्यूसेक पानी की अपेक्षित है किंतु यह सात-आठ क्यूसेक भी मुश्किल से पूरी कर पाती है। इस चुनाव में इसकी ओर भी किसी पक्ष ने नजर डालने की आवश्यकता नहीं महसूस की।

जब होते थे विकास पर वोट

जौनपुर से राजेन्द्र कुमार जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे पं.दीनदयाल उपाध्याय को संसद में जाने से रोकने लेकिन भगवा वस्त्रधारी स्वामी चिन्मायानंद को उसी संसद में पहुंचाने वाले जौनपुर संसदीय क्षेत्र में विकास कोई मुद्दा नहीं है। यहां तो जाति के आधार पर प्रत्याशी को जिताने व हराने को लेकर बहस- मबाहिसा खूब चलता है। अमीर-गरीब,पढ़े-लिखेव निरक्षर सब एक जैसी भाषा बोलते हैं। प्रत्याशियों की ओर से गिनाये जा रहे विकास कार्यो और आगे के वादों को यहां कोई सुनने को तैयार ही नहीं है। बसपा के धनंजय सिंह व सपा के पारसनाथ यादव की दबंगई की चर्चा करते हुए यहां के लोग उन्हें अपना हीरो बताने में जुटे हैं। भाजपा की प्रत्याशी सीमा द्विवेदी की इनको दी जा रही चुनौती भी लोगों की जुबां पर है। रविवार को वाराणसी के बेनिया बाग मैदान में बसपा प्रमुख मायावती के मुख्तार अंसारी को गरीबों का मसीहा बताये जाने, फिर इसके अगले ही दिन इण्डियन जस्टिस पार्टी के प्रत्याशी बहादुर सोनकर की हुई संदिग्ध मौत की घटना के बाद से तो यहां जातिगत चर्चाओं में और इजाफा हुआ है। अब तो तमाम गांवों में लोग जातियों के हिसाब से प्रत्याशी की जीत-हार का गणित बिठाने में मशगूल दिखते हैं।

सदर, मल्हनी, शाहगंज, मुंगरा बादशाहपुर व बदलापुर विधानसभा क्षेत्र में चुनावी तस्वीर कुछ ऐसी ही दिखायी देती है। ऐतिहासिक जौनपुर के शहरी इलाके में भी कुछ ऐसा ही आलम है। यहां पूर्वांचल कताई मिल व सतरिया औधोगिक क्षेत्र की अधिकांश इकाइयों के बंद हो जाने पर कोई चिंता नहीं जताता और न यहां के तेल उद्योग के बदहाली में पहुंच जाने की ही बात में किसी को दिलचस्पी है। यहां बने भव्य अटाला मस्जिद, शाही किला, शाही पुल को देखकर यही लगता है कि जिले में विकास को लेकर लोगों राजनीतिक रूप से बेहद जागरूक होंगे लेकिन यहां के लोगों से बातचीत के बाद यह धारणा सच नहीं साबित हो पाती है। मौलाना सफदर हुसैन जैदी इसकी वजह यहां के लोगों के कामकाज में व्यस्त रहना बताते हैं। उनके अनुसार यह पूरा इलाका जाति के नाम पर बंटा हुआ है। यहां के लोग अपनी, अपने पड़ोसी तथा जाति के लोगों की चिन्ता अधिक करते हैं। नये परिसीमन में रारी विधान सभा का नाम मल्हनी हो गया है। वहां रहने वाले पप्पू शर्मा चुनाव प्रचार में विकास के मुददों पर कोई जोर न होने के सवाल पर कहते हैं कि विकास के नाम पर पिछले कई चुनाव जीते गये लेकिन अपेक्षित विकास नहीं हो सका। इसी वजह से अब यहां अपनी ही बिरादरी के व्यक्ति को चुनाव जिताने की लहर चल रही है। शाही पुल के समीप रहने वाले जावेद कहते है कि यहां धनंजय सिंह को कोई बाहुबली नहीं कहता। मायावती जब मुख्तार अंसारी को गरीबों का मसीहा कहती है तो फिर धनंजय यहां कैसे बाहुबली हो गये। पारसनाथ को लेकर भी कुछ ऐसी धारणा यहां के लोगों की है और उनके लोग तो उन्हें हीरो की संज्ञा देते हैं।

क्षेत्र के लोगों की इसी मानसिकता को भांपकर कई राजनीतिक दलों ने यहां पर प्रत्याशी उतारे है। चुनाव मैदान में 16 प्रत्याशी हैं पर इनमें सपा, बसपा, भाजपा एवं आरके चौधरी की पार्टी से चुनाव लड़ रहे राज पटेल तथा उलेमा कांउसिल के डा.तसलीम को लेकर ही बहस छिड़ती हैं। बसपा ने धन एवं बाहुबल से मजबूत धनंजय सिंह को प्रत्याशी बनाया है जो कि बीते लोकसभा चुनावों में जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़े और तीसरे स्थान पर रहे थे। धनंजय इसी संसदीय सीट की रारी विधानसभा से 2007 में लोजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे और बाद में वह बसपा के साथ आ गये। उनके इस पाला बदल के बाद बसपा प्रमुख ने यहां से बीते लोकसभा में सपा के टिकट पर चुनाव जीते पारसनाथ यादव के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया। अब सपा और भाजपा के लोग उन्हें बाहुबली बताते हुए उनके कारनामों का ब्यौरा भाषणों में जमकर बताते हैं। सपा प्रत्याशी पारसनाथ लम्बे समय से यहां की राजनीति में सक्रिय हैं और दो बार यहीं से संसद में पहुंच चुके हैं। एक स्टिंग आपरेशन के कारण वह काफी चर्चित रहे। इनके मुकाबले भाजपा ने इसी संसदीय क्षेत्र की गड़वारा विधानसभा से चुनाव जीती सीमा द्विवेदी को मैदान में उतारा है। सीमा द्विवेदी ने यहां के जातीय समीकरण में हलचल मचा दी है। इसकी मुख्य वजह उनके पक्ष में ब्राहम्णों का काफी हद तक एकजुट होते दिखना है।

यहां के हरलालका रोड पर एक दुकान मालिक सुन्दर लाल कहते हैं कि ब्राहमण समाज की राय इस बार किसी एक प्रत्याशी के पक्ष में मतदान की बन रही है। ब्राहमण समाज में मची इस हलचल को देखते हुए सपा ने ओम प्रकाश दुबे उर्फ बाबा दुबे को अपने साथ ले लिया है। बाबा दुबे पिछली बार बसपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे थे। अब यह माना जा रहा है कि उनके सपा के साथ आने पर पारसनाथ को ब्राहमण मत भी मिलेंगे क्योंकि क्षेत्र के ठाकुर मतदाता धनंजय के साथ खड़े बताये जाते है। चुनाव में जातियों की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाने में आरके चौधरी की राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी के प्रत्याशी राज पटेल भी अहम रोल अदा कर रहे हैं। पटेल समाज उनको लेकर हर विधानसभा में अपनी बिरादरी के मतों को एकजुट करने में जुटा है। धनंजय के अनुसार हर प्रत्याशी के पक्ष में उसकी पार्टी और जाति के लोग साथ आते हैं, इसमें गलत क्या है। तो पारसनाथ कहते हैं कि ऐसा पहले भी होता रहा है,रही बात चुनाव में विकास के बजाय प्रत्याशी की जाति एवं दबंगई पर चर्चा तो यहां की जनता के स्तर से हो रहा है। हम तो विकास की बात चुनाव भाषणों में कहते ही हैं।

April 11, 2009

चुनाव फिर से सिर पर हैं। फिर से लोगों के सामने राजनैतिक पार्टियां अपने घोषणा पत्र के साथ आ गई हैं। किसी को राम मंदिर सुहा रहा है तो किसी को मराठा मानुष का कीड़ा काटा है। कहीं जय हो नारा है तो कोई किसी को बूढ़े की संज्ञा देता है। चांद पर पहुंचे हुए आज 24 साल हो गए, लेकिन आज भी हमारे नेता जो मुद्दा लेकर पहली लोकसभा के लिए जनता का दरवाजा कटकटाया था, वही मुद्दा आज भी वो रो गा कर पंद्रहवीं लोकसभा में भी घुसने की तैयारी कर रहे हैं।

April 10, 2009

ख़त्म हो गया लोकतंत्र ,अब नोटतंत्र की बारी है

ख़त्म हो गया लोकतंत्र ,अब नोटतंत्र की बारी है

रंगमहल से इस संसद में ,नोट छापने की तैयारी है

पहले था आगाज़ कमल का , अब पंजे की बारी है

ख़त्म हो गया लोकतंत्र अब ,नोटतंत्र की बारी है

दे दिया समर्थन मुलायम ने ,अब सोनिया की बारी है

ख़त्म हो गया लोकतंत्र ,अब नोटतंत्र की बारी है

रंगमहल से इस संसद में ,हर तरफ ही मारा मारी है

ख़त्म हो गया लोकतंत्र ,अब नोटतंत्र की बारी है

मिल कल्याण कर दिया आगाज़ मुलायम ने

तो माया ने भी दिल्ली जाने की करली तैयारी है

माया, मोदी ,लालू और पवार ने भी अब पी.एम् की कुर्सी पर नजर मारी है

ख़त्म हो गया लोकतंत्र ,अब नोटतंत्र की बारी है

संसद बन गयी है फिल्मी दुनिया ,मोहरे फ़िल्मी सितारे है

अक्के देश की व्हाट लगाने की अब पूरी तैयारी है

ख़त्म हो गया लोकतंत्र अब नोटतंत्र की बारी है

अभिनेता बन गए है नेता तो राजतंत्र को चौपट करने की बारी है

फिल्म बनेंगी अब संसद में

नेताओ ने देश में अब कैबरे करवाने की कर ली तैयारी है

राजनीति के इस दंगल में खासी मारा मारी है

ख़त्म हो गया लोकतंत्र अब नोटतंत्र की बारी है

April 08, 2009

BECAUSE I AM A GIRL



'How sad, many girls missing from our country are found buried in some graveyard....






India is growing dynamically in every fields. Today, the boom in economy, innovative technologies and improved infrastructure has become nation’s pride. The country has witnessed advancements in all fields but bias against a girl child is still prevailing in the country. This social evil is deep rooted in Indian ethos and the most shocking fact is that the innovative and hard high end technologies are brutally killing the Indian girl child. Innovative techniques, like biopsy, ultrasound, scan tests and amniocentesis, devised to detect genetic abnormalities, are highly misused by number of families to detect gender of the unborn child. These clinical tests are highly contributing to the rise in genocide of the unborn girl child. In today’s day and age most couples prefer the process known as a planned pregnancy, because of various factors; prime amongst them being the financial well being to support the birth and nurturing of a child. In such cases, the first prenatal visit actually happens prior to actual pregnancy, to see whether one is ready to go off the contraception pills and conceive a baby.
However, in maximum conceptions, one is unaware of the pregnancy until actual realization dawns after one skips the first menstrual cycle. Normally doctors except ladies to pay their first visit anywhere between the sixth and twelfth week after conception. Amniocentesis started in India in 1974 to detect fetal abnormalities. These tests were used to detect gender for the first time in 1979 in Amritsar, Punjab. Later the test was stopped by the Indian Council of Medical Research but it was too late. The benefits of these tests were leaked out and people started using it as an instrument for killing an innocent and unborn girl child. Many of the traditional women organizations also took up cudgels to stop this illegal practice but all failed and with the passage of time these tests became a major contributor to bias against a girl child.
Female feticide and infanticide is not the only issues with a girl child in India. At every stage of life she is discriminated and neglected for basic nutrition, education and living standard. When she was in the womb, she was forced to miss the moment when she was supposed to enter the world. At the time of birth her relatives pulled her back and wrung her neck. After killing her she was thrown into a trash can.
During childhood, her brother was loaded with new shoes, dresses and books to learn while she was gifted a broom, a wiper and lots of tears. In her teenage, she missed tasty delicious food to eat and got only the crumbs. During her college days, she was forced to get married, a stage where illiteracy, lack of education resulted in high fertility rate, aggravating the condition of females in the country. Again if this female gives birth to a girl child, the journey begins once again. She missed all roses of life and was finally fitted to a graveyard. That’s where she got peace of mind.
The nation of mothers still follows a culture where people idolizes son and mourns daughters. UN figures out that about 750,000 girls are aborted every year in India. Abortion rates are increasing in almost 80% of the India states, mainly Punjab and Haryana. These two states have the highest number of abortions every year. If the practice continues, then no longer a day will come when Mother India will have no mothers, potentially, no life.
We all are proud citizens of India. The need of hour is to realize our responsibilities and give a halt to this evil crime. What can we do to curb the brutal and undesirable practice of mass killing girls? A determined drive can initiate a spark to light the lamp and show the world that we all are part of the great Mother India.

April 07, 2009

TERRORIST ATTACK

20 March 2000 Massacre at Chattisinghpora, J&KOn the eve of President Clinton’s visit, militants massacred 35 Sikhs in the village of Chattisinghpora. The militants were dressed in Indian Army uniforms, a tactic which is now commonly used by the insurgents. No group claimed responsibility for the attack
1 October 2001 Attack on J&K State Legislative Assembly, SrinagarA car bomb exploded near the State Assembly killing 38 people. The bombing was followed by an armed assault into the Assembly premises by three armed terrorists.
13 December 2001 Attack on the Indian Parliament, New DelhiMilitants attacked the Indian Parliament in which nine policemen and parliament staffer were killed. All five terrorists were killed by the security forces and were identified as Pakistani nationals. The attack took place around 11:40 am (IST), minutes after both Houses of Parliament had adjourned for the day. The suspected terrorists dressed in paramilitary uniforms entered Parliament in a car through the VIP gate of the building. The extent of the attack could have been worse because the car [which had a Home Ministry label and a red beacon light] was packed with 30 kg of RDX and containers with hand grenades.3 The militants used AK-47 rifles, and grenades for the attack. Investigations revealed that the terrorists’ aim was not only to kill important political figures but also to create chaos inside Parliament and take hostages. Senior Ministers and over 200 Members of Parliament were inside the Central Hall of Parliament when the attack took place. The attack also led to a military standoff between Pakistan and India [“Operation Parakram”].
22 January 2002 Attack on American cultural centre, Kolkata Militants attacked an American cultural centre in Kolkata killing at least four police officers and injuring 21. Police arrested at least 50 suspects in the aftermath of the incident. The government accused Pakistan of involvement in the attack.
14 May 2002 Massacre of family members of Army personnel, Kaluchak, J&K.At least 30 persons, most of them members of families of Army personnel, were killed and over 60 wounded in one of the militant suicide attacks in Jammu on the Kaluchak cantonment area. As a result of the attack security was beefed up at all cantonments around the country.
21 May 2002 Firing at Hurriyat meeting; Abdul Ghani Lone killed, SrinagarAbdul Gani Lone, senior leader of the separatist All-Parties Hurriyat Conference was shot dead by unidentified gunmen in Srinagar, a day ahead of the visit of Prime Minister Atal Bihari Vajpayee to Kashmir valley. Shortly after the assassination Indian intelligence learned that three operatives, codenamed Abu Hadid, Abu Hamza and Abu Rahel, carried out the execution. The rally on May 21 was held to commemorate the assassination of religious leader Mirwaiz Mohammad Farooq by the Hizbul Mujahideen in 1990.
25 August 2005 Twin Blasts, Mumbai Two powerful car-bomb explosions took place in South Mumbai killing at least 46 persons and injuring over 160. The first of the two blasts, several kilometers apart took place at 1.03 p.m. in the crowded Jhaveri Bazar, close to the temple of Mumbadevi. The second, four minutes later, occurred in a pay-and park facility close to the famed Gateway of India and the Taj Mahal Hotel. The timing of the blasts and the choice of locations were apparently decided for causing the maximum damage.
24 September 2002 Akshardham Temple AttackThe siege of the Akshardham temple complex of the Swaminarayan sect ended after commando operation. The two terrorists who stormed it the previous evening were killed. A total of 29 individuals including 16 women and four children, were killed in the terrorist attack and 74 were injured, a few of them seriously. A National Security Guard commando was also killed and one critically wounded in the operation. Two State police commandos lost their lives while rescuing the people trapped in the complex before the NSG men took position. The Prevention of Terrorism Act court on July 1, 2006 awarded death sentence to three persons in the 2002 Akshardham temple terror attack case.
5 July 2005 Attack on makeshift Ram temple, AyodhyaSix heavily armed militants, who made an attempt to storm the high security makeshift Ram temple in Ayodhya was killed before they MAJOR TERRORIST the shrine. The attackers came in an ambassador car at around 9:00am, following an explosive-laden jeep, which they rammed into the security barricade to breach the cordon. While one militant who rammed the jeep was killed, five others were killed in the encounter with security personnel from the CRPF [Central Reserve Police Force] and PAC [Provincial Armed Constabulary]. A woman devotee was killed in the crossfire while a tourist guide was killed because of the explosion. The driver of the ambassador car has been arrested and three security men were injured in the operation, which lasted nearly one-and-half-hours. Police sources said that the militants were disguised as devotees. The consequences of a successful assault on the “makeshift” temple would have been catastrophic for communal harmony. The attack was similar to the attack on the Jammu and Kashmir legislature in that a combination of suicide car-bombers and conventional small-arms attack was used.
29 July 2005 Jaunpur Train ExplosionAt least 10 people were killed and more than 50 others injured in the explosion on the Shramjivi Express in Uttar Pradesh. Traces of the high explosive RDX had been found in the compartment where the blast occurred. Two Bangladeshi nationals belonging to the banned outfit Lashkar-e-Taiba (LeT) were arrested at New Delhi railway station by the Special Cell on February 28, 2006. The police claimed to have recovered 3 kilograms of RDX, two electronic detonators, two pistols, Bangladeshi passports and fake Indian currency worth Rs. 40,000 from them.
18 October 2005 Ghulam Nabi Lone, Education Minister of J&K Killed, Srinagar The Jammu and Kashmir Minister of State for Education Ghulam Nabi Lone was shot dead by a militant, while CPI (M) State secretary M.Y. Tarigami escaped unhurt in a similar bid in the high-security Tulsi Bagh area of Srinagar on October 18, 2005. Two security guards and a civilian were also killed in the incidents, for which the Islamic Front and Al- Mansoorein had claimed responsibility.
29 October 2005 Blasts in New Delhi At least 70 persons were killed and several injured in three powerful serial explosions on the evening of October 29, 2005. While two bombs went off at busy marketplaces [Paharganj and Sarojini Nagar], one exploded inside a Delhi Transport Corporation bus [near Govindpuri]. No terrorist outfit has so far claimed responsibility. The first explosion took place around 5.25 p.m. at Chheh Tuti Chowk in Paharganj, central Delhi, and the bus blast at 5.40 p.m. at Govindpuri in South Delhi and the third and most powerful one at 5.45 p.m. at the Sarojini Nagar market in South-West Delhi. An explosive device was defused outside the State Bank of Bikaner at Chandni Chowk in the Old City area. Charge sheets were eventually filed against Tariq Ahmed Dar and Rafiq Shah in this case.
28 December 2005 Attack on the Indian Institute of Science, Bangalore A senior scientist from New Delhi was killed and at least five persons were injured when assailants opened fire and lobbed grenades at the Indian Institute of Science (IISc.) Suspected terrorists of the Lakshar-e- Taiba barged into the prestigious Indian Institute of Science campus and opened fire indiscriminately killing a retired professor of IIT Delhi and injuring four others.
7 March 2006 Serial Blasts in Varanasi The first explosion occurred in Sankat Mochan temple near Banaras Hindu University. Many pilgrims were in the temple, as Tuesdays are considered particularly holy by devotees of Hanuman, the deity of the Sankat Mochan shrine. Two other explosions occurred at the Cantonment railway station — one in the Shivganga Express bound for Delhi and another in a waiting hall. At least 100 people were injured. Six bombs were found from other areas in the city, including in a restaurant frequented by foreigners. A mastermind of the Varanasi blasts and five of his accomplices were arrested on the April 6, 2006 by the Uttar Pradesh police. A module of the Bangladesh-based Harkat-ul- Jehadi-Islamia (HuJI) was also discovered. Wali Ullah and his associates were arrested from different parts of the state and a large quantity of arms and ammunition recovered from them.
1 May 2006 Massacre of Hindus and Gujjars, Doda & Udhampur, J&K 35 Hindu villagers were killed in two separate terrorist attacks in the districts of Doda and Udhampur. Twenty two residents of the mountain hamlets of Kulhand and Tharva, were shot dead outside their homes late at night. Thirteen shepherds were shot dead north of the Lalon Galla, a high-altitude meadow above the town of Basantgarh.
1 June 2006 Attack on RSS Headquarters Three militants were killed in an attack on RSS Headquarters.20 Police said the militants attempted to drive a white Ambassador car, fitted with a red light, towards the building at dawn. They were killed in an exchange of fire with security personnel, on being challenged.
11 July 2006 Mumbai Train blasts The toll in the serial blasts that took place in the city rose to 190. Police said 190 persons were killed and another 625 injured in the blasts that took place in first class compartments of trains at Mira-Bayandhar, Jogeshwari, Mahim, Santacruz, Khar, Matunga and Borivli on the Western Railway on the 11th of July between 6:00 and 6:40pm. Over 200 suspects21 had been rounded up as a result of the ongoing investigation, with no group claiming responsibility suspicion has fallen on the Lashkar-e-Taiba and SIMI. A possible hurdle to the ongoing peace process has been created with both India and Pakistan exchanging acrimonious comments over the incident. The National Security Advisor M.K. Narayanan in fact accused Pakistan of complicity in the blasts.

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