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Varanasi, UP, India
Working with an MNC called Network 18, some call it news channel(IBN7), but i call it दफ्तर, journalist by heart and soul, and i question everything..

July 01, 2009

बाबरी विध्वंस-एक काले इतिहास का स्याह पटाक्षेप


लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट आने के साथ ही कांग्रेस और बीजेपी में तू-तू-मैं-मैं तेज हो गई है। बीजेपी को आशंका है कि उसके कई नेताओं की तरफ उंगलियां उठ सकती है। इसलिए वो बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के मामले में कांग्रेस पर उंगली उठा रही है। उधर, कांग्रेस भी इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने में जुट गई है। लेकिन एक बात तय करनी पड़ेगी कि राजनीति में आखिर नुकसान किसका हुआ। किसने इस उन्माद को झेला, बाबरी विध्वंस में कौन था जो कि उसके मलबे में दब के घुट-घुट कर जी रहा है।

मंगलवार को जस्टिस लिब्राहन ने 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। और इसी के साथ विवादों का पिटारा खुल गया। बाबरी मस्जिद तोड़े जाने वक्त बजरंग दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बीजेपी के मौजूद महासचिव विनय कटियार लिब्राहन आयोग की मंशा पर ही सवाल उठा रहे हैं हालांकि अभी रिपोर्ट के नतीजे सार्वजनिक नहीं हुए हैं। विनय के निशाने पर कांग्रेस की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार भी है।

बीजेपी के इस रुख पर कांग्रेस भला क्यों चुप रहती। उसने भी पलटवार करने में देर नहीं की। मनीष तिवारी ने तो हद ही कर दी। उनका कहना था कि क्या बीजेपी वाले वहां जलेबी लेने गए थे। आरोप प्रत्यारोप में लगता है नेताओं ने गरिमा की तिलांजली ही दे दी। क्या बाबरी विध्वंस एक मजाक था। क्या वो सिर्फ सैर सपाटे के लिए गए कुछ लोगों का उन्माद था। साफ है कि लिब्राहन कमीशन की रिपोर्ट बीजेपी और कांग्रेस के बीच जंग का नया मुद्दा बनने वाली है। ये जंग रिपोर्ट के खुलासे के बाद तेज हो सकती है। लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार और नेताओं के बीच छिड़ी जंग से मूर्छित पड़ी बीजेपी इस मुद्दे को भड़काकर अपनी सेहत दुरुस्त करना चाहेगी तो कांग्रेस इस फिराक में है कि आयोग की सिफारिशों के मुताबिक कार्रवाई करके वो केंद्र में सरकार रहने के बावजूद बाबरी मस्जिद न बचा पाने का दाग धो डाले।

6 दिसंबर, इस एक दिन ने भारतीय राजनीति की धुरी बदल दी। वो दिन जब सैकड़ों कारसेवकों ने कुछ ही घंटों में बाबरी मस्जिद को जमींदोज कर दिया। 17 साल बाद भी ये 6 दिसंबर 1992 का सच आज भी भारतीय लोकतंत्र पर एक शूल की तरह चुभ रहा है। ये वो कहानी है तो जो धर्म की राजनीति की नींव बनीं।

सुबह 11 बजे के करीब कारसेवकों के एक बड़े जत्थे ने सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की थी लेकिन पुलिस ने उन्हें वापस धकेल दिया गया। इसी वक्त वहां नजर आए वीएचपी नेता अशोक सिंघल कारसेवकों से घिरे हुए उन्हें कुछ समझाते हुए थोड़ी ही देर में उनके साथ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी भी जुड़ गए। तुरंत ही इस भीड़ में लाल कृष्ण आडवाणी भी नजर आए। सभी सुरक्षा घेरे के भीतर मौजूद थे और लगातार बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ रहे थे।

तभी पहली बार मस्जिद का बाहरी दरवाजा तोड़ने की कोशिश हुई लेकिन पुलिस ने उसे नाकाम कर दिया। तस्वीरें गवाह हैं कि इस दौरान पुलिस अधिकारी दूर खड़े होकर तमाशा देख रहे थे। मचान पर बैठे हुए इन अफसरों को मस्जिद बचाने की चिंता कितनी थी कहना मुश्किल था। जब प्रशासन ही हाथ पे हाथ धरा बैठा रहा तो फिर उन्मादियों से कौन निपचता। इस वक्त तक सुबह का साढ़े ग्यारह बज चुका था। मस्जिद अब भी सुरक्षित खड़ी थी। तभी वहां पीली पट्टी बांधे कारसेवकों का आत्मघाती दस्ता आ पहुंचा। उसने पहले से मौजूद कारसेवकों को कुछ समझाने की कोशिश की। जैसे वो किसी बड़ी घटना के लिए सबको तैयार कर रहे थे। कुछ ही देर में बाबरी मस्जिद की सुरक्षा में लगी पुलिस की इकलौती टुकड़ी वहां से बाहर निकलती नजर आई। न कोई विरोध न मस्जिद की सुरक्षा की परवाह पुलिस की इस टुकड़ी को दूर मचान पर बैठे पुलिस अधिकारी सिर्फ देखते रहे कुछ किया नहीं। फिर भी ये सवाल उठता है कि क्या सिर्फ तथाकथित हिदुत्व ब्रिगेड के बस की बात थी ये विवादित ढांचा गिरा दिया जाता। क्या बिना सरकार के सहयोग के ये संभव था।

मस्जिद से पुलिस के हटने के तुरंत बाद मेन गेट पर दूसरा और बड़ा धावा बोला गया। जो कुछ पुलिसवाले वहां बचे रह गए थे वो भी पीठ दिखाकर भाग खड़े हुए। दोपहर 12 बजे एक शंखनाद पूरे इलाके में गूंज उठा। कारसेवकों के नारों की आवाज पूरे इलाके में गूंजती जा रही थी। कारसेवकों का एक बड़ा जत्था मस्जिद की दीवार पर चढ़ने लगा बाड़े में लगे गेट का ताला भी तोड़ दिया गया कुछ ही देर में मस्जिद कारसेवकों के कब्जे में थी।

तत्कालीन एसएसपी डीबी राय पुलिसवालों को मुकाबला करने के लिए कह रहे थे लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। उस वक्त भी ये सवाल उठा था कि क्या ये पुलिस का विद्रोह था और ये सवाल आज भी मुंह बाए खड़ा है। क्या पुलिस भी चाहती थी कि विवादित ढांचा गिरा दिया जाए। क्या ये विद्रोह था उस मुस्लिम शासन के खिलाफ जो कि कई सालों तक मंदिरों को तोड़ कर लूटपाट कर अपनी खजाना भरते रहे। इस वक्त तक पुलिसवाले पूरी तरह हथियार डाल चुके थे। कुदाल लिए हुए कारसेवक तब तक मस्जिद गिराने का काम शुरु कर चुके थे। एक दिन पहले की गई रिहर्सल काम आई और कुछ ही घंटों में बाबरी मस्जिद को पूरी तरह ढहा दिया गया।

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