एक फिल्म आई थी दोस्ताना। उस फिल्म में यू तो कुछ खास नहीं था लेकिन फिर भी ये फिल्म जरा हट के थी। कारण इसका कथानक था एक लड़की के पीछे पड़े दो लड़के दुनिया के सामने समलिंगी बनने से भी नहीं हिचकते। हॉलिवुड की एक फिल्म का भी उल्लेख यहां लाजिमी है। ये फिल्म थी टॉम हैंक्स की फिलाडेल्फिया।
भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में समलैंगिकता पर कानूनी पाबंदी है। जिनमें चीन, ग्रीस, टर्की और इटली जैसे बड़े देश भी शामिल हैं। जबकि ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, हॉलैंड, दक्षिण अफ्रीका, और स्पेन में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। ब्रिटेन में 2000 में ही समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दी गई थी। यहां सेना के दरवाज़े भी समलैंगिकों के लिए खुले हैं। ब्रिटेन ने 2005 में समलैंगिक शादी को भी कानूनी मान्यता दे दी। इसके अलावा फ्रांस, स्विटज़रलैंड और जर्मनी ऐसे देश हैं। जहां समलैंगिकता को कानूनी दर्ज़ा तो नहीं मिला। लेकिन इस पर किसी तरह का प्रतिबंध भी नहीं है। अमेरिका में पिछले कई सालों से समलैंगिकता पर कानूनी बहस छिड़ी हुई है। यहां कैलिफोर्निया और मैसाचुसेट्स में इसे मान्यता मिल गई है। लेकिन पूरे देश में इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। इस सब के बीच दुनिया भर में हजारों लोग समलैंगिक अधिकारों को लेकर काफी जागरूक हो रहे हैं।
सरकार का बदलता रवैया भले ही इन लोगों को दो पल की खुशी तो दे दे लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या इनके खुद के मां बाप भाई बहन दोस्त परिवार वाले इन्हें स्वीकारेंगे?
हर साल की तरह इस साल भी रविवार 28 जून को समलैंगिक लोग दिल्ली की सड़कों पर निकले और अपनी पहचान ज़ाहिर की। हालांकी भारत में समलैंगिकता एक अपराध है। फिर भी ये लोग समलैंगिक होने में फख्र महसूस करते हैं। इनके इसी आत्मविशवास की वजह से अब सरकार भी धीरे धीरे ही सही अपना रुख बदलने को मजबूर हो रही है। सदी से ज्यादा पुराने कानून पर सरकार सोचविचार करना चाहती है। लेकिन सच तो ये हैं कि समलैंगिकता को कानूनी दर्जा देने की मांग पर हमेशा सरकार में मतभेद रहे हैं। हांलाकि अब स्वास्थ्य, कानून और गृह मंत्रालय कम से कम इस बात पर राज़ी हो गए हैं कि इस कानून में बदलाव की ज़रूरत है।
बकौल केंद्रीय कानून मंत्री वीराप्पा मोइली, कानून लोगों को सज़ा देने के लिए नहीं बनाई जाती। इस नज़रिए से हम यह कह सकते हैं कि धारा 377 को भी दोबारा देखने की ज़रूरत है। मोइली की बात ध्यान से सुने तो ये साफ हो जाता है कि उनका इशारा इस तरफ नहीं है कि भारत में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिलने जा रही है। बात की गहराई में जाए तो ये साफ होता है कि सरकार अभी भी सिर्फ धारा 377 में छोटे मोटे हेरफर करके बच निकलना चाहती है। हालांकि मीडिया में रविवार सुबह खबर आई थी उसके मुताबिक सरकार धारा 377 हटाने पर विचार करने वाली है। लेकिन मोइली के ही एक और बयान पर गौर फरमाएं तो साफ हो जाएगा कि इस दोस्ताना को कानूनी मान्यता देने में तकनीकी शब्दों का कितना बड़ा महाजाल है।
वैसे स्वास्थ्य मंत्रालय हमेशा से इस बात की वकालत करता रहा है कि समलैंगिकता को कानूनी दर्जा देने से एड्स और यौनजनित बीमारियों को कम किया जा सकेगा। लेकिन गृह और कानून मंत्रालय अब तक धर्म और परंपरा के नाम पर इसका विरोध करता आया है।
कुछ जानकारों के मुताबिक कानून धार्मिक रीतिरिवाज और वैज्ञानिक तर्क के आधार पर बनाए जाते हैं। समलैंगिकता इन दोनों आधारों पर ही खरी नहीं उतरती। के के सूद, पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल कहते हैं कि जिस योनी में इंटरकोर्स किया जाएगा उसे भगवान ने इस काम के लिए नहीं बनाया है। उसे बायोलोजी भी नहीं मानता क्योंकि वहां से प्रोक्रिएशन नहीं हो सकता।
July 02, 2009
समलिंगी जिंदाबाद
ये हमारी जीत है। आखिर हमारे देश में भी हमें हमारी तरह से जीने का तोहफा मिल ही गया। ये बयान है मशहूर टीवी अदाकारा या अदाकार बॉबी डॉर्लिंग का। दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के समलिंगी या यूं कहें गे रिलेशनशिप को मंजूरी दे दी। दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि दो मर्द अगर सहमति से संबंध बनाते हैं तो वो गैरकानूनी नहीं है। अगर इस मामले में धारा 377 के तहत यानी अप्राकृतिक यौनाचार का मामला दर्ज होता है, तो वो संविधान के खिलाफ है। पता हो कि हाईकोर्ट ने ये व्यवस्था दी कि आईपीसी की धारा 377 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का विरोध करती है जो कि किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं होगा। इसका मतलब ये है कि अब समलैंगिक संबंध गैरकानूनी नहीं रहे। यानी अब समलैंगिकता समाज और कानून की नजर में अपराध नहीं रहा। धारा 377 भी भारत में समलैंगिकता पर रोक नहीं लगा सकी है क्योंकि ये दो लोगों की आपसी रज़ामंदी से होता है। कई विकसित देशों में समलैंगिकता को कानूनी दर्जा मिल चुका है और वहां के समाज ने भी इस हकीकत को स्वीकार कर लिया है।
1860 में बनी आईपीसी की धारा 377 के अनुसार समलैंगिकता एक अपराध है और दोषी पाए जाने पर दस साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। समलैंगिक शादी को भी कानूनी मान्यता नहीं है।भारत में लंबे समय से समलैंगिकों को मान्यता दिए जाने के लिए मांग उठ रही है। इसके लिए हर साल समलैंगिक देश के अलग अलग हिस्सों में परेड भी करते हैं।
भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में समलैंगिकता पर कानूनी पाबंदी है। जिनमें चीन, ग्रीस, टर्की और इटली जैसे बड़े देश भी शामिल हैं। जबकि ब्रिटेन, Belgium , Canada , holland , South Africa और Spain में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। ब्रिटेन में 2000 में ही समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दी गई थी। यहां सेना के दरवाज़े भी समलैंगिकों के लिए खुले हैं। ब्रिटेन ने 2005 में समलैंगिक शादी को भी कानूनी मान्यता दे दी। इसके अलावा फ्रांस, स्विटज़रलैंड और जर्मनी ऐसे देश हैं। जहां समलैंगिकता को कानूनी दर्ज़ा तो नहीं मिला। लेकिन इस पर किसी तरह का प्रतिबंध भी नहीं है। अमेरिका में पिछले कई सालों से समलैंगिकता पर कानूनी बहस छिड़ी हुई है। यहां कैलिफोर्निया और मैसाचुसेट्स में इसे मान्यता मिल गई है। लेकिन पूरे देश में इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। इस सब के बीच दुनिया भर में हजारों लोग समलैंगिक अधिकारों को लेकर काफी जागरूक हो रहे हैं।
1860 में बनी आईपीसी की धारा 377 के अनुसार समलैंगिकता एक अपराध है और दोषी पाए जाने पर दस साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। समलैंगिक शादी को भी कानूनी मान्यता नहीं है।भारत में लंबे समय से समलैंगिकों को मान्यता दिए जाने के लिए मांग उठ रही है। इसके लिए हर साल समलैंगिक देश के अलग अलग हिस्सों में परेड भी करते हैं।
भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में समलैंगिकता पर कानूनी पाबंदी है। जिनमें चीन, ग्रीस, टर्की और इटली जैसे बड़े देश भी शामिल हैं। जबकि ब्रिटेन, Belgium , Canada , holland , South Africa और Spain में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिल चुकी है। ब्रिटेन में 2000 में ही समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दी गई थी। यहां सेना के दरवाज़े भी समलैंगिकों के लिए खुले हैं। ब्रिटेन ने 2005 में समलैंगिक शादी को भी कानूनी मान्यता दे दी। इसके अलावा फ्रांस, स्विटज़रलैंड और जर्मनी ऐसे देश हैं। जहां समलैंगिकता को कानूनी दर्ज़ा तो नहीं मिला। लेकिन इस पर किसी तरह का प्रतिबंध भी नहीं है। अमेरिका में पिछले कई सालों से समलैंगिकता पर कानूनी बहस छिड़ी हुई है। यहां कैलिफोर्निया और मैसाचुसेट्स में इसे मान्यता मिल गई है। लेकिन पूरे देश में इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। इस सब के बीच दुनिया भर में हजारों लोग समलैंगिक अधिकारों को लेकर काफी जागरूक हो रहे हैं।
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