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Varanasi, UP, India
Working with an MNC called Network 18, some call it news channel(IBN7), but i call it दफ्तर, journalist by heart and soul, and i question everything..

April 21, 2009

हम पाक साफ हैं, सारे आरोप बेबुनियाद हैं-नेता जी

दूसरे चरण के मतदान का प्रचार खत्म हो चुका है। पहले चरण में कई ऐसे उम्मीदवार थे जिनका आपराधिक इतिहास है। दूसरे चरण में भी फिर ऐसे ही कई नाम सामने हैं जो कि जरायम की दुनिया से वास्ता रखते हैं। वोटिंग का दूसरा दरवाजा 23 अप्रैल को खुल जाएगा, लेकिन सावधान इस दरवाजे से काली दुनिया के सफेदपोश लोग भी दाखिल होने की फिराक में हैं। काले चेहरे के पीछे सफेद खादी का चोला ओढ़े वो जनता की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वाच के मुताबिक दूसरे चरण में चुनाव लड़ रहे 1633 उम्मीवारों में से 288 यानि करीब 17.63 फीसदी प्रत्याशी क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले हैं।
धनंजय सिंह- जौनपुर, बीएसपी, 22 केस, 21 में बरी, 1 केस जारी, हत्या, हत्या की कोशिश, लूट
अतीक अहमद- फूलपुर, अपना दल, 41 केस, हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, एक्सटॉर्शन
विजय कुमार शुक्ला, वैशाली, बिहार, जेडीयू, 25 केस, हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग,आर्म्स एक्ट
मित्र सेन, फैजाबाद, एसपी, 20, हत्या, हत्या की कोशिश, डकैती
समरेश सिंह, धनबाद, बीएसपी, 15 केस, हत्या की कोशिश, सामूहिक हत्या की कोशिश (culpable homicide )
अक्षय प्रताप सिंह- प्रतापगढ़, एसपी, 5 केस, हत्या की कोशिश, एक्टॉर्शन
गिरीश पासी- कौशांबी,यूपी, बीएसपी, 9 केस, हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग

जुर्म की दुनिया जब जिक्र आता है तो इनका नाम जरूर लिया जाता है। सत्ता की हनक इनके सिर चढ़कर बोलती है। सिर पर राजस्थानी पगड़ी और आंखों में सत्ता की चमक। ये रौबदार शख्सियत पहचान की मोहताज नहीं। क्योंकि जनता इसे अच्छी तरह पहचानती है क्राइम के बायोडाटा में इनके खिलाफ गंभीर से गंभीर मुकदमों का दाग है। इनके खिलाफ कई मुकदमें दर्ज थे लेकिन ज्यादातर केस में या तो गवाह पलट गया या फिर सबूत नहीं मिला..इन मुकदमों में हत्या, हत्या को कोशिश, हत्या की साजिश, लूट, आर्म्स एक्ट, गुंडा टैक्स वसूली शामिल है।

धनंजय सिंह--
रेलवे में ठेकेदारी, लखनऊ नगर निगम की ठेकेदारी, विकास प्राधिकरण,लखनऊ की ठेकेदारी और कई जिलों में पीडब्लूडी की ठेकेदारी में हस्तक्षेप का आरोप धनंजय पर कई बार लग चुका है। इनका दावा है अगर जीत गए तो सिर्फ विकास होगा।
वहीं धनंजय सिंह का कहना है जौनपुर के नौजवानों को रोजगार और जनपद का चौतरफा विकास होगा। इसके पहले के चुनाव में सरकारी गुंडई के चलते उत्पीडन का शिकार होना पड़ा था लेकिन इस बार ठीक है और पूरे प्रदेश की अस्सी सीटों में एक या दो को छोड़कर सभी सीटें बीएसपी जीतेगी।

रिजवान जहीर--
अहिंसा के उपदेशक भगवान बुद्ध की धरती से बीएसपी के उम्मीदवार। लेकिन इलाके की जनता इनके नाम से ही खौफ खाती है। इनके पहुंचने से पहले ही पहुंच जाती है इनके नाम की दहशत। यूपी के बलरामपुर इलाके की तुलसीपुर विधानसभा से रिजवान दो बार विधायक और बलरामपुर सीट से एक बार सांसद रह चुके हैं। बीएसपी के ही टिकट पर रिजवान पिछला चुनाव एसपी के एक और माफिया प्रत्याशी बृजभूषण शरण सिंह से हार चुके हैं। इस बार श्रावस्ती से उतरे हैं चुनाव मैदान में। लोकतंत्र में तो हर किसी को चुनाव लड़ने की इजाजत है। पुलिस रिकार्ड में रिजवान पर 23 आपराधिक मुक़दमें दर्ज थे। इनमें हत्या, हत्या की कोशिश, बलवा, अपहरण, लूट जैसे कई संगीन मामले शामिल हैं। लेकिन कहा जाता है कि अपने रसूख और सत्ता के सहयोग से रिजवान ने लगभग सारे मुक़दमे ख़त्म करा दिए। बलरामपुर के हरैया थाने में आज भी रिजवान की हिस्ट्रीशीट मौजूद है। रिजवान डंके की चोट पर कहते हैं कि हां मैं बाहुबली हूं।
रिजवान जहीर कहना है कि एक मुकदमा हमारे ऊपर है वो भी हमे याद नहीं है कब दर्ज हुआ है आरोप सिद्ध होगा तो राजनीति छोड़ दूंगा। मैं ताकतवर हूं दबंग हूं, बाहुबली हूं, मेरे ऊपर पुराने मुकदमे दस साल पहले दर्ज हुए थे वो खत्म हो गए।
पर्चा दाखिले के दौरान दिए गए हलफनामें में रिजवान जहीर ने सिर्फ एक मुकदमा दिखाया है। मजे की बात ये है कि रिजवान को ये भी याद नहीं कि ये मुकदमा दर्ज कब हुआ था।

विजय चौगले--
इलाके में इनका काफी दबदबा है। विजय चौगले के खिलाफ सात मामले दर्ज हैं। जिसमें मारपीट, धमकाना, भीड़ इकट्ठा करने जैसे मुकदमें शामिल हैं। सात साल पहले विजय पर हत्या का मुकदमा दर्ज था लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत से क्लीन चिट मिल गई। विजय चौगले के परिवार और अपराध का नाता पुराना है। विजय के दोनों भाईयों की हत्या कर दी गई थी। दोनों के ही क्रिमिनल रिकॉर्ड थे। लेकिन विजय चौगले अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को मामूली बता रहे हैं।
विजय चौगुले कहना है, हमारे उपर जो मामले है वह सभी राजनैतिक मामले है। इसमें कोई ऐसे मामले नही जिसमें मुझे जेल हुई हो। जो भी मामले है मारामारी के है। जमाव बंदी है। और धमकी के है। जो मेरे पर अपराधिक मामले होने की बात कर रहे है उनका ब्रेन म्पैपींग करवाया, मेरा भी ब्रेन मैपींग हो तो पता चल जाएगा।

जनता भी कश्मकश में है। उन्हें अच्छे नेता चाहिए लेकिन उनके पास विकल्प बहुत कम हैं। चढ़ गुंडन की छाती पर मुहर लगाओ हाथी पर, का नारा देने वाली बसपा की भी फेहरिश्त छोटी नहीं है। उम्मीदवारों की दास्तान बयां करने के लिए इनका इतिहास ही काफी है। हर पार्टी कहती है कि राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ नहीं होनी चाहिए। लेकिन खुद ही क्रिमिनल को टिकट दे देती है।

डॉन से पंगा, किसने की जुर्रत

अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई को किसी ने अगवा करके हत्या कर दी गई। भारत के मोस्ट वांटेड अपराधी दाऊद इब्राहिम के भाई को अगवा कर कहीं ले जाया गया वो शख्स जिसकी परछाई आजतक भारतीय जांच एजेंसियां छू तक नहीं पाईं उसके जिगरी छोटे भाई नूरा को अगवा करने के बाद बेरहमी से कत्ल कर दिया गया औऱ कत्ल के बाद नूरा की लाश दाऊद के घर के सामने फेंक दी गई। दुनिया के मोस्ट वांटेड अपराधी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई नूरा के कत्ल का असली सच क्या है। खबर आई कि बलूचिस्तान के रहमान सरदार गैंग ने नूरा को अगवा करने के बाद उसका कत्ल कर दिया। लेकिन क्या एक अदने से डाकू की हिम्मत कि वो दुनिया के सबसे बड़े डॉन के भाई की हत्या कर सके। कौन है जिसने रची दाऊद के भाई की हत्या की साजिश। वो कौन है जिसने पाकिस्तान में रहकर दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादियों में से एक दाऊद को चुनौती देने की हिम्मत दिखाई।

आखिर कौन है वो जो पाकिस्तान में रहकर दाऊद का जानी दुश्मन बन गया आखिर कौन है वो जिसने दाऊद के छोटे भाई को अगवा कर ले गया। सालों से उसके साथी और राजदार को बेदर्दी से मारी गईं सात गोलियां। दुश्मनी, जुनून और छल की ये कहानी खुद भाई के घर में बगावत की कहानी है। ये बगावत खुद दाऊद के घर पर ही हुई। और इस बगावत की कीमत चुकाई उसके अपने खून ने दाऊद इब्राहिम जिसकी तस्वीर भी कम से कम 20 साल पुरानी है। उसका भाई मार डाला गया खुलेआम और वो इंसान हाथ मलता रह गया जिसका डंका 19 देशों में बजता है जिसके एक इशारे पर मुल्कों में धमाके हो जाते हैं हथियारों की खेप पहुंच जाती है, उसके गुर्गे किसी की भी सुपारी उठा लेते हैं। उस दाऊद के भाई नूरा की सुपारी किसने दी, और किसने ली। फिल्मों में तो देखा है अंडरवर्ल्ड में दरार कैसे पड़ती है। लेकिन अब वही दरार असली जिंदगी के असली अंडरवर्ल्ड में भी पड़ रही है। अंडरवर्ल्ड में चल रही चर्चा और मुंबई पुलिस के सूत्रों की मानें तो नूरा के कत्ल के पीछे दो चेहरे नजर आ रहे हैं, लेकिन असलियत में वो है सिर्फ एक ही चेहरा। पहला नाम - रहमान डकैत, कराची का छुटभैया डॉन लेकिन क्या उसकी इतनी हैसियत है कि वो सीधे सीधे दाऊद के भाई की जान ले ले। ये बात जरा परेशआन करती है कि आखिर कैसे हो सकता है कि दाऊद के भाई को पाकिस्तान में ही अगवा किया जाए और दाऊद कुछ भी ना कर पाए। जो दाऊद खुद आईएसआई के घेरे में रहता है वो ये पता न लगा पाए कि नूरा इब्राहिम को अगवा करने के बाद कहां ले जाया गया। नूरा का कत्ल जितनी बेरहमी से किया गया वो दाऊद सपने में भी नहीं सोच सकता था।

क्या दाऊद सालों साल किसी जहरीले सांप को दूध पिलाता रहा। दाऊद इब्राहिम को चुनौती वही शख्स दे सकता है जिसे दाउद की ताकत का अंदाजा हो। जो उसके हर राज जानता हो। सूत्रों की माने तो ये शख्स कोई और नहीं छोटा शकील है। छोटा शकील ने ही नूरा की हत्या करवाई है। वलूचिस्तान का रहमान सरदार गैंग तो सिर्फ एक मोहरा था। नूरा का असली कातिल छोटा शकील ही है। जब भी दाऊद का ये बीस साल पुराना चेहरा चमकता है, उसी चेहरे के साथ ये चेहरा भी नजर आता है, छोटा शकील। दाऊद का सबसे भरोसेमंद सिपाही, दाऊद के सबसे भरोसेमंद सिपाही ने ही उसकी पीठ में छुरा भोंक दिया।
दाऊद के भाई नूरा की हत्या किसी और ने नहीं छोटा शकील ने करवाई है। खुफिया सूत्रों से ये पुख्ता जानकारी मिली है कि छोटा शकील अब दाऊद का राइट हैंड नहीं रहा। दुनिया भर में खौफ का दूसरा नाम बन चुकी डी कंपनी में दरार पड़ चुकी है। दाऊद के भाई नूरा का कत्ल डी कंपनी में पड़ी दरार का सबसे बड़ा सच है। दाऊद के इलाके में रहकर दाऊद के भाई को मरवाने की हिम्मत सिर्फ छोटा शकील ही दिखा सकता है। हत्या के पहले से ही छोटा शकील पाकिस्तान छोड़ कर फरार है। नूरा का कत्ल करवाने से पहले छोटा शकील बड़ी ही चालाकी के साथ पाकिस्तान से निकल भागा है। भाई के कत्ल से बौखलाया दाऊद छोटा शकील को खोज रहा है लेकिन इस वक्त वो कहां है कोई नहीं जानता। या शायद सिर्फ पाकिस्तान की एक सरकारी एजेंसी के कुछ लोग जानते हैं।

ये साजिश रची गई थी 22 मार्च को। लेकिन बड़ी बात तो ये है कि आखिर 22 मार्च का सच क्या है। क्या हुआ था उस दिन। खुफिया सूत्रों की मानें को कराची में 22 मार्च को नूरा और अनीस इब्राहिम ने छोटा शकील को काफी बेइज्जत किया था, उसके साथ मारपीट भी की थी। इसी दिन छोटा शकील ने ठान लिया कि वो नूरा को किसी कीमत पर नहीं छोड़ेगा। 22 मार्च 2009 यानि नूरा इब्राहिम के कत्ल से 9 दिन पहले। कराची के एक कमरे में कुछ ऐसा हुआ जो किसी को नहीं मालूम। 22 मार्च को उस वक्त कमरे में मौजूद थे सिर्फ तीन लोग। दाऊद के दोनों भाई नूरा और अनीस इब्राहिम और छोटा शकील। खुफिया सूत्रों से मिली पुख्ता जानकारी के मुताबिक 22 मार्च को इसी कमरे में नूरा और अनीस ने छोटा शकील के साथ मारपीट की थी। खबर तो यहां तक है कि नूरा ने खुद छोटा शकील को थप्पड़ भी मारा था। तीन हजार करोड़ की डी कंपनी में नंबर दो पर मौजूद छोटा शकील की इतनी बेइज्जती पहले कभी नहीं हुई थी। छोटा शकील के साथ मारपीट आसान बात नहीं लगती। लेकिन यहां मामला भाई-भाई का था। दाऊद के भाइयों ने छोटा शकील पर अपने भाई अनवर की मदद करने का इल्जाम लगाया।

छोटा शकील के भाई अनवर को काफी पहले ही डी कंपनी से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। अनवर इस वक्त बांग्लादेश में फर्जी करेंसी...नकली सीडी और हवाला का धंधा करता है। 22 मार्च को अनीस और नूरा ने छोटा शकील को साफ कह दिया था कि डी कंपनी के बागी अनवर को मदद देना बंद करे। लेकिन छोटा शकील को दाऊद के भाइयों का ये रवैया नागवार गुजरा। उसने पलटकर जवाब दिया और नौबत मारपीट तक आ पहुंची। खुफिया सूत्रों की मानें तो 22 मार्च को ही नूरा के कत्ल की तारीख तय हो गई थी। बदले की आग में धधक रहा छोटा शकील खुद दाऊद इब्राहीम के समझाने के बाद भी नहीं माना। दाऊद ने अपने सामने तीनों को बुलाकर झगड़ा खत्म करने की बात कही ...लेकिन छोटा शकील अब कुछ सहने के लिए तैयार नहीं था।

दरअसल छोटा शकील को पिछले कुछ महीनों में ये अहसास होने लगा था कि दाऊद उसके पर कतरना चाहता है। अनीस और नूरा से झगड़े के बाद दाऊद ने भी छोटा शकील को अफने भाई अनवर के धंधों से दूर रहने की हिदायत दी। छोटा शकील को लगने लगा था कि भाइयों के आगे अब दाऊद किसी की भी नहीं सुनेगा। बदला लेने के लिए शकील के पास डी कंपनी से अलग होने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं था।

जितना बड़ा सच ये है कि नूरा इब्राहिम की हत्या छोटा शकील ने करवाई। उतना ही बड़ा सच ये भी है कि वो इस वक्त पाकिस्तान में नहीं है। नूरा की हत्या की साजिश रचने के बाद ही वो पाकिस्तान छोड़कर भाग गया। अपने साथ वो डी कंपनी के कई शूटरों को भी ले गया है। यानि डी कंपनी की दरार अब खुलकर सामने आ चुकी है।

1993 के मुंबई बम धमाकों और नूरा के कत्ल का एक अजीब का रिश्ता है। मुंबई बम धमाके की साजिश रचने के बाद दाऊद इब्राहिम मुंबई से फरार हो गया था। दाऊद से हर सबक लेने वाले छोटा शकील ने नूरा के कत्ल से पहले भी यही किया। खुफिया एजेंसियों की मानें तो 31 मार्च को रहमान सरदार के हाथों नूरा को कत्ल करवाने से पहले ही छोटा शकील ने पाकिस्तान छोड़ दिया। वो 26 मार्च को ही अपने साथियों इकबाल मिर्ची...कालिद पहलवान और असलम भट्टी के साथ जेद्दा भाग गया।

भारतीय खुफियों एजेंसियों को पुख्ता जानकारी मिली है कि नूरा की हत्या करवाने से पहले ही छोटा शकील जेद्दा पहुंच चुका था। उसके जाने के बाद ही रहमान सरदार ने नूरा को अगवा किया और फिर बेरहमी से कत्ल कर दिया। शकील अपने साथ उन लोगों को भी ले गया...जो दाऊद और उसके भाइयों की आंख में खटकते थे।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक 22 मार्च को कराची में अनीस और नूरा से झगड़ा होने के बाद जब दाऊद ने भी शकील का साथ नहीं दिया...तो उसे अपनी हकीकत समझ आने लगी। खुफिया सूत्रों की मानें तो 22 मार्च से कुछ दिन पहले ही दाऊद इब्राहिम ने भी छोटा शकील को जमकर फटकार लगाई थी। वजह थी बीजेपी नेता वरुण गांधी की हत्या की सुपारी। दरअसल छोटा शकील वरुण गांधी की हत्या करवाकर अंडरवर्ल्ड में अपनी धौंस जमाना चाहता था। लेकिन बैंगलोर में उसके शूटर राशिद मालाबारी की गिरप्तारी की खबर जब दाऊद को लगी तो उसने छोटा शकील को अपनी हैसियत में रहने को कहा। साफ है कि डी कंपनी में हर रोज छोटा शकील का कद घटता जा रहा था।

खुफिया सूत्रों की मानें तो पिछले कुछ महीनों में छोटा शकील ने डी कंपनी की मीटिंग में जाना कम कर दिया। उसने उन लोगों को एक साथ करना शुरु कर दिया जो उसके जरिए डी कंपनी में शामिल हुए। 22 मार्च को हुए झगड़े के बाद शकील ने पहले अपने दुश्मन नूरा को निपटाया और अब अपना अलग गैंग बनाने की मुहिम में जुट गया है।

हम आपको बता दें कि नूरा की हत्या को पूरी ताकत के साथ छिपाने की कोशिश की गई थी। शायद दाऊद नहीं चाहता था कि डी कंपनी में पड़ी दरार दुनिया के सामने आए। लेकिन ये सच अब सामने आ चुका है कि नूरा की हत्या छोटा शकील ने करवाई। ऐसे में सवाल ये कि क्या पाकिस्तान में बिना आईएसआई की मर्जी के कुछ भी मुमकिन है। क्या पाकिस्तान में दाऊद का वक्त खत्म हो रहा है।

क्या आईएसआई की मर्जी के बिना दाऊद को चुनौती दी जा सकती है क्या आईएसआई की मर्जी के बिना नूरा का कत्ल हो सकता है आखिर छोटा शकील रहमान सरदार तक कैसे पहुंचा। ये वो सवाल हैं जिसके जवाब पाकिस्तान में इस वक्त दाऊद इब्राहिम की असली हालत को बयां करते हैं। जिस शख्स का परिवार खुद आईएसआई के पहरे में रहता है...उसमें से एक का अपहरण और हत्या इतना आसान काम नहीं। खुफिया सूत्रों की मानें तो नूरा इब्राहिम के कत्ल के लिए छोटा शकील को रहमान सरदार तक किसी और ने नहीं खुद आईएसआई ने पहुंचाया। बिना आईएसआई की मर्जी और मंजूरी के पाकिस्तान में दाऊद को चुनौती देने की हिम्मत अब तक नहीं थी। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। 26 नवंबर को मुंबई हमले के बाद दाऊद इब्राहिम के लिए पाकिस्तान में हालात पहले जैसे नहीं रहे। पाकिस्तान सरकार पर अमेरिका का जबरदस्त दबाव अब असर दिखाने लगा है। यही वजह है कि नूरा की हत्या की साजिश की भनक तक दाऊद को नहीं लगी। डी कंपनी के 90 फीसदी शूटर अब तक छोटा शकील के इशारे पर ही काम किया करते थे। आईएसआई के अफसरों में छोटा शकील की दाऊद से भी ज्यादा अच्छी पैठ थी। यहां तक की भारतीय खुफिया एजेंसी के लोगों को पहचानने में भी आईएसआई छोटा शकील के गुर्गों की मदद लेती थी। शायद यही वजह है कि जब शकील ने दाऊद का साथ छोड़ने का मन बनाया तो आईएसआई ने उसकी मदद ही की। बलूचिस्तान के खतरनाक डकैत रहमान सरदार तक शकील को पहुंचवाया और 26 मार्च को उसे पाकिस्तान से निकल भागने में भी मदद की।

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