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Varanasi, UP, India
Working with an MNC called Network 18, some call it news channel(IBN7), but i call it दफ्तर, journalist by heart and soul, and i question everything..

December 30, 2010

सभी सिकंदर हैं... दुनिया जीतने का माद्दा है इनमें

साल 2010 का अंत क्रिकेट के लिए गौरवांवित करने वाला रहा। खासतौर से भारतीय क्रिकेट के लिए। इस साल जहां भारतीय क्रिकेट टीम टेस्ट क्रिकेट के शीर्ष पायदान पर पहुंची वहीं इस साल कई रिकॉर्ड बने और टूटे। न्यूजीलैंड को घर में धोने के बाद जब धोनी के धुरंधर दक्षिण अफ्रीकी मैदान पर आगाज करने के लिए उड़ान भर रहे थे तो उन्हे इस बात का इल्म था ही कि उनका सामना तेज और बाउंसी पिचों से होने जा रहा है। भारतीय क्रिकेट के लिए कभी भी दक्षिण अफ्रीकी दौरा फूलों को सेज नहीं रहा है। चलिए ज्यादा बातें हो रही हैं। मैं मुद्दे पर आता हूं। बात हो रही है भारतीय टीम के दक्षिण अफ्रीकी दौरे की जो कि 16 दिसंबर 2010 से शुरू हो रहा है। तारीख इस लिए लिख रहा हूं कि आने वाली पीढ़ी को याद रहे कि ये समय था जब भारत अपने चरम पर था। दूसरे टेस्ट में 87 रनों की जीत से टीम इंडिया ने सीरीज में 1-1 की बराबरी कर ली है। इस टेस्ट में यूं तो कई हीरो रहे। जहां जहीर और श्रीसंत ने अपनी तेज गेंदबाजी की धार और महीन की वहीं हरभजन ने अपनी फिरकी का जाल ऐसा फैलाया कि स्मिथ की नंबर दो टीम औंधे मुंह गिर पड़ी। मैच में तो एक बार अफ्रीकी कप्तान अपना आपा तक खो बैठे और श्रीसंत को बाठ पढ़ाने लगे। शायद वो ये भूल गए थे कि इस टीम को पाठ पढ़ाने का दम सिर्फ सचिन तेंदुलकर में ही है। जो कि इस वक्त खुद श्रीसंत के ही साथ हैं। टेस्ट में शतकों के अर्धशतक लगा चुके सचिन आज भी उतने ही सौम्य बन हुए हैं जैसे हम उन्हें अपने बचपन से देखते आ रहे हैं(कई लोग इससे अपनी जवानी के दिन भी याद रहे होंगे)। सीरीज में 1-0 से पीछे चल रही टीम इंडिया ने इस जीत के साथ जता दिया कि नंबर वन का खिताब उसे तुक्के से नहीं मिला है। सेंचुरियन में हार के बाद ये जीत हिंदुस्तान के लिए इसलिए भी बहुत मायने रखती क्योंकि यहां न तो विकेट उसके मुताबिक थी और न ही मौसम। क्या आपको जो जीता वोही सिकंदर का वो गाना याद आता है.... वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है...हारी बाजी को जीतना हमें आता है...ये सच है। हारी बाजी को जीत में बदलने वाले को सिकंदर कहते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम ने इससे पहले भी बड़े कई किले फतह किए हैं...और यकीनन इसके बाद भी कामयाबी के झंडे गाड़ेगी...लेकिन किंग्समीड डरबन में 87 रनों की जीत इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज रहेगी...कप्तान महेंद्र सिंह धोनी जब 26 दिसंबर 2010 को टॉस के लिए उतरे थे तो, हालात पूरी तरह से टीम इंडिया के खिलाफ थे.....दुनिया की नंबर एक टीम को अब तक दक्षिण अफ्रीकी जमीन पर सीरीज जीतने में कामयाबी नहीं मिली...सेंचुरियन में बड़ी हार के बाद सपने तार-तार होते दिख रहे थे...दक्षिण अफ्रीका ने टीम इंडिया के स्वागत के लिए डरबन के तेज विकेट पर हरी घास की पट्टी बिछा दी...गेंदबाजों की फौज के अगुवा जहीर खान की फिटनेस को लेकर सवाल थे...मुसीबत पर मुसीबत ये कि, ऐसे हालात में धोनी टॉस हार गए और टीम इंडिया को पहले बल्लेबाजी करनी पड़ी...लेकिन अगले 96 घंटे में जो हुआ, उसे क्रिकेट प्रेमी कभी नहीं भूलेंगे..
दक्षिण अफ्रीका से ये जीत छीनना आसान नहीं था...पहले बल्लेबाजी करते हुए टीम इंडिया सिर्फ 205 रन पर आउट हो गई....जवाब में जहीर की अगुवाई में गेंदबाजों की फौज ने पलटवार किया और स्मिथ एंड कंपनी को 131 रनों पर निपटा दिया...मैच का नतीजा अब दूसरी पारी को तय करना था....लेकिन वीरेंद्र सहवाग, मुरली विजय, राहुल द्रविड़ और सचिन तेंदुलकर सस्ते में निपट गए....दारोमदार पूरी तरह से लक्ष्मण के कंधों पर था और हैदराबाद के इस बल्लेबाज ने पांच घंटे तक अफ्रीकी खिलाड़ियों की आग उगलती गेंदों को ठंडा कर दिया...
लक्ष्मण की पारी देखकर क्रिकेट के जानकारों ने यहां तक कह दिया कि टीम इंडिया ने नहीं बल्कि अकेले लक्ष्मण ने अफ्रीका के सामने जीत के लिए 303 रनों का लक्ष्य रखा....टीम इंडिया के गेंदबाजों ने दूसरी पारी में भी निराश नहीं किया...श्रीशांत की गेंदों के आगे अफ्रीकी बल्लेबाज अपना धैर्य खो बैठे...पीटरसन को हरभजन ने आउट किया तो खतरनाक हाशिम अमला श्रीशांत के दूसरे शिकार बने...
मैच के चौथे दिन भारत जीत से सात विकेट दूर थी....दक्षिण अफ्रीका को मंजिल तक पहुंचने के लिए 192 रन चाहिए थे....और कैलिस भारत की जीत में दीवार बने हुए थे.....यहां कोच्चि एक्सप्रेस श्रीशांत ने उन्हें आउट कर विरोधी ड्रेसिंग रूम में खलबली मचा दी...हरभजन सिंह की एक गेंद को एबी डीविलियर्स पढ़ नहीं सके और एलबीडब्ल्यू आउट हो गए...आधी विरोधी टीम वापस पवेलियन लौट चुकी थी और अब आखिरी हल्ला बोलना था...

एशवेल प्रिंस एक छोर पर टिके हुए थे, लेकिन जहीर की एक गेंद पर जैसे ही बाउचर आउट हुए, ड्रेसिंग रूम की खलबली सन्नाटे में बदल गई...हैरिस, मार्केल और त्सोबे भी एक-एक कर आउट हो गए और भारत ने सेंचुरियन की हार का बदला का बदला ले लिया...

नो वन किल्ड आरुषि

आरुषि को कत्ल हुआ ये बात तो साफ है... लेकिन आरुषि का कत्ल किसी ने नहीं किया... आप हैरान ना हों... देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई यानि कि सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन का यही कहना है... और तो और इस एजेंसी ने कोर्ट से यहां तक कह डाला कि इस केस को बंद ही कर दिया जाए, इसमें कुछ नहीं मिलने वाला.. सही भी है, ढाई साल बाद क्या मिलने वाला था...
ये सवाल सवाल ही रह जाएगा कि आखिरकार 13 साल की मासूम आरुषि को किसने मारा। उसके नौकर हेमराज का कत्ल किसने किया। सीबीआई की लंबी चौड़ी टीम भी आरुषि को इंसाफ नहीं दिलवा सकी। बुधवार शाम करीब चार बजे सीबीआई के अधिकारी अचानक कोर्ट में देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री की फाइल बंद कराने पहुंचे। सीबीआई के हाथों में सबसे बड़ी नाकामी थी। यही वो कोर्ट को बताने आए थे। कि इस हत्याकांड से जुड़े सबूत उन्हें नहीं मिल पा रहे हैं। लिहाजा इस केस को अब बंद कर दिया जाए। ये बात किसी को गले नहीं उतर रही कि आखिर सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट फाइल करने के लिए बुधवार का दिन क्यों चुना। क्योंकि इन दिनों कोर्ट की छुट्टियां चल रही हैं और सीबीआई का स्पेशल कोर्ट बंद चल रहा है। लगता है कि सीबीआई कम से कम येही साबित करना चाहती थी कि वो छुट्टी के दिन भी काम करती है। शायद अपनी नाकामी को छिपाने का इससे बेहतर उपाय सीबीआई को नहीं मिला। सीबीआई की इस नाकामी ने सभी को सकते में डाल दिया हैं। हम बता दे कि आरुषि हेमराज मर्ड़र के से की सुनवाई गाजियाबाद की सीबीआई अदालत में चल रही है।
तमाम उन्नत प्रोसीजर्स जिसमें नार्को टेस्ट जिससे निठारी हत्याकांड का पर्दाफाश कर जांच एजेंसियों ने डंका पीटा था, वो भी असफल हुआ। दरअसल इस जांच में हम मीडिया वाले भी पानी मांगते रहे। जो हर बार ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर में इस केस खिलवाड़ ही करते रहे। आरुषि की हत्या के पहले आरोपी बने उसके पिता डॉक्टर राजेश तलवार अब आरुषि के लिए इंसाफ मांग रहे हैं।

आरुषि और उसके नौकर हेमराज की हत्या नोएडा के जलवायु विहार के उनके गर एल-32 में 15-16 मई 2008 की रात हत्या कर दी गई थी। अगले दिन यानी 16 मई की सुबह आरूषि की लाश उसके बेडरूम में मिली थी जबकि 17 मई को घर के नौकर हेमराज की लाश छत पर बरामद हुई थी। नोएडा पुलिस ने इस मामले में आरूषि के पिता राजेश तलवार को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। बाद में सीबीआई को केस ट्रांसफर होने पर सीबीआई ने तीन नौकरों राजकुमार, विजय मंडल, कृष्णा को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लेकिन सीबीआई कुछ साबित नहीं कर पाई. लिहाजा दोनों को जमानत मिल गई।
सीबीआई ने हर कोशिश कर ली। लेकिन वो हत्या में इस्तेमाल हथियार तक नहीं बरामद कर पाई। खास बात ये है कि सबूत ढूंढने में जुटी सीबीआई ने तीनों नौकरों के साथ साथ आरूषि के पिता राजेश तलवार और मां नुपुर तलवार की हर साइंटिफिक जांच कराई लेकिन फिर भी वो नाकाम हुई। सीबीआई की नाकामी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन इन सवालों के बीच आरुषि को इंसाफ मिलना रह गया।
खास बात ये है कि हमारे देश की जांच एजेंसिया हमेशा से हाई प्रोफाइल केसों में फेल ही होती आ रही हैं। क्या आपको जेसिका लाल हत्यकांड याद है। उस दिन दिल्ली की रातें कुछ अधिक गर्म थीं। साल 1999, अप्रैल की 29 तारीख। दिल्ली की मशहूर सोशलाइट बीना रमानी ने अपने नए रेस्टोरेंट में एक नाइट पार्टी का आयोजन किया था। जिसमें कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने शिरकत की थी। रात के करीब 11.15 बजे मनु शर्मा अपने दोस्तों के साथ इस रेस्टारेंट में पहुंचा। इस पार्टी में जेसिका लाल बार टेंडर के रोल में थी। मनु ने जेसिका से और अधिक शराब मांगी तो जेसिका ने यह कह कर शराब देने से मना कर दिया था कि शराब खत्म हो चुकी है। इसके बाद क्या था, मनु ने एक के बाद एक दो गाली दाग दीं। मीडिया और महिला संगठनों के दबाव के बाद इस केस का ट्रायल शुरु हुआ। लेकिन इसमें पूरे सात साल लग गए। इसके बाद बीस दिसंबर 2006 को मनु शर्मा को इस केस में उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
तो क्या एक बार फिर मीडिया और गैर सरकारी संगठनों को एखजुट होना पड़ेगा। क्या एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में कोई जनहित याचिका दायर होगी। जसमें सुप्रीम कोर्ट ये बात पूछेगा कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा। ठीक उसी तरह जिस तरह ये तवाल उठा था 'व्हू किल्ड जेसिका'। ये सवाल फिर उठेगा 'व्हू किल्ड आरुषि देन'। ये देखने वाली बात होगी। तब तब ये मान कर चलिए, इस कत्ल का कोई कातिल नहीं है।

December 03, 2010

अंबेडकर के नाम पर पार्क-नीति



नोएडा के आंबेडकर पार्क मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। पार्क में किसी भी तरह के निर्माण पर कोर्ट ने फिलहाल रोक लगा रखी है। 685 करोड़ की लागत से बन रहा ये पार्क मायावती के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में शुमार है ... इस पार्क का लगभग 75 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। स्थानीय लोगों ने पर्यावरण का हवाला देते हुए इस पार्क के निर्माण के खिलाफ याचिका दायर की थी। यूपी का चर्चित नोएडा पार्क, मुख्यमंत्री मायावती का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट, जिस पर फूंक दिए गए जनता के 685 करोड़ रुपए जिसे बनाने के लिए काट डाले गए 6 हजार पेड़, जो है बर्ड सैंक्चुअरी यानि पक्षी अभ्यारण्य के बेहद करीब। लेकिन यूपी सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य पर सुप्रीम कोर्ट ने करीबन साल भर पहले रोक लगा दी। रोक लगाने की अहम वजहें थीं
- पार्क में जरूरत से ज्यादा पक्का निर्माण
- हजारों पेड़ों को काटना
- पक्षी अभ्यारण्य से सटा हुआ होना
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से इस पार्क को बनवाने के लिए ज़रूरी इजाज़त ना लेना

यूपी सरकार के नोएडा से पहले लखनऊ के अंबेडकर पार्क के निर्माण पर भी सुप्रीम कोर्ट रोक लगा चुकी है। अदालत को ये बात रास नहीं आई कि आम आदमी के पैसों से यूपी सरकार इन पार्कों में मायावती और बीएसपी संस्थापक कांशीराम की मूर्तियां लगा कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरा करने में जुटी है। अदालत की फटकार ने सरकार के इस मंसूबे पर साल भर तक लगाम लगाए रखी ... हालांकि 23 अक्टूबर 2009 को केंद्र के पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इस पार्क को हरी झंडी दे दी थी ... पर्यावरण मंत्रालय के उस वक्त दिए गए हलफनामे के मुताबिक
- नोएडा पार्क बनाने के लिए यूपी सरकार को केंद्र से किसी भी तरह की इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं
- क्योंकि नोएडा पार्क का क्षेत्रफल 50 हेक्टेयर से कम है
- लेकिन नोएडा पार्क के ओखला पक्षी विहार के नजदीक होने पर हलफनामे में खामोशी थी
नोएडा पार्क प्रोजेक्ट मामले में हर किसी की नजर अदालत पर टिकी होगी, सवाल ये है कि क्या यूपी सरकार के इस बड़े प्रोजेक्ट पर अदालत का डंडा चलेगा या फिर हाल के दिनों में यूपी सरकार के रुख में आई नरमी का उसे फायदा होगा।
अदालत में यूपी सरकार ने पहले ये दलील दी थी कि पार्क से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं हुआ है और ना ही होगा। लेकिन बाद में यूपी सरकार के रुख में नरमी आई। उसने कहा कि वो
- नोएडा पार्क में कंक्रीट के हिस्से को कम करेगी
- और इस बात का ख्याल रखेगी कि इलाके में पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान ना हो
तो क्या अदालत से यूपी सरकार को उसके इस रुख का फायदा मिलेगा ... या फिर सुप्रीम कोर्ट सियासत चमकाने के लिए लोगों के पैसे की फिजूलखर्ची पर लगाम लगाने वाला फैसला सुनाएगा

September 18, 2010

अयोध्या विवाद का घटनाक्रम

हिन्दू और मुस्लिमों के बीच तनाव की अहम वजह है हिंदुओं का दावा जिसमें कहा जा रहा है कि यह स्थान भगवान श्रीराम की जन्म भूमि है,वहीं मुसलमानों का कहना है कि इसी स्थान पर बाबरी मस्जिद थी।

भगवान श्रीराम हिंदुओं के आराध्यदेव हैं। अयोध्या उनकी जन्मभूमि है। अयोध्या का विवाद, रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के दावे के बीच घूम रहा है। इस अहम मुद्दे से देश की राजनीति एक लंबे अरसे से प्रभावित हुई है। मामले-मुक़दमे अदालतों में चल रहे हैं।

कोर्ट में पिछले छह दशकों से इस बात का मुकदमा चल रहा है कि राम मंदिर या बाबरी मस्जिद का मालिकाना हक किसका है। वह हिन्दू का है या मुस्लिम समुदाय का है। तमाम दावे पेश किए गए, तमाम जिरह हुई।
अपने दावे के पक्ष में हिंदुओं ने 54 और मुस्लिम पक्ष ने 34 गवाह पेश किए। इनमे धार्मिक विद्वान, इतिहासकार और पुरातत्व जानकार शामिल हैं।

एक ताजुब्ब भी है मुस्लिम पक्ष ने अपने समर्थन में 12 हिंदुओं को भी गवाह के तौर पर पेश किया। दोनों पक्षों ने लगभग 15 हज़ार पेज दस्तावेज़ी सबूत पेश किए। कई पुस्तकें भी अदालत में पेश की गईं।
फैसले की घड़ी अब नजदीक आ गई है। 24 सितम्बर का दिन मुकरर्र हुआ है देश के भाग्य का। कौन जीतेगा, कौन हारेगा। दिल थामे बैठे है हमारे हिन्दू और मुस्लिम भाई।

इस इतिहास की बानगी पर एक नज़र...

24 सितम्बर 2010: मालिकाना हक पर फैसला दिया जाएगा।
जुलाई, 2010: रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई पूरी।
मई, 2010: बाबरी विध्वंस के मामले में लालकृष्ण आडवाणी और अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ आपराधिक मुक़दमा चलाने को लेकर दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट में ख़ारिज।
24 नवंबर, 2009: संसद के दोनों सदनों में लिब्रहान आयोग की रपट पेश। अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया। नरसिंह राव को साफ-साफ बचा लिया।
7 जुलाई, 2009: उत्तरप्रदेश सरकार ने एक हलफ़नामे में स्वीकार किया कि अयोध्या विवाद से जुड़ी 23 महत्वपूर्ण फाइलें सचिवालय से गायब हो गई हैं।
30 जून 2009: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 17 वर्षों के बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी। इस आयोग का गठन बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की जांच के लिए गठित किया गया था।
19 मार्च 2007: राहुल गाँधी ने चुनावी दौरे में कहा कि अगर नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री होता तो बाबरी मस्जिद न गिरी होती।
जुलाई 2006: सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ़ काँच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया।
28 जुलाई 2005: लालकृष्ण आडवाणी 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में गुरूवार को रायबरेली की अदालत में पेश हुए।अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ आरोप तय किए।
जनवरी 2005: लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या मामले में अदालत में तलब किया गया।
जुलाई 2004: शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने सुझाव दिया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मंगल पांडे के नाम पर कोई राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाए।
अप्रैल 2004: आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर का निर्माण ज़रूर किया जाएगा।
अगस्त 2003: भाजपा नेता और उप प्रधानमंत्री ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकराया कि राम मंदिर बनाने के लिए विशेष विधेयक लाया जाए।
जून 2003: कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की और उम्मीद जताई लेकिन कुछ नहीं हुआ।
मई 2003: 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के ख़िलाफ सीबीआई ने पूरक आरोपपत्र दाखिल किए।
अप्रैल 2003: इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की, जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कहा गया है कि उसमें मंदिर से मिलते जुलते अवशेष मिले हैं।
मार्च 2003: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे ठुकरा दिया गया।
जनवरी 2003: विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर की हकीकत पता लगाने के लिए रेडियो तरंगों का प्रयोग किया गया। पर कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला।
22 जून, 2002: विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि के हस्तांतरण की माँग उठाई।
13 मार्च, 2002: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर अपना निर्णय देते हुए कहाकि यथास्थिति बरक़रार रखी जाएगी। शिलापूजन नहीं होगी।
जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए अयोध्या समिति का गठन की।
2001: राम मंदिर निर्माण जरूर बनाएंगे। विश्व हिंदू परिषद ने इस संकल्प को एक बार फिर दोहराया।
1998: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई।
1992: 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया। इसमें विहिप, भाजपा व शिव सेना के कार्यकर्ता शामिल थे। सांप्रदायिक दंगे हुए। 2000 से अधिक लोग मारे गए।
1990: बाबरी मस्जिद को विहिप ने नुकसान पहुंचाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने विवाद सुलझाने के प्रयास किए।
1989: विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल के नज़दीक राम मंदिर की नींव रखी।
1986: बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन। फैजाबाद सेशन कोर्ट ने विवादित मस्जिद के दरवाज़े पर से ताला खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों ने विरोध किया।
1984: विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में एक समिति का गठन। जिसका मुख्य उद्देश्य राम जन्मभूमि को मुक्त करना था। बाद में इस अभियान की जिम्मेदारी भाजपा के एक प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी पास आ गईं।
1949: दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर किया। सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित कर दिया और ताला लगा दिया।
1859: इस विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन शासक ने विवादित जगह को चारों तरफ से घेर दिया। अब मुसलमान विवादित परिसर के भीतर इबादत और हिन्दू बाहर प्रार्थना करने लगे।
1853: यह वह वर्ष था जब अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद का मुद्दा बना। और पहली बार इस स्थल के पास सांप्रदायिक दंगे हुए।
1528: हिन्दूओं के आराध्य देवता भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर मस्जिद बनवाई गई। बताया जाता है कि इसे मुग़ल सम्राट बाबर ने बनवाया था

August 28, 2010

अकबर इलाहाबादी के चंद नज्मों पर गौर फरमाएं

अफ़्सोस है

अफ़्सोस है गुल्शन ख़िज़ाँ लूट रही है
शाख़े-गुले-तर सूख के अब टूट रही है

इस क़ौम से वह आदते-देरीनये-ताअत
बिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है


आपसे बेहद मुहब्बत है मुझे

आपसे बेहद मुहब्बत है मुझे
आप क्यों चुप हैं ये हैरत है मुझे

शायरी मेरे लिए आसाँ नहीं
झूठ से वल्लाह नफ़रत है मुझे

रोज़े-रिन्दी है नसीबे-दीगराँ
शायरी की सिर्फ़ क़ूवत है मुझे

नग़मये-योरप से मैं वाक़िफ़ नहीं
देस ही की याद है बस गत मुझे

दे दिया मैंने बिलाशर्त उन को दिल
मिल रहेगी कुछ न कुछ क़ीमत मुझे

अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते

ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते

आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते

किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते

हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते

दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते

गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माअ़ने
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते

आबे ज़मज़म से कहा मैंने

आबे ज़मज़म से कहा मैंने मिला गंगा से क्यों
क्यों तेरी तीनत में इतनी नातवानी आ गई?

वह लगा कहने कि हज़रत! आप देखें तो ज़रा
बन्द था शीशी में, अब मुझमें रवानी आ गई

उन्हें शौक़-ए-इबादत भी है

उन्हें शौक़-ए-इबादत भी है और गाने की आदत भी
निकलती हैं दुआऐं उनके मुंह से ठुमरियाँ होकर

तअल्लुक़ आशिक़-ओ-माशूक़ का तो लुत्फ़ रखता था
मज़े अब वो कहाँ बाक़ी रहे बीबी मियाँ होकर

न थी मुतलक़ तव्क़्क़ो बिल बनाकर पेश कर दोगे
मेरी जाँ लुट गया मैं तो तुम्हारा मेहमाँ होकर

हक़ीक़त में मैं एक बुलबुल हूँ मगर चारे की ख़्वाहिश में
बना हूँ मिमबर-ए-कोंसिल यहाँ मिट्ठू मियाँ होकर

निकाला करती है घर से ये कहकर तू तो मजनूं है
सता रक्खा है मुझको सास ने लैला की माँ होकर

उससे तो इस सदी में

उससे तो इस सदी में नहीं हम को कुछ ग़रज़
सुक़रात बोले क्या और अरस्तू ने क्या कहा

बहरे ख़ुदा ज़नाब यह दें हम को इत्तेला
साहब का क्या जवाब था, बाबू ने क्या कहा


एक बूढ़ा नहीफ़-ओ-खस्ता दराज़

एक बूढ़ा नहीफ़-ओ-खस्ता दराज़
इक ज़रूरत से जाता था बाज़ार
ज़ोफ-ए-पीरी से खम हुई थी कमर
राह बेचारा चलता था रुक कर
चन्द लड़कों को उस पे आई हँसी
क़द पे फबती कमान की सूझी
कहा इक लड़के ने ये उससे कि बोल
तूने कितने में ली कमान ये मोल
पीर मर्द-ए-लतीफ़-ओ-दानिश मन्द
हँस के कहने लगा कि ए फ़रज़न्द
पहुँचोगे मेरी उम्र को जिस आन
मुफ़्त में मिल जाएगी तुम्हें ये कमान

August 10, 2010

इन्तिसाब

आज के नाम
और
आज के ग़म के नाम
आज का ग़म के: है ज़िन्दगी के भरे गुलसिताँ से ख़फ़ा
ज़र्द पत्तों का बन
ज़र्द पत्तों का बन जो मेरा देस है
दर्द की अंजुमन जो मेरा देस है
किलर्कों की अफ़सुर्दा जानों के नाम
किर्मख़ुर्दा दिलों और ज़बानों के नाम
पोस्टमैनों के नाम
ताँगेवालों के नाम
रेलवानों के नाम
कारख़ानों के भोले जियालों के नाम
बादशाहे-जहाँ, वालिए-मासिवा, नायबुल्लाहे-फ़िल-अर्ज़,
दहक़ाँ के नाम
जिसके ढोरों को ज़ालिम हँका ले गए
जिसकी बेटी को डाकू उठा ले गए
हाथ-भर खेत से एक अंगुश्त पटवार ने काट ली है---फैज अहमद फैज
इक यही सोज़े-ए-निहाँ कुल मिरा सरमाया है !
दोस्तो ! मैं किसे यह सोज़-ए-निहाँ नज़्र करूँ ? !
...किसको दिल नज़्र करूँ और किसे जाँ नज़्र करूँ !
...अपनी लाश आप उठाना कोई आसान नहीं !
दस्तो-बाज़ू मेरे नाकारा हुए जाते हैं !
जिनसे हर दौर में चमकी है तुम्हारी देहलीज़,
आज सिज्दे वही आवारा हुए जाते हैं !
राह में टूट गये पाँव तो मालूम हुआ
जुज़ मिटे और मेरा रहनुमा कोई नहीं !
एक के बाद ख़ुदा एक चला आता था :
कह दिया अक़्ल ने तंग आके-ख़ुदा कोई नहीं !
जब भी चूम लेता हूँ उन हसीन आँखों को,
सौ चिराग़ अँधेरे में झिलमिलाने लगते हैं !

लमहे भर को यह दुनिया ज़ुल्म छोड़ देती है !
लम्हे भर को सब पत्थर मुस्कराने लगते हैं !

जिन्दगी चलती रही काँटों पर अंगारों पर !
तब मिली इतनी हसीं इतनी सुबुक चाल तुझे !

दिल में फिर दर्द उठा

दिल में फिर दर्द उठा
फिर कोई भूली हुई याद
छेड़ती आई पुरानी बात
दिल को डंसने लगी गुज़री हुई जालीम रात
दिल में फिर दर्द उठा
फिर कोई भूली हुई याद बन के नश्तर
रंगे अहसास में उतरी ऐसे
मौत ने ले के मेरा नाम पुकारा जैसे--- मीना कुमारी

April 26, 2010

तीन रविवार की दास्तान

11 अप्रैल - पहला रविवार
एक ट्विट ने लगाई आग
18 अप्रैल - दूसरा रविवार
एक केंद्रीय मंत्री की चढ़ गई बलि
25 अप्रैल - तीसरा रविवार
आईपीएल कमिश्नर किए गए निलंबित
आईपीएल का जो महासंग्राम
पिछले तीन साल में नहीं हुआ
बस तीन रविवार के भीतर ही निपट गया
क्रिकेट की इससे बड़ी स्क्रिप्ट कभी नहीं लिखी गई
क्रिकेट में इतना बड़ा भूचाल कभी नहीं आया
रातों रात बदल गई सत्ता
मोदी पल में तोला तो पल में नजर आए माशा
डीवाई पाटिल स्टेडियम के भीतर आईपीएल के शंहशाह
तो स्टेडियम से बाहर निकलते ही बीसीसीआई के गुनहगार

January 20, 2010

आखिर क्यों

बढ़ती आत्महत्या की घटनाएं... ये एकदम से युवाओं को कैसा नशा छा गया है.... किसी भी समस्या से पीछा छुड़ाने के लिए सबसे आसान रास्ता उन्हें आत्महत्या ही लगता है... वो क्यों भूल जाते हैं कि उस मां पर क्या गुजरेगी जिसने उसे 9 महीने अपनी कोख में पाल के रखा... फिर एक दिन दर्द सहते हुए उसे इस दुनिया से रूबरू कराती है... उस पिता का क्या होगा जो अपनी हर खुशी को अपने बच्चे पर न्यौछावर कर देता है... उस भाई का क्या होगा उस बहन काय क्या होगा जो हर राखी पर उसका इंतजार करती है.... क्या बढ़ती आत्महत्या आजकल फैशन में शामिल हो गई है.. य़ा फिर ये भी मीडिया का एक विकृत रूप है... जिस तरह से इस वक्त मीडिया में आत्महत्या की खबरे बड़े ही धड़ल्ले से दिखाई जा रही हैं... जिस तरह से हर अखबार के पेज तीन पर आत्महत्याओं की खबर परोसी जा रही हैं... क्या इससे बाल मन या फिर यूं कहें कि युवाओं को ऐसी नई तरकीब मिल गई है... जिससे वो पलायनवादी हो गए हैं..... एक रिपोर्ट के मुताबिक ये तो मीडिया का हू कूसूर है.... अहमदाबाद हो या फिर ब्रिटेन के suicide के बारे में अब सुनने को नहीं मिलता... अब तो लोग घर में ही फांसी लगा लेते हैं... आत्महत्या अब ग्लैमरस न होकर लगता है मजबूरी बनती जा रही है... लेकिन सूसाईट प्वाइंट के ग्लैमर से बाहर निकले नई पीढ़ी की इन हरकतों को भी हम लोग काफी ग्लैमर लुक दे कर इसको बढ़ावा तो नहीं दे रहे..... एक बड़ा सवाल खड़ा होता है...... इसके पीछे क्या कारण है... क्या है... क्यों है... किस लिए हो रहा है.... क्या आधी से ज्यादा आबादी इतना डिप्रेशन में हैं कि वो पलायनवादी हो गई है..... आधी आबादी को बचाओ... ये भविष्य हैं... राष्ट्र निर्माण में सहयोग देने वाले हाथ अपने ही गले क्यों दबा रहे हैं.... पता करो और इसका हल ढूंढने में मदद करो

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