दूसरे चरण के मतदान का प्रचार खत्म हो चुका है। पहले चरण में कई ऐसे उम्मीदवार थे जिनका आपराधिक इतिहास है। दूसरे चरण में भी फिर ऐसे ही कई नाम सामने हैं जो कि जरायम की दुनिया से वास्ता रखते हैं। वोटिंग का दूसरा दरवाजा 23 अप्रैल को खुल जाएगा, लेकिन सावधान इस दरवाजे से काली दुनिया के सफेदपोश लोग भी दाखिल होने की फिराक में हैं। काले चेहरे के पीछे सफेद खादी का चोला ओढ़े वो जनता की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वाच के मुताबिक दूसरे चरण में चुनाव लड़ रहे 1633 उम्मीवारों में से 288 यानि करीब 17.63 फीसदी प्रत्याशी क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले हैं।
धनंजय सिंह- जौनपुर, बीएसपी, 22 केस, 21 में बरी, 1 केस जारी, हत्या, हत्या की कोशिश, लूट
अतीक अहमद- फूलपुर, अपना दल, 41 केस, हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, एक्सटॉर्शन
विजय कुमार शुक्ला, वैशाली, बिहार, जेडीयू, 25 केस, हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग,आर्म्स एक्ट
मित्र सेन, फैजाबाद, एसपी, 20, हत्या, हत्या की कोशिश, डकैती
समरेश सिंह, धनबाद, बीएसपी, 15 केस, हत्या की कोशिश, सामूहिक हत्या की कोशिश (culpable homicide )
अक्षय प्रताप सिंह- प्रतापगढ़, एसपी, 5 केस, हत्या की कोशिश, एक्टॉर्शन
गिरीश पासी- कौशांबी,यूपी, बीएसपी, 9 केस, हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग
जुर्म की दुनिया जब जिक्र आता है तो इनका नाम जरूर लिया जाता है। सत्ता की हनक इनके सिर चढ़कर बोलती है। सिर पर राजस्थानी पगड़ी और आंखों में सत्ता की चमक। ये रौबदार शख्सियत पहचान की मोहताज नहीं। क्योंकि जनता इसे अच्छी तरह पहचानती है क्राइम के बायोडाटा में इनके खिलाफ गंभीर से गंभीर मुकदमों का दाग है। इनके खिलाफ कई मुकदमें दर्ज थे लेकिन ज्यादातर केस में या तो गवाह पलट गया या फिर सबूत नहीं मिला..इन मुकदमों में हत्या, हत्या को कोशिश, हत्या की साजिश, लूट, आर्म्स एक्ट, गुंडा टैक्स वसूली शामिल है।
धनंजय सिंह--
रेलवे में ठेकेदारी, लखनऊ नगर निगम की ठेकेदारी, विकास प्राधिकरण,लखनऊ की ठेकेदारी और कई जिलों में पीडब्लूडी की ठेकेदारी में हस्तक्षेप का आरोप धनंजय पर कई बार लग चुका है। इनका दावा है अगर जीत गए तो सिर्फ विकास होगा।
वहीं धनंजय सिंह का कहना है जौनपुर के नौजवानों को रोजगार और जनपद का चौतरफा विकास होगा। इसके पहले के चुनाव में सरकारी गुंडई के चलते उत्पीडन का शिकार होना पड़ा था लेकिन इस बार ठीक है और पूरे प्रदेश की अस्सी सीटों में एक या दो को छोड़कर सभी सीटें बीएसपी जीतेगी।
रिजवान जहीर--
अहिंसा के उपदेशक भगवान बुद्ध की धरती से बीएसपी के उम्मीदवार। लेकिन इलाके की जनता इनके नाम से ही खौफ खाती है। इनके पहुंचने से पहले ही पहुंच जाती है इनके नाम की दहशत। यूपी के बलरामपुर इलाके की तुलसीपुर विधानसभा से रिजवान दो बार विधायक और बलरामपुर सीट से एक बार सांसद रह चुके हैं। बीएसपी के ही टिकट पर रिजवान पिछला चुनाव एसपी के एक और माफिया प्रत्याशी बृजभूषण शरण सिंह से हार चुके हैं। इस बार श्रावस्ती से उतरे हैं चुनाव मैदान में। लोकतंत्र में तो हर किसी को चुनाव लड़ने की इजाजत है। पुलिस रिकार्ड में रिजवान पर 23 आपराधिक मुक़दमें दर्ज थे। इनमें हत्या, हत्या की कोशिश, बलवा, अपहरण, लूट जैसे कई संगीन मामले शामिल हैं। लेकिन कहा जाता है कि अपने रसूख और सत्ता के सहयोग से रिजवान ने लगभग सारे मुक़दमे ख़त्म करा दिए। बलरामपुर के हरैया थाने में आज भी रिजवान की हिस्ट्रीशीट मौजूद है। रिजवान डंके की चोट पर कहते हैं कि हां मैं बाहुबली हूं।
रिजवान जहीर कहना है कि एक मुकदमा हमारे ऊपर है वो भी हमे याद नहीं है कब दर्ज हुआ है आरोप सिद्ध होगा तो राजनीति छोड़ दूंगा। मैं ताकतवर हूं दबंग हूं, बाहुबली हूं, मेरे ऊपर पुराने मुकदमे दस साल पहले दर्ज हुए थे वो खत्म हो गए।
पर्चा दाखिले के दौरान दिए गए हलफनामें में रिजवान जहीर ने सिर्फ एक मुकदमा दिखाया है। मजे की बात ये है कि रिजवान को ये भी याद नहीं कि ये मुकदमा दर्ज कब हुआ था।
विजय चौगले--
इलाके में इनका काफी दबदबा है। विजय चौगले के खिलाफ सात मामले दर्ज हैं। जिसमें मारपीट, धमकाना, भीड़ इकट्ठा करने जैसे मुकदमें शामिल हैं। सात साल पहले विजय पर हत्या का मुकदमा दर्ज था लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत से क्लीन चिट मिल गई। विजय चौगले के परिवार और अपराध का नाता पुराना है। विजय के दोनों भाईयों की हत्या कर दी गई थी। दोनों के ही क्रिमिनल रिकॉर्ड थे। लेकिन विजय चौगले अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को मामूली बता रहे हैं।
विजय चौगुले कहना है, हमारे उपर जो मामले है वह सभी राजनैतिक मामले है। इसमें कोई ऐसे मामले नही जिसमें मुझे जेल हुई हो। जो भी मामले है मारामारी के है। जमाव बंदी है। और धमकी के है। जो मेरे पर अपराधिक मामले होने की बात कर रहे है उनका ब्रेन म्पैपींग करवाया, मेरा भी ब्रेन मैपींग हो तो पता चल जाएगा।
जनता भी कश्मकश में है। उन्हें अच्छे नेता चाहिए लेकिन उनके पास विकल्प बहुत कम हैं। चढ़ गुंडन की छाती पर मुहर लगाओ हाथी पर, का नारा देने वाली बसपा की भी फेहरिश्त छोटी नहीं है। उम्मीदवारों की दास्तान बयां करने के लिए इनका इतिहास ही काफी है। हर पार्टी कहती है कि राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ नहीं होनी चाहिए। लेकिन खुद ही क्रिमिनल को टिकट दे देती है।
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