साल 2010 का अंत क्रिकेट के लिए गौरवांवित करने वाला रहा। खासतौर से भारतीय क्रिकेट के लिए। इस साल जहां भारतीय क्रिकेट टीम टेस्ट क्रिकेट के शीर्ष पायदान पर पहुंची वहीं इस साल कई रिकॉर्ड बने और टूटे। न्यूजीलैंड को घर में धोने के बाद जब धोनी के धुरंधर दक्षिण अफ्रीकी मैदान पर आगाज करने के लिए उड़ान भर रहे थे तो उन्हे इस बात का इल्म था ही कि उनका सामना तेज और बाउंसी पिचों से होने जा रहा है। भारतीय क्रिकेट के लिए कभी भी दक्षिण अफ्रीकी दौरा फूलों को सेज नहीं रहा है। चलिए ज्यादा बातें हो रही हैं। मैं मुद्दे पर आता हूं। बात हो रही है भारतीय टीम के दक्षिण अफ्रीकी दौरे की जो कि 16 दिसंबर 2010 से शुरू हो रहा है। तारीख इस लिए लिख रहा हूं कि आने वाली पीढ़ी को याद रहे कि ये समय था जब भारत अपने चरम पर था। दूसरे टेस्ट में 87 रनों की जीत से टीम इंडिया ने सीरीज में 1-1 की बराबरी कर ली है। इस टेस्ट में यूं तो कई हीरो रहे। जहां जहीर और श्रीसंत ने अपनी तेज गेंदबाजी की धार और महीन की वहीं हरभजन ने अपनी फिरकी का जाल ऐसा फैलाया कि स्मिथ की नंबर दो टीम औंधे मुंह गिर पड़ी। मैच में तो एक बार अफ्रीकी कप्तान अपना आपा तक खो बैठे और श्रीसंत को बाठ पढ़ाने लगे। शायद वो ये भूल गए थे कि इस टीम को पाठ पढ़ाने का दम सिर्फ सचिन तेंदुलकर में ही है। जो कि इस वक्त खुद श्रीसंत के ही साथ हैं। टेस्ट में शतकों के अर्धशतक लगा चुके सचिन आज भी उतने ही सौम्य बन हुए हैं जैसे हम उन्हें अपने बचपन से देखते आ रहे हैं(कई लोग इससे अपनी जवानी के दिन भी याद रहे होंगे)। सीरीज में 1-0 से पीछे चल रही टीम इंडिया ने इस जीत के साथ जता दिया कि नंबर वन का खिताब उसे तुक्के से नहीं मिला है। सेंचुरियन में हार के बाद ये जीत हिंदुस्तान के लिए इसलिए भी बहुत मायने रखती क्योंकि यहां न तो विकेट उसके मुताबिक थी और न ही मौसम। क्या आपको जो जीता वोही सिकंदर का वो गाना याद आता है.... वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है...हारी बाजी को जीतना हमें आता है...ये सच है। हारी बाजी को जीत में बदलने वाले को सिकंदर कहते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम ने इससे पहले भी बड़े कई किले फतह किए हैं...और यकीनन इसके बाद भी कामयाबी के झंडे गाड़ेगी...लेकिन किंग्समीड डरबन में 87 रनों की जीत इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज रहेगी...कप्तान महेंद्र सिंह धोनी जब 26 दिसंबर 2010 को टॉस के लिए उतरे थे तो, हालात पूरी तरह से टीम इंडिया के खिलाफ थे.....दुनिया की नंबर एक टीम को अब तक दक्षिण अफ्रीकी जमीन पर सीरीज जीतने में कामयाबी नहीं मिली...सेंचुरियन में बड़ी हार के बाद सपने तार-तार होते दिख रहे थे...दक्षिण अफ्रीका ने टीम इंडिया के स्वागत के लिए डरबन के तेज विकेट पर हरी घास की पट्टी बिछा दी...गेंदबाजों की फौज के अगुवा जहीर खान की फिटनेस को लेकर सवाल थे...मुसीबत पर मुसीबत ये कि, ऐसे हालात में धोनी टॉस हार गए और टीम इंडिया को पहले बल्लेबाजी करनी पड़ी...लेकिन अगले 96 घंटे में जो हुआ, उसे क्रिकेट प्रेमी कभी नहीं भूलेंगे..
दक्षिण अफ्रीका से ये जीत छीनना आसान नहीं था...पहले बल्लेबाजी करते हुए टीम इंडिया सिर्फ 205 रन पर आउट हो गई....जवाब में जहीर की अगुवाई में गेंदबाजों की फौज ने पलटवार किया और स्मिथ एंड कंपनी को 131 रनों पर निपटा दिया...मैच का नतीजा अब दूसरी पारी को तय करना था....लेकिन वीरेंद्र सहवाग, मुरली विजय, राहुल द्रविड़ और सचिन तेंदुलकर सस्ते में निपट गए....दारोमदार पूरी तरह से लक्ष्मण के कंधों पर था और हैदराबाद के इस बल्लेबाज ने पांच घंटे तक अफ्रीकी खिलाड़ियों की आग उगलती गेंदों को ठंडा कर दिया...
लक्ष्मण की पारी देखकर क्रिकेट के जानकारों ने यहां तक कह दिया कि टीम इंडिया ने नहीं बल्कि अकेले लक्ष्मण ने अफ्रीका के सामने जीत के लिए 303 रनों का लक्ष्य रखा....टीम इंडिया के गेंदबाजों ने दूसरी पारी में भी निराश नहीं किया...श्रीशांत की गेंदों के आगे अफ्रीकी बल्लेबाज अपना धैर्य खो बैठे...पीटरसन को हरभजन ने आउट किया तो खतरनाक हाशिम अमला श्रीशांत के दूसरे शिकार बने...
मैच के चौथे दिन भारत जीत से सात विकेट दूर थी....दक्षिण अफ्रीका को मंजिल तक पहुंचने के लिए 192 रन चाहिए थे....और कैलिस भारत की जीत में दीवार बने हुए थे.....यहां कोच्चि एक्सप्रेस श्रीशांत ने उन्हें आउट कर विरोधी ड्रेसिंग रूम में खलबली मचा दी...हरभजन सिंह की एक गेंद को एबी डीविलियर्स पढ़ नहीं सके और एलबीडब्ल्यू आउट हो गए...आधी विरोधी टीम वापस पवेलियन लौट चुकी थी और अब आखिरी हल्ला बोलना था...
एशवेल प्रिंस एक छोर पर टिके हुए थे, लेकिन जहीर की एक गेंद पर जैसे ही बाउचर आउट हुए, ड्रेसिंग रूम की खलबली सन्नाटे में बदल गई...हैरिस, मार्केल और त्सोबे भी एक-एक कर आउट हो गए और भारत ने सेंचुरियन की हार का बदला का बदला ले लिया...
December 30, 2010
नो वन किल्ड आरुषि
आरुषि को कत्ल हुआ ये बात तो साफ है... लेकिन आरुषि का कत्ल किसी ने नहीं किया... आप हैरान ना हों... देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई यानि कि सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन का यही कहना है... और तो और इस एजेंसी ने कोर्ट से यहां तक कह डाला कि इस केस को बंद ही कर दिया जाए, इसमें कुछ नहीं मिलने वाला.. सही भी है, ढाई साल बाद क्या मिलने वाला था...
ये सवाल सवाल ही रह जाएगा कि आखिरकार 13 साल की मासूम आरुषि को किसने मारा। उसके नौकर हेमराज का कत्ल किसने किया। सीबीआई की लंबी चौड़ी टीम भी आरुषि को इंसाफ नहीं दिलवा सकी। बुधवार शाम करीब चार बजे सीबीआई के अधिकारी अचानक कोर्ट में देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री की फाइल बंद कराने पहुंचे। सीबीआई के हाथों में सबसे बड़ी नाकामी थी। यही वो कोर्ट को बताने आए थे। कि इस हत्याकांड से जुड़े सबूत उन्हें नहीं मिल पा रहे हैं। लिहाजा इस केस को अब बंद कर दिया जाए। ये बात किसी को गले नहीं उतर रही कि आखिर सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट फाइल करने के लिए बुधवार का दिन क्यों चुना। क्योंकि इन दिनों कोर्ट की छुट्टियां चल रही हैं और सीबीआई का स्पेशल कोर्ट बंद चल रहा है। लगता है कि सीबीआई कम से कम येही साबित करना चाहती थी कि वो छुट्टी के दिन भी काम करती है। शायद अपनी नाकामी को छिपाने का इससे बेहतर उपाय सीबीआई को नहीं मिला। सीबीआई की इस नाकामी ने सभी को सकते में डाल दिया हैं। हम बता दे कि आरुषि हेमराज मर्ड़र के से की सुनवाई गाजियाबाद की सीबीआई अदालत में चल रही है।
तमाम उन्नत प्रोसीजर्स जिसमें नार्को टेस्ट जिससे निठारी हत्याकांड का पर्दाफाश कर जांच एजेंसियों ने डंका पीटा था, वो भी असफल हुआ। दरअसल इस जांच में हम मीडिया वाले भी पानी मांगते रहे। जो हर बार ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर में इस केस खिलवाड़ ही करते रहे। आरुषि की हत्या के पहले आरोपी बने उसके पिता डॉक्टर राजेश तलवार अब आरुषि के लिए इंसाफ मांग रहे हैं।
आरुषि और उसके नौकर हेमराज की हत्या नोएडा के जलवायु विहार के उनके गर एल-32 में 15-16 मई 2008 की रात हत्या कर दी गई थी। अगले दिन यानी 16 मई की सुबह आरूषि की लाश उसके बेडरूम में मिली थी जबकि 17 मई को घर के नौकर हेमराज की लाश छत पर बरामद हुई थी। नोएडा पुलिस ने इस मामले में आरूषि के पिता राजेश तलवार को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। बाद में सीबीआई को केस ट्रांसफर होने पर सीबीआई ने तीन नौकरों राजकुमार, विजय मंडल, कृष्णा को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लेकिन सीबीआई कुछ साबित नहीं कर पाई. लिहाजा दोनों को जमानत मिल गई।
सीबीआई ने हर कोशिश कर ली। लेकिन वो हत्या में इस्तेमाल हथियार तक नहीं बरामद कर पाई। खास बात ये है कि सबूत ढूंढने में जुटी सीबीआई ने तीनों नौकरों के साथ साथ आरूषि के पिता राजेश तलवार और मां नुपुर तलवार की हर साइंटिफिक जांच कराई लेकिन फिर भी वो नाकाम हुई। सीबीआई की नाकामी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन इन सवालों के बीच आरुषि को इंसाफ मिलना रह गया।
खास बात ये है कि हमारे देश की जांच एजेंसिया हमेशा से हाई प्रोफाइल केसों में फेल ही होती आ रही हैं। क्या आपको जेसिका लाल हत्यकांड याद है। उस दिन दिल्ली की रातें कुछ अधिक गर्म थीं। साल 1999, अप्रैल की 29 तारीख। दिल्ली की मशहूर सोशलाइट बीना रमानी ने अपने नए रेस्टोरेंट में एक नाइट पार्टी का आयोजन किया था। जिसमें कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने शिरकत की थी। रात के करीब 11.15 बजे मनु शर्मा अपने दोस्तों के साथ इस रेस्टारेंट में पहुंचा। इस पार्टी में जेसिका लाल बार टेंडर के रोल में थी। मनु ने जेसिका से और अधिक शराब मांगी तो जेसिका ने यह कह कर शराब देने से मना कर दिया था कि शराब खत्म हो चुकी है। इसके बाद क्या था, मनु ने एक के बाद एक दो गाली दाग दीं। मीडिया और महिला संगठनों के दबाव के बाद इस केस का ट्रायल शुरु हुआ। लेकिन इसमें पूरे सात साल लग गए। इसके बाद बीस दिसंबर 2006 को मनु शर्मा को इस केस में उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
तो क्या एक बार फिर मीडिया और गैर सरकारी संगठनों को एखजुट होना पड़ेगा। क्या एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में कोई जनहित याचिका दायर होगी। जसमें सुप्रीम कोर्ट ये बात पूछेगा कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा। ठीक उसी तरह जिस तरह ये तवाल उठा था 'व्हू किल्ड जेसिका'। ये सवाल फिर उठेगा 'व्हू किल्ड आरुषि देन'। ये देखने वाली बात होगी। तब तब ये मान कर चलिए, इस कत्ल का कोई कातिल नहीं है।
ये सवाल सवाल ही रह जाएगा कि आखिरकार 13 साल की मासूम आरुषि को किसने मारा। उसके नौकर हेमराज का कत्ल किसने किया। सीबीआई की लंबी चौड़ी टीम भी आरुषि को इंसाफ नहीं दिलवा सकी। बुधवार शाम करीब चार बजे सीबीआई के अधिकारी अचानक कोर्ट में देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री की फाइल बंद कराने पहुंचे। सीबीआई के हाथों में सबसे बड़ी नाकामी थी। यही वो कोर्ट को बताने आए थे। कि इस हत्याकांड से जुड़े सबूत उन्हें नहीं मिल पा रहे हैं। लिहाजा इस केस को अब बंद कर दिया जाए। ये बात किसी को गले नहीं उतर रही कि आखिर सीबीआई ने क्लोजर रिपोर्ट फाइल करने के लिए बुधवार का दिन क्यों चुना। क्योंकि इन दिनों कोर्ट की छुट्टियां चल रही हैं और सीबीआई का स्पेशल कोर्ट बंद चल रहा है। लगता है कि सीबीआई कम से कम येही साबित करना चाहती थी कि वो छुट्टी के दिन भी काम करती है। शायद अपनी नाकामी को छिपाने का इससे बेहतर उपाय सीबीआई को नहीं मिला। सीबीआई की इस नाकामी ने सभी को सकते में डाल दिया हैं। हम बता दे कि आरुषि हेमराज मर्ड़र के से की सुनवाई गाजियाबाद की सीबीआई अदालत में चल रही है।
तमाम उन्नत प्रोसीजर्स जिसमें नार्को टेस्ट जिससे निठारी हत्याकांड का पर्दाफाश कर जांच एजेंसियों ने डंका पीटा था, वो भी असफल हुआ। दरअसल इस जांच में हम मीडिया वाले भी पानी मांगते रहे। जो हर बार ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर में इस केस खिलवाड़ ही करते रहे। आरुषि की हत्या के पहले आरोपी बने उसके पिता डॉक्टर राजेश तलवार अब आरुषि के लिए इंसाफ मांग रहे हैं।
आरुषि और उसके नौकर हेमराज की हत्या नोएडा के जलवायु विहार के उनके गर एल-32 में 15-16 मई 2008 की रात हत्या कर दी गई थी। अगले दिन यानी 16 मई की सुबह आरूषि की लाश उसके बेडरूम में मिली थी जबकि 17 मई को घर के नौकर हेमराज की लाश छत पर बरामद हुई थी। नोएडा पुलिस ने इस मामले में आरूषि के पिता राजेश तलवार को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। बाद में सीबीआई को केस ट्रांसफर होने पर सीबीआई ने तीन नौकरों राजकुमार, विजय मंडल, कृष्णा को आरोपी बनाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लेकिन सीबीआई कुछ साबित नहीं कर पाई. लिहाजा दोनों को जमानत मिल गई।
सीबीआई ने हर कोशिश कर ली। लेकिन वो हत्या में इस्तेमाल हथियार तक नहीं बरामद कर पाई। खास बात ये है कि सबूत ढूंढने में जुटी सीबीआई ने तीनों नौकरों के साथ साथ आरूषि के पिता राजेश तलवार और मां नुपुर तलवार की हर साइंटिफिक जांच कराई लेकिन फिर भी वो नाकाम हुई। सीबीआई की नाकामी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन इन सवालों के बीच आरुषि को इंसाफ मिलना रह गया।
खास बात ये है कि हमारे देश की जांच एजेंसिया हमेशा से हाई प्रोफाइल केसों में फेल ही होती आ रही हैं। क्या आपको जेसिका लाल हत्यकांड याद है। उस दिन दिल्ली की रातें कुछ अधिक गर्म थीं। साल 1999, अप्रैल की 29 तारीख। दिल्ली की मशहूर सोशलाइट बीना रमानी ने अपने नए रेस्टोरेंट में एक नाइट पार्टी का आयोजन किया था। जिसमें कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने शिरकत की थी। रात के करीब 11.15 बजे मनु शर्मा अपने दोस्तों के साथ इस रेस्टारेंट में पहुंचा। इस पार्टी में जेसिका लाल बार टेंडर के रोल में थी। मनु ने जेसिका से और अधिक शराब मांगी तो जेसिका ने यह कह कर शराब देने से मना कर दिया था कि शराब खत्म हो चुकी है। इसके बाद क्या था, मनु ने एक के बाद एक दो गाली दाग दीं। मीडिया और महिला संगठनों के दबाव के बाद इस केस का ट्रायल शुरु हुआ। लेकिन इसमें पूरे सात साल लग गए। इसके बाद बीस दिसंबर 2006 को मनु शर्मा को इस केस में उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
तो क्या एक बार फिर मीडिया और गैर सरकारी संगठनों को एखजुट होना पड़ेगा। क्या एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में कोई जनहित याचिका दायर होगी। जसमें सुप्रीम कोर्ट ये बात पूछेगा कि आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा। ठीक उसी तरह जिस तरह ये तवाल उठा था 'व्हू किल्ड जेसिका'। ये सवाल फिर उठेगा 'व्हू किल्ड आरुषि देन'। ये देखने वाली बात होगी। तब तब ये मान कर चलिए, इस कत्ल का कोई कातिल नहीं है।
December 03, 2010
अंबेडकर के नाम पर पार्क-नीति
नोएडा के आंबेडकर पार्क मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। पार्क में किसी भी तरह के निर्माण पर कोर्ट ने फिलहाल रोक लगा रखी है। 685 करोड़ की लागत से बन रहा ये पार्क मायावती के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में शुमार है ... इस पार्क का लगभग 75 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। स्थानीय लोगों ने पर्यावरण का हवाला देते हुए इस पार्क के निर्माण के खिलाफ याचिका दायर की थी। यूपी का चर्चित नोएडा पार्क, मुख्यमंत्री मायावती का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट, जिस पर फूंक दिए गए जनता के 685 करोड़ रुपए जिसे बनाने के लिए काट डाले गए 6 हजार पेड़, जो है बर्ड सैंक्चुअरी यानि पक्षी अभ्यारण्य के बेहद करीब। लेकिन यूपी सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य पर सुप्रीम कोर्ट ने करीबन साल भर पहले रोक लगा दी। रोक लगाने की अहम वजहें थीं
- पार्क में जरूरत से ज्यादा पक्का निर्माण
- हजारों पेड़ों को काटना
- पक्षी अभ्यारण्य से सटा हुआ होना
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से इस पार्क को बनवाने के लिए ज़रूरी इजाज़त ना लेना
यूपी सरकार के नोएडा से पहले लखनऊ के अंबेडकर पार्क के निर्माण पर भी सुप्रीम कोर्ट रोक लगा चुकी है। अदालत को ये बात रास नहीं आई कि आम आदमी के पैसों से यूपी सरकार इन पार्कों में मायावती और बीएसपी संस्थापक कांशीराम की मूर्तियां लगा कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरा करने में जुटी है। अदालत की फटकार ने सरकार के इस मंसूबे पर साल भर तक लगाम लगाए रखी ... हालांकि 23 अक्टूबर 2009 को केंद्र के पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इस पार्क को हरी झंडी दे दी थी ... पर्यावरण मंत्रालय के उस वक्त दिए गए हलफनामे के मुताबिक
- नोएडा पार्क बनाने के लिए यूपी सरकार को केंद्र से किसी भी तरह की इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं
- क्योंकि नोएडा पार्क का क्षेत्रफल 50 हेक्टेयर से कम है
- लेकिन नोएडा पार्क के ओखला पक्षी विहार के नजदीक होने पर हलफनामे में खामोशी थी
नोएडा पार्क प्रोजेक्ट मामले में हर किसी की नजर अदालत पर टिकी होगी, सवाल ये है कि क्या यूपी सरकार के इस बड़े प्रोजेक्ट पर अदालत का डंडा चलेगा या फिर हाल के दिनों में यूपी सरकार के रुख में आई नरमी का उसे फायदा होगा।
अदालत में यूपी सरकार ने पहले ये दलील दी थी कि पार्क से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं हुआ है और ना ही होगा। लेकिन बाद में यूपी सरकार के रुख में नरमी आई। उसने कहा कि वो
- नोएडा पार्क में कंक्रीट के हिस्से को कम करेगी
- और इस बात का ख्याल रखेगी कि इलाके में पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान ना हो
तो क्या अदालत से यूपी सरकार को उसके इस रुख का फायदा मिलेगा ... या फिर सुप्रीम कोर्ट सियासत चमकाने के लिए लोगों के पैसे की फिजूलखर्ची पर लगाम लगाने वाला फैसला सुनाएगा
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