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Working with an MNC called Network 18, some call it news channel(IBN7), but i call it दफ्तर, journalist by heart and soul, and i question everything..

December 30, 2012

लड़की हूं, गुस्ताखी माफ़



सुधाकर द्विवेदी जी की बिटिया द्वारा रचित एक कविता, एक बार जरूर पढ़े। शर्त है बिना रोए आप रह ना पाएंगे।


आज कुछ गंदा हुआ,कुछ गंदा था
आज किसी ने देखा
कल कोई और छुएगा।
कब तक सहूं मैं? कब तक ये चलेगा?
आज क्रोधित हूं, निराश हूं
सूरज की बाहों में जिस कलि को खिलना था
इसके बेरहम से कुचले जाने पर
मैं हताश हूं
आज कोई है, कल कोई औऱ होगा
अपने बच जाने की खुशी
या उसकी पीड़ा का ग़म बेशुमार होगा
किसी की गुड़िया, किसी की चांद सी बेटी
ऐसा क्या गुनाह हुआ हमसे
बदसलूकी, छेड़छाड़ और बलात्कार में हमारी
दुनिया समेटी...
नहीं कह सकती उसकी पीड़ा का अनुमान है
नहीं है उस दर्द का एहसास
साथ बस एक डर एक ख़ौफ है...
क्या मैं सुरक्षित हूं?
रास्तो पर चलना अब मंजिल पाने से मुश्कल हो गया
पा जाउंगी इंसाफ मैं, यह ख्वाब तो ख्वाब रह गया
दो आंसू, खेद, शोक और बस
चीखों का तूफान, दर्द का सैलाब उठा था
इज्ज़त पर आंच आई जब
मरना जीने से आसान हुआ था।
गहरी चोट है नहीं भरेगी
मुश्किल है इंतजार की घड़ियां
ना मालूम इंसाफ की रौशनी कब दिखेगी?
आज आंखों में खौफ तो देखती हूं
कब आत्मविश्वास, साहस औऱ निडरता की चमक
दिखेगी?
खौफ़ का अंधेरा है, विश्वास की लौ जलेगी
मंजिल को पाने चलूंगी बेखौफ
ऐसा होगा एक दिन, यह सोचती हूं
लड़की हूं, गुस्ताखी माफ़

--------------- मिहिका द्विवेदी(हमारे प्रिय सुधाकर द्विवेदी जी की बिटिया)
कक्षा 10
समरविले स्कूल नोएडा

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