स्कूल के दिनों में मैंने एक कविता बढ़ी थी "एक था बचपन"। हां वो बचपन कितना सुंदर था। बचपन के दिनों में ऊंच नीच, जात पात का कई भेद नहीं था हमारे अंदर। हम स्कूलों में सिर्फ दोस्त हुआ करते थे। इसी बचपन की मिसाल इस लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिली। राजनीति के बच्चों ने डंका बजाया। इस चुनाव में बच्चों ने दिखा दिया कि इब समय बच्चों का है। इसके पुरोधा बनकर उभरे राहुल गांधी। जी हां, ये वही राहुल गांधी जिन्हें अपने बचपन में ही अपने पिता के साए से दूर हो जाना पड़ा। ये वहीं राहुल हैं, जिनके बारे में पूरा विपक्ष कहता था कि ये बच्चा है। ये वही राहुल हैं जिनके बारे में सहयोगी दल कहते थे कि राहुल में अभी परिपक्वता नहीं आई है। वो बेमतलब की बयानबाजी करते हैं। ये वही राहुल हैं जिन्होंने कलावती की आवाज संसद में उठाई। ये वही राहुल हैं जिनके इस भाषण पर पूरा संसद हंस रहा था।
उन हंसने वालों पर इस देश ने तमाचा जड़ दिया है। कांग्रेस को क्लीयर मैंडेट देकर देश ने ये साबित कर दिया कि धर्म, जाति के नाम राजनीति करने वालों का समय अब लद चुका है। अब लोगों को विकास चाहिए। लोगों को चाहिए एक ऐसा नेतृत्व जिसमें वे दिल खोल के अपने नेता से मिल सकें। जिसमें वे अपने दिल की बात अपने नेता से कह सकें। उन्हें अब वो नेता नहीं चाहिए जो सिर्फ रैलियों में, जनसभा में नजर आता है। भारत ने उन नेताओं को किनारे किया जो उनकी आवाज नहीं सुनते।
जीत का श्रेय भी पार्टी को देते हुए राहुल कहते हैं, "ये जीत न तो मेरी है और न किसी एक व्यक्ति की। यह जनादेश देश की ग़रीब जनता और युवाओं का है। ये शुरुआत है। अभी आगे काम करना है। मीडिया परिणाम देखती है हमें ये ज़िम्मेदारी मिली है आगे काम करने के लिए। मैं एक बात साफ करना चाहूंगा कि कोई भी काम जीवन में होता है तो उसके लिए एक आदमी ही ज़िम्मेदार नहीं होता है। पूरी टीम होती है जो मिलकर काम करती है तभी सफलता मिलती है।
ये वही राहुल हैं जो अपने विरोधियों की बढ़ाई करने से नहीं थकते। बिना मुद्दों की राजनीति से उकता चुके देश को एक ऐसी किरण नजर आई है जो उन्हें प्रगति पथ पर अग्रसर करेगी। आडवाणी की भी तारीफ करते हुए राहुल गांधी का कहने था, "उनकी उम्र को देखते हुए जिस तरह से उन्होंने चुनाव प्रचार किया है वो काबिले तारीफ है। मैं यही कहूंगा कि उन्होंने बड़ी मजबूती से चुनाव लड़ा है।"
ये राजनीति का बच्चा अब लगता है कि कि बड़ों को मात देने की तैयारी में है। यूपी में अकेले लड़ने का फैयला शायद यही दर्शाता है। खैर भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है ये तो सिर्फ वक्त ही जानता है, लेकिन एक बात तय है कि इस समय सितारों और ग्रहों की चाल के मुताबिक देश का भविष्य स्वर्णिम ही नजर आता है। फिलहाल देश तो यही कह रहा है---- "जय हो.... विपक्षियों भय हो.... देश अजेय हो, विकास हो, समाज भयमुक्त हो"
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