पत्थर-पत्थर तराशते हाथ
हर शय को मशहूर बनाते हाथ
वो हाथ पूछता हर शय से
कब भरेगी उसकी आंत
कब तक पत्थरों में यूं ही
जान भरते रहेंगे हाथ
कब तक जीते-जागते मेहनतकश इंसान
उनके लिए रहेंगे बेजान
मूर्तियों पर चेहरे हर वक्त दमकते
भले ही राज में बिलखते बच्चे
चेहरे भूख से रहे सूखते
मूर्तियों पर बरसते पैसे
पूछता समय कब करोगे पूरा
हर हरिजन के पेट से किया वायदा
कब होगी रोटी मयस्सर
हर उस हाथ को.....
मयंक प्रताप सिंह
August 03, 2009
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