तुम्हारे जैसे हमने देखने वाले नहीं देखे...
जिगर में किस तरह से रंजोगम पाले नहीं देखे...
यहां पर जात मजहब का हवाला सबने देखा है...
किसी ने भी हमारे पांव के छाले नहीं देखे...
मेरी आंखों में आंसू, तुझसे हमदम मैं क्या कहूं क्या है..
ठहर जाए तो अंगारा है, बह जाए तो दरिया है...
किरण चाहो, तो दुनिया के अंधेरे घेर लेते हैं...
मेरी तरह कोई जी ले, तो जीना भूल जाएगा...
कदम उठ नहीं पाते कि रस्ता काट देता है...
मेरे मालिक मुझे,आखिर कब तक आजमाएगा...
अगर टूटे किसी का दिल, तो शब भर आंख रोती है...
ये दुनिया है गुलों की, जिसमे कांटे पिरोती है...
हम अपने गांव में मिलते हैं दुश्मन से भी इठला कर...
तुम्हारा शहर देखा तो बड़ी तकलीफ होती है...
September 20, 2009
September 17, 2009
नक्सलवाद-एक परिचय
नक्सली या नक्सलवाद या नक्सवाड़ी, ये एक नाम है जो कि उन कम्यूनिस्ट समूहों को दिया गया जो कि चीन-सोवियत यूनियन के बीच हुए संघर्ष से भारत भूमि पर उपजे। वैचारिक रूप से ये माओवादी विचारधारा से ओतप्रोत हैं। शुरुआत में ये सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही केंद्रित था। लेकिन समय बीतते बीतते ये पूर्वी और मध्य भारत के कम विकसित क्षेत्रों के ग्रामीण इलाकों में फैलता चला गया। अगर इसको असंतोष का आंदोलन कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगा। छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(माओवादी) के रूप में काफी सक्रिय हैं। इन इलाकों में ये इनसरजेंसी के काम में लगे हुए हैं, जिसे नक्सली-माओवादी इनसर्जेंसी कहा जाता है। नक्सलियों के कब्जे में अगर देखा जाए तो 10 राज्यों के करीब 180 जिलों में आधिपत्य है। जो कि भारत भूमि का 40 प्रतिशत हिस्सा है। इस हिस्से को सामान्य या यूं कहें आम जनजीवन की भाषा में लाल गलियारा या रेड कॉरिडोर भी कहते हैं, जो कि करीब 92 हजार वर्ग किलोमीटर है। भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ के अनुसार इस समय पूरे देश में करीब 30 हजार नक्सली सक्रिय हैं। नक्सलियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत सरकार ने इन्हें आतंकियों का दर्जा दिया है।
फरवरी 2009 में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में कई जनहित परियोजनाओं को शुरू किया है।
इतिहास
नक्सली शब्द नक्सबाड़ी से आता है। नक्सलबाड़ी पश्चिम बंगाल का एक छोटा सा गांव है। इसी गांव से चारू मजूमदार और कानू सान्याल के नेतृत्व में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने एक उग्र आंदोलन को उकसाया। ये आंदोलन 25 मई 1967 को शुरू हुआ जब कुछ किसानों ने स्थानीय जमींदारों पर जमीन विवाद के चलते हमला बोल दिया। मजूमदार, जो कि चीन के माओ जेदॉन्ग से काफी प्रभावित था, ने किसानों को उकसाना शुरू किया और उनका समर्थन करता रहा। उसने लोगों में ये भावना फैलाई कि उन्हें पूंजीपतियों को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए। मजूमदार के उग्र लेखों की बदौलत ये आंदोलन और भी उग्र होता चला गया। मजूमदार के प्रमुख लेखों में ‘ऐतिहासिक 8 लेख’ है जो कि बाद में चलकर नक्सली आंदोलन के लिए आदर्श साबित हुआ। आज भी नक्सली इसी को अपनी गीता और संविधान मानते हैं।
1967 में नक्सलियों ने कम्यूनिस्ट अखिल भारतीय कुऑर्डिनेशन कमेटी(AICCCR) का गठन किया, जो कि बाद में चल कर सीपीआई(एम) से अलग हो गई। 1969 में AICCCR ने कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्स-लेनिन) को जन्म दिया।
1970 के दशक में ये आंदोलन वैचारिक मतभेद के कारण कई छोटे छोटे भागों में बंट गया। 1980 तक ये माना गया कि देश में करीब 30 नक्सली संगठन सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। इन संगठनों में करीब 30 हजार सदस्य हुआ करते थे। 2004 कि रिपोर्ट के अनुसार संगठनों की संख्या बढ़कर 9,300 तक पहुंच गई। इनमें से अतिवादी और भूमिगत संगठन हैं। इन संगठनों के पास आधुनिक हथियारों के साथ साथ देशी हथियार भी मौजूद हैं। 2006 की रॉ कीरिपोर्ट के अनुसार करीब 20,000 नक्सली इस समय सक्रिय हैं।
बंगाल उग्रवाद
कलकत्ता के कट्टरपंथी तबके के छात्रों के बीच नक्सलवाद के गहरी पैठ बना रखी थी। बड़ी संख्या में छात्रों ने अपनी पढ़ाई छोड़कर इस आंदोलन में कूद पड़े थे। वहीं मजूमदार ने अपनी योजना में थोड़ा परिवर्तन करते हुए इस आंदोलन को गांवों से निकालकर शहरों तक ले गया। इस तरह से मजूमदार के विनाश शब्द सिर्फ जमीनदारों को निशाना नहीं बना रहे थे बल्कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों,पुलिस अफसरों,राजनेताओं आदि को निशाने पर ले रहे थे। पूरे कलकत्ते में स्कूलों में ताला लग गया था। नक्सलियों ने जादवपुर विश्वविद्यालय पर कब्जा जमा लिया था। मशीन शॉप की सुविधाओं का उपयोग नक्सली पाइप गन बनाने में करने लगे थे जो कि पुलिस से सामना करने में मददगार साबित हुई। छात्रों ने प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता को अपना मुख्यालय भी बना लिया था। इन पर जाधवपुर विश्वविद्यालय के कुलपति गोपाल सेन को जान से मारने का आरोप भी उन दिनों लगा था। जल्द ही नक्सलियों को पढ़े लिखे सभ्य समाज की भी सहयोग मिलने लगा। इसमें एक अहम कड़ी जुड़ी जब दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के कई छात्रों इसमें सहयोग देना शुरू किया।
नक्सली हमलें में मौत
भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार नक्सलवाद देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। गृहमंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार
• 1996: 156 मौत
• 1997: 428 मौत
• 1998: 270 मौत
• 1999: 363 मौत
• 2000: 50 मौत
• 2001: 100+ मौत
• 2002: 140 मौत
• 2003: 451 मौत
• 2004: 500+ मौत
• 2005: 892 मौत
• 2006: 749 मौत
• 2007: (सितंबर 30, 2007 तक) 384 मौत
• 2008: 938 मौत ( 38 माओवादियों समेत)
• 2009: 16 अप्रैल 2009 को हुए लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों ने बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड में सिलसिलेवार हमले किये जिसमें 18 नागरिकों की मौत हो गई। बाद में 23 अप्रैल को दूसरे दौर के चुनाव में जमशेदपुर और आसपास के इलाकों में हुए हमलों में पोलिंग पार्टी के कई सदस्यों को नुकसान पहुंचाया। मई 2009 में विभिन्न हमलों में 16 पुलिस वालों की मौत हुई थी।
फरवरी 2009 में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में कई जनहित परियोजनाओं को शुरू किया है।
इतिहास
नक्सली शब्द नक्सबाड़ी से आता है। नक्सलबाड़ी पश्चिम बंगाल का एक छोटा सा गांव है। इसी गांव से चारू मजूमदार और कानू सान्याल के नेतृत्व में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने एक उग्र आंदोलन को उकसाया। ये आंदोलन 25 मई 1967 को शुरू हुआ जब कुछ किसानों ने स्थानीय जमींदारों पर जमीन विवाद के चलते हमला बोल दिया। मजूमदार, जो कि चीन के माओ जेदॉन्ग से काफी प्रभावित था, ने किसानों को उकसाना शुरू किया और उनका समर्थन करता रहा। उसने लोगों में ये भावना फैलाई कि उन्हें पूंजीपतियों को जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए। मजूमदार के उग्र लेखों की बदौलत ये आंदोलन और भी उग्र होता चला गया। मजूमदार के प्रमुख लेखों में ‘ऐतिहासिक 8 लेख’ है जो कि बाद में चलकर नक्सली आंदोलन के लिए आदर्श साबित हुआ। आज भी नक्सली इसी को अपनी गीता और संविधान मानते हैं।
1967 में नक्सलियों ने कम्यूनिस्ट अखिल भारतीय कुऑर्डिनेशन कमेटी(AICCCR) का गठन किया, जो कि बाद में चल कर सीपीआई(एम) से अलग हो गई। 1969 में AICCCR ने कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्स-लेनिन) को जन्म दिया।
1970 के दशक में ये आंदोलन वैचारिक मतभेद के कारण कई छोटे छोटे भागों में बंट गया। 1980 तक ये माना गया कि देश में करीब 30 नक्सली संगठन सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। इन संगठनों में करीब 30 हजार सदस्य हुआ करते थे। 2004 कि रिपोर्ट के अनुसार संगठनों की संख्या बढ़कर 9,300 तक पहुंच गई। इनमें से अतिवादी और भूमिगत संगठन हैं। इन संगठनों के पास आधुनिक हथियारों के साथ साथ देशी हथियार भी मौजूद हैं। 2006 की रॉ कीरिपोर्ट के अनुसार करीब 20,000 नक्सली इस समय सक्रिय हैं।
बंगाल उग्रवाद
कलकत्ता के कट्टरपंथी तबके के छात्रों के बीच नक्सलवाद के गहरी पैठ बना रखी थी। बड़ी संख्या में छात्रों ने अपनी पढ़ाई छोड़कर इस आंदोलन में कूद पड़े थे। वहीं मजूमदार ने अपनी योजना में थोड़ा परिवर्तन करते हुए इस आंदोलन को गांवों से निकालकर शहरों तक ले गया। इस तरह से मजूमदार के विनाश शब्द सिर्फ जमीनदारों को निशाना नहीं बना रहे थे बल्कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों,पुलिस अफसरों,राजनेताओं आदि को निशाने पर ले रहे थे। पूरे कलकत्ते में स्कूलों में ताला लग गया था। नक्सलियों ने जादवपुर विश्वविद्यालय पर कब्जा जमा लिया था। मशीन शॉप की सुविधाओं का उपयोग नक्सली पाइप गन बनाने में करने लगे थे जो कि पुलिस से सामना करने में मददगार साबित हुई। छात्रों ने प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता को अपना मुख्यालय भी बना लिया था। इन पर जाधवपुर विश्वविद्यालय के कुलपति गोपाल सेन को जान से मारने का आरोप भी उन दिनों लगा था। जल्द ही नक्सलियों को पढ़े लिखे सभ्य समाज की भी सहयोग मिलने लगा। इसमें एक अहम कड़ी जुड़ी जब दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के कई छात्रों इसमें सहयोग देना शुरू किया।
नक्सली हमलें में मौत
भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार नक्सलवाद देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। गृहमंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार
• 1996: 156 मौत
• 1997: 428 मौत
• 1998: 270 मौत
• 1999: 363 मौत
• 2000: 50 मौत
• 2001: 100+ मौत
• 2002: 140 मौत
• 2003: 451 मौत
• 2004: 500+ मौत
• 2005: 892 मौत
• 2006: 749 मौत
• 2007: (सितंबर 30, 2007 तक) 384 मौत
• 2008: 938 मौत ( 38 माओवादियों समेत)
• 2009: 16 अप्रैल 2009 को हुए लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों ने बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड में सिलसिलेवार हमले किये जिसमें 18 नागरिकों की मौत हो गई। बाद में 23 अप्रैल को दूसरे दौर के चुनाव में जमशेदपुर और आसपास के इलाकों में हुए हमलों में पोलिंग पार्टी के कई सदस्यों को नुकसान पहुंचाया। मई 2009 में विभिन्न हमलों में 16 पुलिस वालों की मौत हुई थी।
September 12, 2009
किसी कोने से आवाज आई
आज फिर ये दुख क्यों है
आज फिर ये गम क्यों है
क्यों घेरे है एक ड़र तुमको
क्यों तुम फिक्र करते हो
क्यों आज फिर ये ख्याल आता है
कि तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं
कि तुम्हारा को हालचाल लेने वाला नहीं
कि किस फिक्र में रहते हो तुम
क्यों आज फिर तुम नकारे गए
क्यों आज फिर तुमको छोड़ा गया
क्यों आज फिर तुम पीछे रह गए
कि फिर किस दौड़ में रहते हो तुम
आज फिर ये गम क्यों है
क्यों घेरे है एक ड़र तुमको
क्यों तुम फिक्र करते हो
क्यों आज फिर ये ख्याल आता है
कि तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं
कि तुम्हारा को हालचाल लेने वाला नहीं
कि किस फिक्र में रहते हो तुम
क्यों आज फिर तुम नकारे गए
क्यों आज फिर तुमको छोड़ा गया
क्यों आज फिर तुम पीछे रह गए
कि फिर किस दौड़ में रहते हो तुम
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