June 17, 2009
स्टेम सेल का वरदान, ठीक होगा डायबिटीज
अब आपके द्वारा ही होगा आपका इलाज
जी हां डायबिटीज के मरीजों के लिए ये बहुत बड़ी खबर है। ऐसे लोग जो डायबिटीज के शिकार हैं उनके पैरों में अक्सर घाव हो जाता हैं। इन घावों का भरना काफी मुश्किल होता है। नौबत पैर काटने तक की आ जाती है। मगर अब जल्दी ही स्टेम सेल थेरेपी के जरिए ऐसा इलाज शुरू होने वाला है जो मरीज को अपाहिज होने से बचा सकता है। और इसके लिए फोर्टिस अस्पताल को इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च से इजाजत भी मिल चुकी है।
6 महीने, सिर्फ 6 महीने और उसके बाद डायबिटीज के मरीजों को मिल सकता है नया जीवन। उनकी तकलीफों से मिल सकता है हमेशा के लिए छुटकारा। उनके इलाज के लिए भारत में पहली बार आ रही है एक नई तकनीक - स्टेम सेल थेरेपी। ये थेरेपी क्या है और ये कैसे डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद होगी ये भी हम आपको बताएंगे। मगर पहले आपको बताते हैं वो हकीकत जिससे डियबिटीज के मरीज परेशान रहते हैं।
ऐसे मरीजों को एक खतरा हमेशा बना रहता है। और वो है पैरों में घाव यानि फुट अल्सर का। इसका इलाज आसान नहीं है। वजह साफ सी है कि डायबिटीज के मरीजों के घाव मुश्किल से भरते हैं क्योंकि उस हिस्से में रक्त संचार रुक जाता है। और अगर वो घाव पैर में हो जाए तो फिर मरीज का चलना फिरना भी दूभर हो जाता है। कभी कभी तो पैर काटने तक की नौबत आ जाती है।
मगर अब स्टेम सेल थेरेपी से डियबिटीज के मरीजों को जल्दी ही इस मुसीबत से छुट्कारा मिल सकता है। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च यानि आईसीएमआर ने फोर्टिस अस्पताल को थेरेपी पर काम करने की इजाजत दे दी है। भारत में शुरुआती क्लीनिकल ट्रायल के लिए 36 मरीज़ों को चुना गया है। इन सभी मरीज़ों को डायबेटिक फुट अल्सर है। इनमें से 12 मरीज़ों का इलाज इस नई थेरेपी से किया जाएगा। बाकि मरीज़ों का इलाज पुराने तरीके यानि ऐन्टीबॉयोटिक और मरहम-पट्टी से किया जाएगा।
साथ-साथ किए जा रहे इस इलाज के दौरान पता लगाया जाएगा कि स्टेम सेल थेरेपी, इलाज के पुराने तरीके से कितनी ज़्यादा कारगर है। भारत को एक लंबे वक्त से ऐसी थेरेपी की जरूरत थी क्योंकि दुनिया भर के डियबिटीज मरीजों में से 4 करोड़ भारत में ही हैं। देखा जाए तो देश के हर तीसरे परिवार में डायबिटीज़ का कोई न कोई मरीज मिल जाएगा।
ये एक ऐसा मर्ज़ है जिसे रोका नहीं जा सकता। इसकी सीधी वजह है भागदौड़ भरी जिंदगी में खाने पीने का गिरता स्तर। बढ़ता तनाव, ज़्यादा वज़न, शराब और धूम्रपान की लत। और डायबेटीज़ आपके शरीर को अंदर से कमज़ोर बना देता है। बीमारी से लड़ने की आपकी शक्ति को धीरे-धीरे खत्म करता जाता है। ऐसे में अगर फुट अल्सर हो जाए तो मुसीबत दुगनी हो जाती है।
इस वक्त डॉक्टरों के पास मौजूद तकनीक के मुताबिक डायबिटिक फुट अल्सर का इलाज एन्टीबायोटिक और मरहम-पट्टी से किया जाता है। लेकिन इसमें 6 से 9 महीने तक का वक्त लग जाता है। कभी कभी तो हालात इतने खराब हो जाते हैं कि मरीजों को अपने पैर तक कटवाना पड़ता है। इसके अलावा ये इलाज काफी महंगा भी है - इसमें 2 से ढाई लाख रुपए का खर्च आता है। इतना सब होने का बाद भी डायबिटीज़ का मरीज ज़िन्दगी भर अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता।
मगर अब इन सारी परेशानियों से मरीजों को घबराने की जरूरत नहीं है। स्टेम सेल थेरेपी के जरिए डायबिटिक फुट अल्सर के मरीज़ों को अपने पैर नहीं कटवाने पड़ेंगे। पूरे इलाज के बाद वो दोबारा अपने पैरों पर चल सकेंगे। डॉक्टरों की ये कोशिश अगर कामयाब हो गई तो डायबिटिज के मरीजों के चेहरे पर मुस्कुराहट फिट लौट आएगी।
कोरिया और जर्मनी में क्लीनिकल ट्रायल सफल रहे हैं... 6 महीने में भारत में आम जनता के लिए उपलब्ध हो जाएगी। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर स्टेम सेल थेरेपी से फुट अल्सर का इलाज होगा कैसे। तो हम आपको बता दें कि इसमें मरीज के शरीर से ही स्टेम सेल को निकालने के बाद उससे दवा बनाई जाएगी। फिर उस दवा को इंजेक्शन की शक्ल में दोबारा मरीज के घाव वाले हिस्से में लगाया जाएगा। यानि डायबिटिक मरीज के शरीर में ही छुपा है उसकी तकलीफ का इलाज।
डायबिटिक मरीजों में पैरों के अल्सर के लिए स्टेम सेल थेरेपी का इस्तेमाल जल्दी ही शुरु होने वाला है। स्टेम सेल थेरेपी यानि विज्ञान का वो पहलू जिसने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी। ऐसा तरीका जिसमें किसी इंसान के मर्ज को ठीक करने के लिए उसके ही शरीर से दवा निकाली जाती है। अब आपके शरीर से ही स्वस्थ सेल निकालकर वापस आपके शरीर में डाले जाते हैं। इसी को स्टेम सेल थेरेपी कहा जाता है। ये थेरेपी के दौरान कुछ खास सेल्स का इस्तेमाल किया जाता है। इंसान के खून में मौजूद इन सेल्स को स्टेम सेल्स कहा जाता है।
भारत में डायबिटिक फुट अल्सर के मरीजों का इलाज करने के लिए अब स्टेम सेल थेरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले पहले मरीज़ के शरीर में मौजूद स्टेम सेल की मात्रा को बढ़ाना होगा। इसके लिए शरीर में खास Gmcfs नाम के 4 इंजेक्शन दिए जाएंगे। इन इंजेक्शन्स को देने पर स्टेम सेल की मात्रा बढ़ जाएगी। इसके बाद शरीर से खून निकाला जाएगा। फिर खून में से स्टेम सेल्स को बाकि सेल्स से अलग किया जाएगा। अलग किए गए इन स्टेम सेल्स को 50 छोटी-छोटी डोज़ बनाई जाएंगी। इन्हें अलग-अलग इंजेक्शन के माध्यम से पैर के उस हिस्से में डाला जाएगा, जहां अल्सर हुआ है।
इंजेक्शन लगाने की प्रक्रिया में दर्द होने की संभावना होने की वजह से मरीज़ को स्पाइनल एनेसथीसिया दिया जाएगा। इसके लिए मरीज़ को एक दिन के लिए अस्पताल में एडमिट भी होना होगा। स्टेम सेल पैर में पहुंचने के बाद धीरे-धीरे बढ़ना शुरू कर देंगे। स्वस्थ सेल्स की मात्रा बढ़ते ही पैर के अल्सर वाले हिस्से में रक्त का संचालन शुरू हो जाएगा। और जल्द ही मरीज़ का पैर ठीक हो जाएगा और वो चलने के काबिल हो जाएगा।
स्टेम सेल में दो खासियत हैं। पहली ये कि ये सेल रीजेनेरेट करते हैं। यानि खुद-ब-खुद बढ़ने या मल्टिप्लाई करने की क्षमता रखते हैं। और दूसरा ये कि ये सेल आसानी से किसी और सेल की शक्ल ले सकते हैं। यानि मर्ज़ जिस भी तरह के सेल में हो, स्टेम सेल - उसी सेल की स्वस्थ शक्ल ले सकते हैं।
स्टेम सेल यानि ऐसी ताकत जो इंसान के अपने शरीर में छुपी होती है। डॉक्टरों ने इसे पहचाना और अब ये दुनिया के सामने आ गई है। उसके बाद सामने आया फुट अल्सर का इलाज करने का तरीका। इसकी जरूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि डायबिटीज मरीजों में पैरों के घाव का वक्त पर इलाज न होने से शरीर के दूसरे हिस्सों में फैसले का खतरा बना रहता है जो बाद में गैंगरीन का रूप ले सकता है। मगर अब इलाज के लिए मरीजों को परेशान नहीं होना पड़ेगा।
मरीज के शरीर से ही दवा बनाकर उसका इलाज करने का ये तरीका वाकई कारगर साबित हो सकता है। बहरहाल सवाल ये है कि अगर शुगर के मरीजों के पैर के घाव इस तरीके से ठीक किए जा सकते हैं तो क्या स्टेम सेल की मदद से डायबिटीज को भी जड़ से खत्म किया जा सकता है। दुनिया भर के डॉक्टर भी इन दिनों इसी सवाल से जूझ रहे हैं।
स्टेम सेल थेरेपी से फुट अल्सर के इलाज के सवाल के साथ ही ये सवाल भी खड़ा हो गया है कि क्या डायबिटीज के शिकार मरीज के बाकी हिस्सों के घाव का भी इससे इलाज हो सकता है। और क्या डायबिटीज का पूरा इलाज भी इससे हो सकता है। दुनिया भर के डॉक्टर इस दिशा में काम भी कर रहे हैं। मगर अभी तक कोई कामयाबी हाथ नहीं लगी है। हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी दर्दनाक हकीकत जो डियबिटीज के मरीजों का दर्द बयान करेगी।
हर साल डायबिटीज के 4 फीसदी मरीजों को पैरों में घाव हो जाते हैं। 45 से 75 फीसदी मामलों में डायबिटीक मरीजों के पैर काटने पड़ते हैं। दुनिया भर में 1 करोड़ डायबिटिक मरीजों के शरीर का कोई हिस्सा काटने की नौबत आ जाती है। 2030 तक भारत में तकरीबन 10 करोड़ डायबिटीज मरीजों को फुट अल्सर का खतरा होगा। फुट अल्सर के ऐसे मरीजों के लिए अगर स्टेम सेल थेरेपी कारगर साबित होती है तो वाकई ये विज्ञान की एक बड़ी जीत होगी। देश के करोड़ों डायबिटीज मरीजों के लिए ये वरदान साबित हो सकती है। वैसे विदेश में
इस वक्त में ल्यूकेमिया के लिए स्टेम सेल थेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें स्टेम सेल के बोन मैरो ट्रान्सप्लांट के ज़रिए निकाला और वापस शरीर में डाला जाता है। आने वाले वक्त में वैज्ञानिक स्टेम सेल थेरेपी को कैंसर, पार्किनसन, और मल्टिपल सेरोसिस जैसी बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल में लाने पर काम कर रहे हैं।
भारत में फुट अल्सर के लिए स्टेम सेल थेरेपी की दिशा में 6 महीने में नई क्रांति आ सकती है। उसके बाद ये कोशिश भी हो सकती है कि स्टेम सेल से डायबिटीज का इलाज खोजा जाए। मुमकिन है कि आने वाले वक्त में ऐसा कोई तरीका आ जाए कि डायबिटीज को जड़ से खत्म किया जा सके।
अगर फायदा हो रहा है तो तो बवाल तो होना ही है। स्टेम सेल थेरेपी को लेकर दुनिया भर के देशों में काफी वक्त से बवाल मचा हुआ है। इंसान के शरीर से स्टेम सेल निकालने के तरीकों को लेकर तो अमेरिका में काफी विरोध प्रदर्शन भी हुआ नतीजा ये हुआ कि पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने तो ऐसी रिसर्च पर रोक लगा दी थी।
दुनिया भर में स्टेम सेल रिसर्च हमेशा से ही विवादों में घिरा रहा है। और विवाद की वजह है खुद स्टेम सेल। वही कोशिकाएं जिनमें किसी भी बीमारी का इलाज करने की ताकत है। ये बेशकीमती सेल जीने की आस छोड़ चुके लोगों को नई जिंदगी देते हैं। ये सेल सबसे ज़्यादा मात्रा में इंसानी भ्रूण यानि एम्ब्रियो में पाए जाते हैं।
यानि किसी महिला के गर्भ में पल रहे 4 से 5 दिन के बच्चे में। तकनीकी तौर पर इस 4-5 दिन के एम्ब्रियो को शिशु कहना गलत होगा। लेकिन ये भी सच है कि ये जीवन की शुरुआत है। यही भ्रूण 9 महीनों में मां के पोषण पर विकसित होकर एक नवजात शिशु की शक्ल लेता है। इस एम्ब्रियो से स्टेम सेल निकालने के दो तरीके हैं। पहला इस एम्ब्रियो को मारना और दूसरा इसका क्लोन बना लेना।
अमेरिका में जब वैज्ञानिकों ने पहले तरीके का इस्तेमाल कर इस थेरेपी में रिसर्च करनी शुरू की तो आम लोगों का गुस्सा भड़क गया। कहा गया कि उन्हें मां के गर्भ में 4 से 5 दिन के भ्रूण को मारना अपराध है।
विरोध इतना उग्र हुआ कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश ने अपने कार्यकाल के दौरान साल 2001 से 2006 तक स्टेम सेल रिसर्च के लिए सरकारी फन्डिंग बंद कर दी। साथ ही इंसानों पर इसके प्रयोग या क्लीनिकल ट्रायल पर भी पाबंदी लगा दी। लेकिन सत्ता बदली और 9 मार्च 2009 को राष्ट्रपति बराक ओबामा ने स्टेम सेल रिसर्च को सरकारी मदद का ऐलान कर दिया।
स्टेम सेल निकालने का दूसरा तरीका है एम्ब्रियो को मारे बगैर उसका क्लोन बना लेना। लेकिन इस तकनीक के गलत इस्तेमाल की बहुत गुंजाइश होने की वजह से इस पर सभी देशों में पाबंदी है। यानि इस सेल की ये शक्ति ही इसके गलत इस्तेमाल की वजह बन सकती है। इसी वजह से भारत में एम्ब्रियो से स्टेम सेल निकालकर रिसर्च करने की इजाजत जरूर है मगर इसके लिए कड़े नियम बनाए गए हैं।
भारत और अमेरिका के अलावा फिलहाल ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, इजरायल, बेल्जियम, फिनलैंड, ग्रीस, निदरलैंड्स, स्वीडन और युनाइटिड किंगडम में एम्ब्रियो से स्टेम सेल निकालकर रिसर्च करने की इजाजत है। वहीं ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नॉर्वे, पोलैंड और आयरलैंड इसके सख्त खिलाफ हैं। इतने विवाद के बावजूद इस बात को कोई नहीं नकार सकता कि स्टेम सेल में जो शक्ति है वो किसी और सेल में नहीं। और ऐसे में इलाज के इस बेहतरीन तरीके को इस्तेमाल में ना ला पाना पूरी दुनिया के लिए एक बहुत नुकसानदायक साबित होगा। तमाम मुश्किलों के बीच स्टेमल सेल की ताकत का इस्तेमाल करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक हल तलाशा। अब दुनिया भर के वैज्ञानिक अडल्ट स्टेम सेल के ज़रिए ही इस थेरेपी से अलग-अलग बीमारियों का इलाज ढूंढ रहे हैं। डायबिटिक फुट अल्सर का इलाज भी इन्हीं अडल्ट स्टेम सेल की मदद से किया जाएगा।
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