मरघट का सन्नाटा हैं यहां
जहां हम बैठे हैं अकेले
कभी यारों की किलकारी
कभी बड़ों की अट्टाहास के बीच
हम यूं ही मुस्कराते रहते थे।
सच है
जब किसी की आवाज दबाई जाती है
तो हमारा कुनबा खड़ा होता
चीखता चिल्लाता
शोर मचाता
लेकिन जब खुद पर आई
एक मरघट का सन्नाटा है यहां।
-- मयंक प्रताप सिंह
जहां हम बैठे हैं अकेले
कभी यारों की किलकारी
कभी बड़ों की अट्टाहास के बीच
हम यूं ही मुस्कराते रहते थे।
सच है
जब किसी की आवाज दबाई जाती है
तो हमारा कुनबा खड़ा होता
चीखता चिल्लाता
शोर मचाता
लेकिन जब खुद पर आई
एक मरघट का सन्नाटा है यहां।
-- मयंक प्रताप सिंह
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