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Varanasi, UP, India
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June 24, 2009

बारिश ना हुई तो, क्या किसान देंगे लगान


मॉनसून में देरी के कारण उत्तर प्रदेश और बिहार में सूखे का संकट मंडराने लगा है। बारिश ना होने से जमीन बंजर होने के कगार पर पहुंच गई है और किसानों के सामने सिंचाई का संकट पैदा हो गया है। अगर जल्दी ही बारिश नहीं हुई तो हालात बेकाबू हो जाएंगे। गन्ने की फसल को पानी नहीं मिल रहा है तो ज्वार और मक्का की फसल पानी बिना बढ़ नहीं पा रही है। इतना ही नहीं पानी की कमी ने आम से उसकी मिठास भी छीन ली है।

बिहार में अबतक मॉनसून ने दस्तक नहीं दी और किसान परेशान हैं। खेत यूं दिख रहे हैं जैसे किसी ने इनमें आग लगा दी हो। बंजर खेतों में जहां थोड़ी बहुत फसल है तो उनमें अनाज के दाने नहीं। जाहिर है बिन पानी बिहार में भी सब सून है। वहीं मौसम विभाग की मानें तो अगले कुछ दिनों तक वारिश के कोई आसार भी नहीं। मानसुन के बादल रुठ गये है कड कडाती धुप से धरती का कलेजा फट रहा है बावजुद इसके बादलो का दिल पसीजते नही दिख रहा है और अगर कुछ दीन और यही हाल रहा तो एक-एक बुद पानी के लिये तरस रहे किसान टुट जायेंगे।

यूपी में भी हाल कोई जुदा नहीं। यहां के हरित बेल्ट पर भी सूखा मंडरा रहा है। मई-जून मिलाकर अब तक पश्चिमी
यूपी में सिर्फ 9 मिलीमीटर बारिश हुई है। पंजाब में धान की रोपाई शुरू हो चुकी है। लेकिन यहां सब ठप पड़ा है। अगर जून खत्म होते-होते बारिश नहीं हुई तो हरित बेल्ट को इस बार सूखे से कोई नहीं बचा पाएगा।

बारिश की कमी ने आम की रंगत बदल दी है। न वो महक है, न वो स्वाद। सहारनपुर में लाखों एकड़ में फैले आम के बाग में दशहरी और लंगड़ा सूखे की जद में हैं और इनका आकार बढ़ ही नहीं रहा।

मेरठ, मुरादाबाद और मुजफ्फरनगर के अलावा बुलंदशहर, बागपत और गौतमबुद्धनगर भी सूखे की चपेट में आने लगे हैं। यहां जमीन के नीचे पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है। कुल मिलाकार अब सारी उम्मीदें बारिश पर आकर टिक गई हैं। उत्तर भारत में पंजाब और हरियाणा के बाद पश्चिमी यूपी की आर्थिक रीढ़ खेती पर ही निर्भर है। अगर एक हफ्ते भर के भीतर बारिश नहीं हुई तो इस क्षेत्र में हाहाकार मच जाएगा।

वेस्ट की ये धरती सोना उलगने के लिए जानी जाती है लेकिन फिलहाल तो इसका सीना बारिश की एक बूंद के लिए तरह रहा है। तालाब सूख गए हैं, हैंड पंपों में पानी नहीं है और ट्यूबवैल के वाटर लेवल नीचे जाने से इस हरित प्रदेश को सूखा प्रदेश न घोषित करना पड़े।

एल नीनो का प्रभाव

वैज्ञानिकों का कहना है कि मॉनसून की रफ्तार को थामने के पीछे वजह है एल नीनो। एल नीनो मौसम का एक मिजाज है और जब ऐसे हालात बनते हैं तो दक्षिण एशिया में मॉनसून के हालात खराब हो जाते हैं। सूखे और अकाल की स्थिति बन जाती है।


एल नीनो मौसम का एक मिजाज है। इसके चलते प्रशांत महासागर का पानी सामान्य से ज्यादा गर्म हो जाता है और ये दक्षिण अमेरिका से दक्षिण एशिया की तरफ बहने वाली हवाओं की रफ्तार धीमी कर देता है। इस वजह से मॉनसून की ताकत कमजोर पड़ जाती है और सूखे की आशंका बढ़ जाती है। इसके अलावा जब प्रशांत महासागर का पानी गर्म होकर ऊपर उठता है तो यह अपने ऊपर से गुजरने वाली हवाओं को भी गर्म कर देता है। इसमें सूखी हवा ज्यादा होती है। मॉनसून की पानी बरसाने वाली नमी सूख जाती है और मॉनसून कमजोर पड़ जाता है। इसलिए एल नीनो बारिश का दुश्मन है। जिस साल वो आता है, भारत समेत दक्षिण एशिया के बड़े इलाके में सूखा, अकाल और तबाही लेकर आता है।

इससे पहले 2004 और 2002 में भारत में मॉनसून पर अल नीनो का असर पड़ा था। तब बारिश काफी कम हुई थी। जो आमतौर पर होने वाली बारिश से भी 10 फीसदी कम थी। इस साल भी मॉनसून का मूड अच्छा नहीं है। दक्षिण एशिया में एल नीनो की आशंका जताई जा रही है। और इसका मतलब होगा सूखा, अकाल, महंगाई, नाउम्मीदी और गरीबी।

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